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चूर्णप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१६७]
धातकीन्द्रयवौ बिल्वं पाठा मोचरसं समम् । । समुद्रलवण, और विडलवण । सबके समान भाग चूर्णितं मधुना लेह्यमनुपानं सुखावहम् ॥ मिश्रित चूर्णको सुरा, मण्ड, दही, मन्दोष्णजल
सांठ, अतीस, नागरमोथा, देवदारु, पीपल, अथवा काजीके साथ पीनेसे अनि दीप्त और कोष्टकी बच, अजवायन, सुगन्धबाला, धनिया, कुडेकी / वायु नष्ट होती है। छाल, हरी, धायकेफूल, इन्द्र जौ, बेलगिरी, पाठा और
(मात्रा-२ से ३ माशेतक) मोचरस । सबका समान भाग चूर्ण लेकर एकत्र ।
(३४२६) नागरादिचूर्णम् (६) मिलावें।
(यो. र । पाण्डु.) इसे शहदके साथ चाटनेसे ज्वरातिसार नष्ट
नागरं लोहचूर्ण वा कृष्णां पथ्यामथाश्मजम् । होता है।
| गुग्गुलं वाऽथ मूत्रेण कफपाण्ड्वामयी पियेत् ॥
सांठ, पीपल, हर्र, शिलाजीत, गूगल और (मात्रा-२-३ माशे । दिनमें २-३ बार)
लोहभस्म । इनमेंसे किसी एकके चूर्णको गोमूत्रके (३४२४) नागरादिचूर्णम् (४)
साथ सेवन करनेसे कफज पाण्डु नष्ट होता है। ___ (वृ. नि. र.। बाल.)
(मात्रा-गूगल-१ माशा । लोह १ से २ रत्ती नागरं मुस्तकं बिल्वं चित्रकं ग्रन्थिकं शिवाम्। तक। अन्य औषधांका चूर्ण १ से ३ माशेतक) चूर्णमेतन्मधुयुतं कफजां ग्रहणीं जयेत् ॥ (३४२७) नागरादिप्रयोगः (१)
सेठ, नागरमोथा, बेलगिरी, चीता, पीपला (वं. से.। गुल्मरोगा.; च. सं. । चि. अ. ५) मूल और हर्रके समान भाग मिश्रित चूर्णको शह- नागराईपलं पिष्टं द्वे पले चित्रकस्य च । दके साथ चटानेसे बच्चांकी कफज ग्रहणी नष्ट तिलस्यैकं गुडपलं क्षीरेणोष्णेन पापयेत् ॥ होती है।
वातगुल्ममुदावते योनिशूलच नाशयेत् ॥ (मात्रा-आधेसे १ माशे तक।)
सांठका चूर्ण आधापल, चीतेका चूर्ण २ पल, (३४२५) नागरादिचूर्णम् (५) पिसे हुवे तिल १ पल (५ तोले) और गुड़ १ पल (वं. से. । प्र. अ.)
लेकर सबको एकत्र मिलाकर कूटें । नागरं कौटनं बीजं पिप्पली वृहतीद्वयम् । इसे उष्ण दूधके साथ सेवन करनेसे वातज चित्रकं शारिवा पाठा क्षारं लवणपश्चकम् ॥ गुल्म, उदावर्त, और योनि शूल नष्ट होता है। चूर्णयित्वा सुरामण्डं दधिकोष्णाम्बुकाजिकैः। (मात्रा–२ से ४ माशेतक।) पिबेदनिविष्टद्धयर्थ कोष्ठवातहरं परम् ॥ (३४२८) नागरादिप्रयोगः (२) ___ सेठ, इन्द्रजौ, पीपल, छोटी कटेली, बड़ी
(वं. से.। अति.) कटेली, चीता, सारिया, पाठा, यवक्षार, सेंधानमक, एरण्डरससम्पिष्टं पकमामश्च नागरम् । सश्चल (काला नमक), काचलवण (कचलौना), ' आमातिसारशूलग्नं दीपनं पाचन तथा ॥
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