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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [७४] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि प्रकारके दन्त और नख विष (-जंतुओंके काटने (१४५०) गोरोचनादिलेपः (भा. प्र.मु.रो.) या नोंचनेसे शरीरमे प्रवेश करने वाले विष ) इस तद्वद् गोरोचनायुक्तं मरिचं मुखलेपितम् । प्रकार नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार कि सूर्योदयसे । गोरोचन और स्याहमिर्च समान भाग पीसकर अन्धकार । मुख पर लेप करनेसे यौवन पिडिका (युवावस्थामें (१४४७) गोदन्तलेपः (धन्व. । व्रण.) । उत्पन्न होनेवाली पिडिका-मुंहासे) नष्ट होती हैं । गवां दन्तं जले घृष्टं बिन्दुमात्रं प्रलेपतः । (१४५१)गोशकृदादिलेपः(वृ.यो.त.।त.१२०) अत्यन्तकठिने चापि व्रणे पाचनभेदनम् ॥ । गोशकृत्सिन्धुसंयुक्तं रजनीमाक्षिकेण तु । - गायके दन्तको जलमें घिसकर एक बिन्दु । पिष्ट्वाप्रलेपनं योज्यं पामाकच्छूविनाशनम् ।। मात्र लेप करदेनेसे ही अत्यन्त कठिन व्रण (कच्चा गायका गोबर, सेंबा और हल्दीके चूर्णको शहदमें मिलाकर लेप करनेसे पामा (खुजली) और घाव-फोड़ा ) भो पककर फूट जाता है। | कच्छ्ररोग नष्ट होता है। (१४४८) गोपीचन्दनलेपः (यो.र.।उपदंश) (१४५२) गौरसर्षपलेपः (भा.प्र.ख.२.वा.र.) गोपीचन्दनतुत्थे च समभागेन मर्दयेत् । . गौरसर्षपकल्केन प्रदेहो वा रुजापहः। कजली जलसंयुक्ता व्रणानां लेपने हिता॥ सफेद सरसोंको पिठीकी भांति पीसकर मोटा गोपीचन्दन और नीलाथोथा समान भाग | मोटा लेप करनेसे वातरक्तकी पीडा शान्त होती है। लेकर खरल करके कजलके समान बारीक कर (१४५३) गौरीपाषाणलेपः (वृ. नि.र.।अर्श.) लीजिए। गौरीपाषाणकर्षकं स्नुहिकाण्डे विनिःक्षिपेत् । इसे पानीमें मिलाकर लेप करनेसे उपदंशत्रण पाचयेत्पुटपाकेन तत उद्धत्य यत्नतः ॥ ( आतशकके घाव ) नष्ट होते हैं । रेवाचिनी च कुष्ठं च कल्की कृत्य त्रयं समम्। (१४४९) गोमूत्रादिलेपः(ग.नि. रा.मा.।कुष्ट.) लेपयेत्तेन अर्शीशि निवार्यते न संशयः ॥ आरण्यगोमयनिघृष्टमति प्रलिप्तं ।। थोहरके डण्डेको थोड़ी दूर तक चाकूसे काटगोमूत्रतक्रलवणैः कथितैः प्रयत्नात् ॥ | कर भीतरका गूदा निकाल दीजिए और फिर उसमें नाशं प्रयाति रकसं चिरसम्परूढ-। १। तोला सफेद संन्या भरकर उसके मुख पर वही थोहरका कटा हुवा टुकड़ा लगाकर भली भांति मप्याशु पापंमिव संस्मरणेन शम्भोः॥ कपडमिट्टी करके भूबलमें दबा दीजिए । जब वह सेंधानमकको गोमूत्र और तक्रमें पकाकर पकजाय तो संख्येको निकाल कर पीस लीजिए । गाढाकर लीजिए । फिर रकस ( सूखी खुजली ) उसमें समान भाग रेवन्द चीनी और कृठका चूर्ण को अरण्य गोमय (गायके अरने उपले )से रगड़. मिलाकर पानी में पीसकर लेप करनेसे मस्से अवश्य कर उपरोक्त काथका लेप कर दीजिए। इस प्रयोगसे नष्ट हो जाते हैं। रकस अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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