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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ १६८ ] सोंठको तवे पर भून कर पीसलें, फिर उसमें उसके बराबर कच्ची (बिन भुनी) सांठका चूर्ण पिलाकर अरण्डके रसके साथ पीसकर सेवन करें । www.kobatirth.org भारत - विपन्य- रत्नाकरः । इससे आमातिसार और शूल नष्ट होता है यह दीपन और पाचन भी है । (मात्रा - १ से ३ माशेतक । ) (३४२९) नागराचं चूर्णम् यो. (च. सं. । चि. अ. १९; वं. से.; नि. र.; भै. र.; वृ. मा.; च. द.; धन्व.। वृ. यो. त. । त. ६७ ) ( मात्रा - १ || से ३ माशेतक । ) नागार्जुनचूर्णम् मागरातिविषे मुस्तं धानकीं सरसाञ्जनम् । वत्संकत्व फलं बिल्वं पाठां कटुकरोहिणीम् ॥ पिबेत्समांशं तच्चूर्ण सक्षौद्रं तण्डुलाम्बुना । पैत्तिके ग्रहणीदोषे रक्तं यच्चोपवेश्यते ॥ अर्शांसि च गुदे शूलं जयेच्चैव प्रवाहिकाम् । नागराद्यमिदं चूर्ण कृष्णात्रेयेन पूजितम् ॥ रसप्रकरण में देखिये । र.; वृ. ग्रहणी; सोंठ, अतीस, नागरमोथा धायकेफूल, रसौत, कुड़की छाल, इन्द्रजौ, बेलगिरी, पाठा, और कुटकी के समान भाग मिश्रित चूर्णको शहदके साथ मिलाकर तण्डुलोदक (चावलोंके धोवन ) के साथ सेवन करने से पित्तज ग्रहणी, रक्तस्राव, अर्श, गुदशूल और प्रवाहिका का नाश होता है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ नकारादि (३४३०) नादेयीक्षारः ( यो त । त. ४६; ग. नि.; वृं. मा. । गुल्मा.; बृ. यो. त । त. ९८ ) नादेयीकुटजातिस्तुम्बिल्ब भल्लातकव्याघ्री किंशुकपारिभद्रकजटाऽपामार्गनीपाधिकान् वासामुष्ककपाटलान्सलवणान्दग्ध्वा जले पाचिताम् । हिंग्वादिप्रतिवापमेतदुदितं गुल्मोदराष्ठीलिषु ॥ अरण्ड, कुड़ेकी छाल, अर्क, सहजनेकी छाल, बड़ी कटेली, थोहर ( सेंड - सेंहुड), बेलछाल, भिलावा, छोटी कटेली, पलाशकी छाल, पारिभद ( फरहद ) की जड़की छाल, अपामार्ग, कदम, चीता, बासा, मुष्कक, पाटला और पांचों लवण ( सेंधा, समुद्र नमक, विड़नमक, सचल नमक, और कालवण ) समान भाग लेकर सबको एकत्र मिलाकर जलावें, तत्पश्चात् इनकी राख ( भस्म ) और उस नितरे हुवे स्वच्छ पानीको पुनः पकायें, को ६ गुने पानी में मिलाकर २१ बार टपकावें जब गाढ़ा हो जाय तो उसमें उसका चौथा भाग हिंग्वादि चूर्ण मिलावें । जब जलांश बिल्कुल शुष्क हो जाय तो क्षारको निकालकर सुरक्षित रक्खें । यह क्षार गुल्म और अष्ठीला को नष्ट करता है । For Private And Personal Use Only ( मात्रा - १ माशा ) १ - हिंग्वादि चूर्ण- हींग, पोखरमूल, तुम्बह, हर्र, निसोत, बिडलवण, सेंघा, बबासार और बांठ ।
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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