________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
कल्पप्रकरणम् ]
तृतीयो भागः।
[१४५]
-
-
-
-
सुराका है।
आक, चिरचिटा और मुलैठी में से किसी एकके | एक भेद) में से किसी एकके मलके रसके साथ काथके साथ खिलाना चाहिये ।
उपरोक्त गुटिका खिलावें । ___ जीमूतकी भांति धामार्गवके पुष्पादि से सिद्ध जीवक, ऋषभक, क्षीरकाकोली, कौंचके बीज, दुग्ध' के भी चार प्रयोग हैं और पांचवां प्रयोग
शतावर, काकोली, मुण्डी, मेदा, महामेदा और मुलैठी में से किसी एकका चूर्ण धामार्गवके चूर्णके
| साथ मिलाकर उसे खांड और शहदमें मिलाकर धामार्गवके पक्के और सूखे फलों के बीज
चाटना चाहिये। अलग करके रातको उसमें गुड़ मिश्रित मुलैठीका यह प्रयोग हृदयकी दाह और खांसीमें उपकाथ भर दें और प्रातःकाल छानकर पिलावें । योगी है। यह प्रयोग गुल्म और अन्य कफज रोगोंमें हित
___यदि कफके साथ पित्त भी हो तो अनुपान कारी है।
में मन्दाष्ण पानी देना चाहिये । ____ मुलैठी की भांति ही कोविदारादि आठों धनिये और तुम्बुरुके यूषके साथ धामार्गवद्रव्यों में से किसीका भी काथ पर्युषित करके
का कल्क देनेसे विष नष्ट होता है। प्रयुक्त किया जा सकता है ।
चमेलीके फूल, हल्दी, चोरक, पुनर्ववा, यदि छर्दि और हृदोगमें प्रयुक्त करना हो । कसौंदी, कन्दूरी, बच, महासहा, क्षुद्रसहा, और तो धामार्गवसे अन्न सिद्ध करके देना चाहिये।
वृश्चीर ( लाल पुनर्नवा ) में से किसी एकके काथमें
| धामार्गवके १ या २ फलोंको भिगोकर, मल छान___ उत्पलादि पुष्पोंको धामार्गवके चूर्णसे अच्छी
| कर पिलाना चाहिये । इससे भलीभांति वमन तरह बसाकर यवाग्वादि पिलाकर तृप्त किये हुवे होकर मनोविकार ( उन्मादादि ) नष्ट होते हैं। रोगीको वह पुष्प सुंघाये जायं तो उसे अच्छी
धामार्गवसे दूध पकाकर उसका दही बनाकर तरह वमन हो जाती है।
घी निकालें और फिर उस घीको धामार्गवके ही धामार्गवके चूर्णको ( उसीके रस या पानी | फलादिके कल्कसे सिद्ध करके सेवन करावें । में ) घोटकर बेरके समान गुटिका बना लें। इसे (दूध पकानेके लिए --धामार्गव १ सेर, गायके गोबर या घोड़ेकी लीदके २० तोले रसके । दूध १६ सेर, पानी ६४ सेर । मिलाकर पकावें । साथ रोगीको खिलावें।
दूध मात्र शेष रहने पर छान लें। ___ अथवा पृषत् ( हरिन भेद ), ऋष्य (रोरु- । घृतसिद्ध करनेके लिए-उपरोक्त दूधसे मृग), कुरङ्ग (छोटा हरिन) घोड़ा, हाथी, ऊंट, ! निकाला हुवा घी १ सेर, धामार्गवका कल्क १० खिच्चर, भेड़, श्वदंष्ट्री, गधा और खग (घोड़ेका तोले; पानी ४ सेर । )
____ इति धकारादिकल्पपकरणम् । १-पुष्पसिद्ध दुग्ध, फल सिद्ध दुग्ध, भामार्गवसिद्ध दूध की मलाई और धामार्गव सिद्ध दूधका दही। २-धामार्गवके फलोंको सुरामें भिगोकर मल छानकर प्रयुक्त करें ।
३-धामार्गवके चूर्णको फूलोंपर छिड़क कर रात भर रक्खा रहने दें और दूसरे दिन फिर नया चूर्ण छिड़कें इसी प्रकार निरन्तर कई दिन करें, और फिर फलों को पीस लें।
For Private And Personal Use Only