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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ गकारादि
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गेरु १ भाग, सेंधानमक २ भाग, पीपल ४ इसे पुनः पकाइये और गाढ़ा होनेपर १ कर्ष भाग, और तगर ८ भाग लेकर महीन चूर्ण करके श्वेतमरिच (संभालुके बीज) और १ पल चमेलीके पानीमें पीसकर गोलियां बना लीजिए। | नवीन पत्तोंका चूर्ण मिलाकर बत्तियां बना लीजिए।
इस गुटिकाञ्जनके प्रयोगसे नेत्राभिष्यन्द रोग यह बतियां समस्त नेत्ररोगों का नाश (आंख दुखना) नष्ट होता है।
करती हैं। (१४६७) गुटिकाञ्जनम् (वं, सेन । विषून्या.) (१४६९) गुडूच्याद्यञ्जनम् ( यो. र.। नेत्र.) गुडपुष्पसाराशिखरीतण्डुलं
गुडूचीस्वरसः कर्षः क्षौद्रः स्यान्माषकोन्मितम् । गिरिकणिका हरिद्रे द्वे । सैन्धवं क्षौद्रतुल्यं स्यात्सर्वमेकत्र मर्दयेत् ॥ अञ्जनगुटिका विलयति
अञ्जयेन्नयनं तेन पिल्लार्मतिमिरं जयेत् । विचिकां त्रिकटुकसनाथा ॥ काचं कण्डूलिङ्गनाशं शुक्लकृष्णजातान्गदान् । गुड़, शहद, अपामार्ग (चिरचिटे) के बीज, गिलोयका स्वरस १ कर्ष और शहद तथा कनेरकी जड़, हल्दी, दारु हल्दी और त्रिकुटेका | सेंधानमक १-१ माषा (स्वरसका १६ वां भाग) चूर्ण करके गोलियां बना लीजिए।
मिलाकर अञ्जन लगानेसे पिल्ल, अर्म, तिमिर, काच, इसे ( पानीमें घिसकर) आंखमं आंजनेसे | कण्ड (खुजली), लिङ्गनाश और शुक्ल तथा कृष्ण विषूचिका नष्ट होती है।
पटल गत नेत्ररोग नष्ट होते हैं। (१४६८) गुडूच्यादिवतिः ।
(१४७०) गुहामूलाद्यञ्जनम् (च. सं. । चि. स्था.; ने. चि.)
(बृ. मा. नेत्ररो.) अमृताहा विसं बिल्वं पटोलं छागलं शकृत् । ताम्रपात्रे गुहामूलं सिन्धूत्थमरिचान्वितम् । प्रपौण्डरीकं यष्टया दार्वी कालानुसारिवा ॥ आरनालेन संघृष्टमजनं पिल्लनाशनम् ॥ सुधौतजर्जरीकृत्य कृत्वा चापलांशकम् । शालपर्णी अथवा पृष्टपर्णाकी जड़, सेंधानमक तोये पक्त्वा रसे पूते भूयः पक्थे घने रसे ।। और काली मिर्चको काञ्जीके साथ ताम्र पात्रमें कर्ष च श्वेतमरिचाज्जातिपुष्पानवात्पलम् । घिसकर अञ्जन लगानेसे पिल नामक नेत्र रोग चूर्ण कृत्वा कृता वत्तिः सूक्षिरोगनुत् ॥ नष्ट होता है।
गिलोय, कमलनाल, बेलगिरी, पटोलपत्र, (१४७१) गोपयः सर्पिषोर्योगः(ग.नि.नेत्रा.) बकरीको मांग (मल). पुण्डरिया, मुलैठी, दारुहल्दी, कृष्णाया कृष्णवत्साया गोपयः सपिरेव च। हल्दी और सारिवा आधा आधा पल लेकर सबको पानेऽक्षिण तर्पणे नस्ये परमं चक्षुषोहितम् ॥ भली भांति धोकर, कूटकर (४० पल-२॥ सेर) ___ कृष्णवत्सा (काले बच्चेवाली) काली गायका पानीमें पकाइये । और (जब १० पल पानी शेष | दूध और घृत पोना, आंखोंमें डालना और उसकी रहे तो उतारकर) छान लीजिए । इसके पश्चात् । नस्य लेना आंखोंके लिए हितकर है।
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