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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [१४६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [धकारादि अथ धकारादिरसप्रकरणम् ->Reore(३३२५) धन्वन्तरिरसः ___ लोह भस्म, अभ्रक भस्म, ताम्र भस्म, शुद्ध पारा, (र. र. स. । उ, खं. अ. २.) शुद्ध गन्धक, शुद्ध बछनागविष ( मीठा तेलिया), सूतगन्धार्कसौभाग्यं ककुष्ठं रक्तचन्दनम् ।। सांठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, और कूठ। कणा चैतानि तुल्यानि मर्दयेल्लुङ्गवारिणा ॥ | सब चीजें समान भाग लेकर प्रथम पारे और गन्धक एकाइमथ संशोष्य स्थापयेदतियनतः। की कज्जली बनावें और फिर उसमें अन्य रसो निःशेषकुष्ठनो धन्वन्तरिरिति स्मृतः ।। ओषधियोंका महीन चूर्ण मिलाकर ३-३ दिन निर्दिष्टः शम्भुना सर्वरोगभीतिविनाशनः। भंगरा, अदरक और संभालुके रसमें घोटकर मूंगके पथ्याघृतयुतो वायुं सिन्धुविश्वान्वितोऽपि वा ॥ बराबर गोलियां बनावें । __शुद्धपारा, शुद्ध गन्धक, ताम्र भस्म, सुहागेकी इन्हें यथोचित अनुपानके साथ देनेसे अजीर्ण, खील, कङ्गुष्ठ, लालचन्दन और पीपल समान भाग वातज खांसी, और सर्व धातुगत ज्वर आदि समस्त लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें फिर रोग नष्ट होते तथा जठराग्नि और रुचिकी वृद्धि उसमें अन्य ओषधियांका चूर्ण मिलाकर १ दिन | होती है। जम्बीरी नीबूके रसमें घोटकर (३-४ रत्तीकी) धातुपाकरसः (वै. र.) गोलियां बनालें। ज्वराङ्कुश रस ९ वां सं. २१६५ देखिये । इसके सेवनसे सब प्रकारके कुष्ट नष्ट होते । (३३२७) धातुबद्धरसः हैं। अनुपान-हर्र का चूर्ण और घी या सोंट और (र. र.; धन्वं. । रसाय.) सेंधा नमक तथा घी। गन्धकेन शिला वापि सीसको माक्षिकेण वा। (३३२६) धातुज्वराङ्कुशरसः | अभ्रं लौहेन वा तद्वत् समभागेन पारदः ॥ (नि. र.; वृ. नि. र. । ज्वर.) सुभृष्टटङ्कणेनापि रसपादेन संयुतः । लोहाभ्रक ताम्रभस्म पारदं गन्धकं विषम् । | रसेन पारिजातस्य कारवेल्या रसेन वा ॥ व्योष फलत्रिकं कुष्ठं समभागेन मर्दयेत् ॥ द्रवन्त्यास्तण्डुलीयोत्थैरेकाहं मर्दयेद्रसम् । भृङ्गनीरेण चार्द्रस्य वारा निर्गुण्डिकारसैः। अर्ध सञ्चर्य मण्डूरं दिनान्तं परिमर्दयेत् ॥ त्रिदिनं मर्दयित्वा तु मुद्गमाना वटी कृता ॥ तज्जलं भाजने क्षिप्त्वा मूर्यतापे निधापयेत् । यथारोगानुपानेन सर्वव्याधिविनाशिनी। जलादुत्सृज्य मृत्स्नाश्च पथ्यया सह मर्दयेत् ।। अजीर्णवातकासनी दीपनी रुचिवर्धनी ॥ पूर्वसूतस्य तं कल्कं मृत्स्नया परिलेपयेत् । सर्वधातुज्वरान्हन्ति सोयं धातुज्वराङ्कुशः॥ अङ्गलोत्सेधमानेन ततः सम्वेष्टय मृत्पटैः ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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