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रसपकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१४९]
इसे घी और शहद में मिलाकर भोजनके आदि, (३३३३) धात्र्यादिप्रयोगः मध्य और अन्तमें सेवन करना तथा दोषानुरूप (वा. भ. । उ. स्था. अ. ३९) पथ्य पालन करना चाहिये।
धात्रीकृमिघ्नासनसारचूर्ण भोजनके आदिमें सेवन करनेसे पित्तज और
सतैलसर्पिर्मधुलोहरेणुः। वातज रोग, और मध्यमें सेवन करनेसे विष्टम्भ
निषेवमाणस्य भवेन्नरस्य नष्ट होता है तथा भाहार विदग्ध होकर दाह नहीं
तारुण्यलावण्यमविप्रणष्टम् ॥ करता। यदि इसे भोजनके अन्तमें सेवन किया
- आमला, बायबिडंग, असन वृक्षका सार, जाय तो अन्नपानकृत् विकार नष्ट होते हैं।
और लोह चूर्ण ( भस्म ) समान भाग लेकर सबको
| एकत्र मिलाकर तैल, घी और शहदके साथ सेवन यह 'धात्रीलोह ' कष्टसाध्य शूल, अम्लपित्त |
करनेसे यौवन और सौन्दर्य स्थिर रहता है। और कफपित्तज रोगांको नष्ट करने वाला, आंखेांके लिये हितकारी, पलित और पाण्डु नाशक तथा
(३३३ ४) धान्याभ्रकम् रक्त शोधक है।
(यो. र. । धातुशोधन.)
पादांशशालिसंयुक्तमभ्रं वद्ध्वाऽथ कम्बले । (मात्रा १ माशा ।)
त्रिरात्र स्थापयेन्नीरे तत्लिन्नं मर्दयेत्करैः ।। (३३३२) धात्रीलोहम् (४)
कम्बलाद्गलितं सूक्ष्मं बालुकासदृशं च यत् ।
तद्धान्याभ्रमिति प्रोक्तमय मारणसिद्धये ।। (वं. से. । कामला; र. का. धे.; र. रा. सु.; रसे.
वज्राभ्रकके चूर्णमें उससे चौथाई भाग शालि सा. स.; वृ. मा.; र. र. । पाण्डु; रसे. चि.।
धान मिलाकर कम्बलमें बांधकर ३ दिन तक पानीमें स्त. ९; च. द.; यो. र.; वृ. नि. र. । कामला;
भीगने दें तत्पश्चात् कम्बल को हाथ या पैरोंसे __ यो. त. । त. २५; ग. नि. । पाण्डु)
मसलें । इस प्रकार अभ्रकका जो बारीक चूर्ण कम्बल धात्रीलोहरजोव्योपनिशाक्षौद्राज्यशर्कराः।। के बाहर निकलेगा उसीका नाम “धान्याभ्रक" लीद्वा निवारत्याशु कामलामुद्धतामपि ।। है । भस्म बनानेमें यही प्रयुक्त होता है।
आमले का चूर्ण, लोह भस्म, सांठ, मिर्च, । (३३३५) धूम्रकेतुरस: पीपल और हल्दी का चूर्ण समान भाग लेकर सबको
(र. रा. सुं. । ज्वर.) एकत्र मिलाकर रक्खें ।
दधात्समं सूतसमुद्रफेनं इसे शहद, घी और खांडके साथ सेवन करने । हिङ्गलगन्धं परिमर्च यामम् । से कष्टसाध्य कामला भी नष्ट हो जाती है।
| नवज्वरे वल्लयुगं त्रिघत्र(मात्रा १ से १॥ माशे तक।)
मार्दाम्बुनायं ज्वरधूमकेतु ॥
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