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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । १०८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि - - - पीपल, और बायबिडंग का चूर्ण १-१ भाग तथा । (३२०३) दाहज्वरनवटी लोहभस्म इन सबके बराबर लेकर सबको एकत्र (रसायनसार । दाहे ) मिलाकर घोटें। सेवन्त्युशीरयष्टीनां कषायोडावित ज्वरी। इसे शहद और घीके साथ सेवन करनेसे | स्वर्णसिन्दूरमम्भोऽपि तासां सेवेत दाहयुत् ॥ कामला और पापड रोग नष्ट होता है। दाहज्वरकी गोली (मात्रा-२-३ माशे । घी ६ माशे, शहद अर्थ:-यदि रोगी दाहसे और ज्वरसे अत्यन्त २ तोले।) पीडित हो तो गुलाब के फूल, खस, मुलहटी, इनके काढ़े में भावना देकर स्वर्ण सिन्दूर को बताशे, (३२०२) दाव्या दिवटिका पान, और मधु प्रभृति के साथ सेवन करे और ( वृ. नि. र. । ज्वर.) जब प्यास लगे तब उसी कादेको या उनके फाण्ट दारुनिशा शिखिग्रीवा रसकं च पृथक् पृथक् । को पीवे । ( रसायनसारसे उद्धृत ) टङ्कप्रयानुमानेन गृहीत्वा कनकद्रवैः । (३२०४) दाहान्तको रसः मईयेत्रिदिनं कार्या वटी चणकमात्रया । (र. रा. सुं; रसचं.; धन्वन्तरि । दाह.) मरीचैरेकविंशत्या सप्तभिस्तुलसीदलैः॥ सूतात्पश्चार्कतश्चैकं कृत्वा पिण्डं सुशोभनम् । खादेवटीद्वयं पथ्य दुग्धभक्तं सशर्करम् । जम्बीरस्वरसमर्थ सूततुल्यं च गन्धकम् ॥ तरुणं विषमं जीणे हन्यात्सर्वज्वरं ध्रुवम् ॥ नागवल्लीदलैः पिष्ट्वा ताम्रपात्री प्रलेपयेत् । दारुहल्दी, शुद्ध तूतिया, और शुद्ध खपरिया प्रपुटेद्भूधरे यन्त्रे यावद्भस्मत्वमाप्नुयात् ॥ (अभावमें यशद भस्म ) बराबर बराबर लेकर ३ | द्विगुञ्जमाईकद्रावस्त्र्यूषणेन च योजयेत । दिन तक धतूरेके रसमें घोटकर चनेके बराबर निहन्ति दाहसन्तापं मूछो पित्तसमुद्भवाम् ॥ गोलियां बनावें। शुद्ध पारा ५ भाग और शुद्ध ताम्रका महीन इनमें से २ गोली २१ काली मिर्च और चूर्ण १ भाग लेकर दोनोंको एकत्र मिलाकर नींबूके तुलसीके सात पत्तोंके साथ खानेसे तरुणज्वर, विषम- रसमें घोटें । जब अच्छी तरह मिल जाये तो उसमें ज्वर और जीर्ण ज्वरादि सब प्रकारके ज्वर नष्ट हो पारे के बराबर शुद्ध गन्धक मिलाकर पानके रसमें जाते हैं । पथ्य-खांड युक्त दूध भात । घोटकर (५ भाग) शुद्ध तांबेकी कटोरी में उसका (नोट-गोली खानेके बाद काली मिर्च और | लेप करदें और उसे सम्पुट में बन्द करके भूधरयन्त्रमें तुलसीदल पानीके साथ घोट कर पीना चाहिए । इतना पका कि तांबेकी भस्म हो जाय । समय-ज्वर आनेसे ३-४ घण्टे पहिले ।) इसमें से ३ रत्ती भस्म अद्रकके रस और For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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