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________________ www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir nnnnnnniv.runninhni.rue.. लेपपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [७३] (१४४०) गृहधूमादिलेपः फिटकरी, 'गेरु, नीलाथोथा, पुष्पकासीसं ( बं. से.; ग. नि.; यो. र.; वं. मा. । बा. रो.) ( कसीस ) सेंधानमक, लोध, रसौत, हरताल, गृहधूमनिशाकुष्ठस केन्द्रयवैः शिशोः।। मनसिल, रेणुका ( संभालूके बीज ) और इलायची चन्दनोशीरपद्मश्च' सिध्मपामाविचर्चिनुत् ॥ समान भाग लेकर चूर्ण करके शहदमें मिलाकर उपदंशके व्रणोंपर लगाना लाभदायक है । घरका धुवां, हल्दी, कूठ, राल और इन्द्रजौ (१४४४) गैरिकादिलेपः ( र. र. । उपदंश) अथवा चन्दन ( सफेद ) खस और कमलपुष्पका गैरिकाञ्जनमञ्जिष्ठामधुकोशीरपद्मकैः। लेप करनेसे बालकोंका पामा र खुजली ) और सचन्दनोत्पलैः स्निग्धैः पैत्तिकं संपलेपयेत्॥ विचर्चिका रोग नष्ट होता है । पैत्तिक उपदंश (आतशक ) के व्रणपर गेरु, (प्र.वि. तक्रमें मिलाकर लेप करना चाहिए।) सुरमा, मजीठ, मुलैठी, खस, पद्माख, सफेदचन्दन (१४४१) गृहधूमादिलेपः और नीलोफरके चूर्णको घृतमें मिलाकर लगानेसे ( भा. प्र. । म.; वं. से. । वा. र.) लाभ होता है। गृहधूमो वचा कुष्ठं शताहा रजनीद्वयम् । - (१४४५) गोक्षुरादिलेपः प्रलेपः शूलनुद्वातरक्ते वातकफोत्तरे ॥ ( वृ. नि. र.; वं. से. । क्षु. रो.) घरका धुवां, बच, कूठ, सोया, हल्दी और | गोक्षुरसतिलपुष्पाणि तुल्ये च मधुसर्पिषी। दारुहल्दीका लेप करनेसे वातकफ प्रधान वात रक्तकी शिरपलेपितं तेन केशैः समुपचीयते ॥ पीड़ा शान्त होती है। समान भाग गोखरु और तिलपुष्पोंके चूर्णको (१४४२) गैरिकादिलेपः (भा. प्र. । कर्णमूल.) | बराबर बराबर शहद और घीमें मिलाकर शिरपर गैरिकं कठिनी शुण्ठी कट्फलारग्वधैः समैः। । लेप करनेसे अत्यधिक बाल उत्पन्न होते हैं। उष्णैः काञ्जिकसम्पिष्टैर्लेपः कर्णकमूलनुत् ॥ गोक्षुरादिलेपः (वृ. नि. र.; यो. र. । मू. कृ.) गेरु, खिड़िया मिट्टी, सोंठ, कायफल और (श्वदंष्ट्रादि लेप अवलोकन कीजिए । ) अमलतासका गूदा समान भाग लेकर गर्म काजीमें । (१४४६) गोजिहायोगः (रा.मा. । अधि. २८) पीसकर लेप करनेसे कर्णमूल नष्ट होता है। पिष्टा जलेन मधुना मिलिता ततोऽनु (१४४३) गैरिकादिलेपः (वं. से. । उपदंश) | गोजिहिका हरति लेपविधौ प्रयुक्ता । सौराष्ट्री गैरिकं तुत्थं पुष्पं काशीशसैन्धवम् । सर्वाणि दन्तनखजानि विषाणि पुंसालोधं रसाञ्जनं वापि हरितालं मनः शिलाम् ॥ मभ्युद्धमो दिनकरस्थ यथा तमांसि ।। हरेणुकैले च तथा समांशान्यपि चूर्णयेत् । गोजिया घास ( अथवा गोभी) को पानीमें तच्चूर्ण क्षौद्रसंयुक्तमुपदंशेषु योजितम् ॥ पीसकर शहदमें मिलाकर लेप करनेसे समस्त १ लेपस्तकेण हन्त्याशु इति पाठान्तरम् । भा० १० For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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