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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [९६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [दकारादि एतानि समभागानि पेषयेत्सलिलेन तु । । बेलके फूल और छाल, बालछड़, फूलप्रियंगु, समभ्यङ्गय ततो गात्रं सर्पदष्टार्तिदारणः॥ | नागकेसर, सिरसकी छाल, तगर, कूठ, हरताल और विषान्वा भक्षयेदुग्रानगरांश्च विविधान् हरेत् । मनसिल; सबका समान भाग चूर्ण लेकर पानीके कन्यासंवरणं गच्छेद्युद्धे देवासुरोपमः॥ साथ पीसलें । राजद्वारेषु सर्वेषु धूपैश्चैवापराजितः। वृहस्पतिरिति प्रोक्तो ब्रह्मणा निर्मितः स्वयम् ॥ इसे शरीरपर लगानेसे सर्प विष अथवा विष नाग्निदेहति तद्वेश्म प्रभवन्ति न राक्षसाः। | भक्षणका असर नहीं होता। न म्रियन्ते तथा बाला दशाङ्गो यत्र तिष्ठति ।। इति दकारादिधूपप्रकरणम् । अथ दकारादिधूम्रप्रकरणम् (३१६१) दन्तीधूमः हिंगुल (शंगरफ़) ५ माशे, जौका चूर्ण ३ (वृ. नि. र.। कास.) | तोला और सुहागा १। तोला लेकर तीनोंको पानीके दन्तिमूलस्य धृमं वा निर्गुण्डीं चापि योजयेत् । साथ पीसकर बेरके बराबर गोलियां बनावें। श्लेष्मकासं न सन्देहो धूमपानेन तत्क्षणात् ॥ इसमें से एक गोली प्रातः काल चिलममें रक्खें दन्तीमूल या निर्गुण्डी ( संभालु ) का धूम्रपान | और उसपर बेरीकी अग्नि रखकर उसका धूम्रपान करनेसे कफज खांसी अवश्य तुरन्त ही नष्ट हो | करें। शामको गायका दूध और भात खावें । तथा जाती है। शरीरपर कपड़ा ओढ़े रहें और कत्था लगे पानका (३१६२) दरदादिप्रयोगः सेवन करें। इससे १४ दिनमें फिरंग रोग नष्ट हो जाता है। (वै. र. । फिरङ्गवात ) दरदं टङ्कमात्रं स्याधावचूर्ण त्रितोलकम् ।। | (३१६३) देवदादिधूम्रप्रयोगः (भा. प्र. । ख. २ श्वा.) टङ्कणं कर्षमेकं च घृष्यैतत्रितयं क्षणात् ॥ | देवदारुबलामांसीः पिष्ठा वत्ति प्रकल्पयेत् । आबद्धयवटिकां वारा बदरीप्रमितां बुधः।। तां घृताक्तां पिबेद्धमं श्वासं हन्ति सुदारुणम् ॥ तस्या धूमं प्रगे दधात्पातुं कोलाग्निनास्य तु ॥ आच्छादिताङ्गिनः सायं गोदुग्धौदनसेविनः।। देवदारु, खरैटी, और बालछड़ समान भाग लेकर महीन चूर्ण करें और उसे पानीके साथ घोट चतुर्दशदिनाज्जन्तोस्ताम्बूलखदिराशिनः॥ कर बत्तियां बनालें । इनको घृतमें भिगोकर धूम्र सोपि मुक्तो भवेद्रोगाफिरङ्गानिलतो द्रुतम् ॥ पान करनेसे भयङ्कर श्वास भी नष्ट हो जाता है। इति दकारादिधूम्रप्रकरणम् । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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