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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । [30] कंकोल, लवली फल (हरफारेवरी), सफेद चन्दन, पीपल, दालचीनी, इलायची और तेजपात का चूर्ण मिलाकर चिकने मटकेमें भरकर उसका मुख बन्द करके रख दीजिये । ३ सप्ताह पश्चात् आसव तैयार हो जायगा तब उसे निकालकर छान लीजिये । इसे यथोचित मात्रानुसार सेवन करने से अर्श, शोथ, अरुचि, हृदय रोग, पाण्डु, रक्तपित्त, भगन्दर, गुल्म, उदररोग, कृमि, ग्रन्थि, क्षत, शोष, ज्वर और वातपित्तज रोग नष्ट होते तथा बल वर्णकी वृद्धि होती है । ( मात्रा २ - ३ तोले । भोजनोपरान्त पानीमें मिलाकर पीना चाहिये । ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ दकारादि मध्याहने द्विपलं ग्राह्यं सन्ध्याकाले चतुःपलम् । गरिष्ठं स्निग्धमाहारं भक्षयेदस्य सेवकः ॥ वीर्याभिवृद्धिः प्रभवेन्नराणां रामासु वयो भवतीह लोके । तएव धन्या मनुजा नरेन्द्राः द्राक्षासवं ये किल सेवयन्ति ॥ दाख ( मुनक्का ) १०० पल ( ६ । सेर), खांड ४०० पल, बेरीकी जड़ २०० पल, धायके फूल १०० पल, तथा सुपारी, लौंग, जावित्री, जायफल, दारचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर, सोंठ, मिर्च, पीपल, रूमीमस्तगी, पद्मकन्द, अकरकरा और कूठ, १०-१० पल लेकर कूटने योग्य चीज़ोंको कूटकर मिट्टीके चिकने पात्रमें भरकर उसमें सबसे ४ गुना पानी डाल दें और उसका मुख बन्द करके भूमिमें दबा दें एवं १४ दिन पश्चात् उसमें से आसवको निकाल कर कच्छप यन्त्र ( मदिरा खींचनेके यन्त्र ) में डालकर उसका अर्क खींचें और फिर उस अर्क को दूसरी बार उसी प्रकार खींचें परन्तु अबकी बार एक पोटली में केसर और कस्तूरी बांधकर यन्त्रके मुंह पर ( जहां से अर्क टपकता है उस जगह ) लगा दें। अब इस अर्कको बोतलों में भरकर रख दें और तीन दिन पश्चात् सेवन करें । (३१३२) द्राक्षासव : (महा) (५) ( यो. चिं. । अ. ७ ) द्राक्षायाश्च पलशतं सितायास्तच्चतुर्गुणम् । कर्कन्धुमूलं तस्यार्द्ध मूलार्द्धं पुष्पधातुकी ॥ क्रमुकं च लवङ्गश्च जातिपुष्पफलानि च । चातुर्जातं त्रिकटुकं मस्तकीकरहाटकम् ॥ आकलकर कुष्ठं पलानि दशमाहरेत् । एभ्यश्चतुर्गुणं तोयं भाण्डे चैव विनिक्षिपेत् ॥ स्थापयेत् भूमिमध्ये तु चतुर्द्दशदिनानि च । ततो जातरसं शुद्धं क्षिपेत्कच्छपयन्त्रके ॥ मुद्रयित्वा च तस्याधो वह्नि प्रज्वालयेत्सुधी । तस्यांतश्च्यवितं सीधुं गृह्णीयात् सर्वमेव तत् || पुनरेव च तत्सीधुं क्षिपेत्कच्छपयन्त्रके । धाराधोनिक्षिपेत्तस्य मृगनाभिं सकुङ्कुमम् इसे सेवन करने से अत्यन्त वीर्य वृद्धि होती एतत्सिद्धं क्षिपेद्धीमान् काचभाण्डे निधापयेत् । है । वह लोग, जो इसे सेवन करते हैं धन्य हैं। त्रिदिनेषु व्यतीतेषु तत्पेयं पलसंख्यया ॥ ( व्यवहारिक मात्रा - २ से ४ तोले तक । ) 11 इसमें से मध्याह में २ पल (१० तोले ) और शामको ४ पल अर्क पीना और भारी तथा स्निग्ध आहार करना चाहिये । For Private And Personal Use Only
SR No.020116
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages773
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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