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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ७० ] www.kobatirth.org भारत - भैषज्य रत्नाकरः । गिरिकर्णिद्वयं शेलुः पाटला द्वे पुननवें । कपित्थश्च शिरीषश्च लेपो लूतां विषापहः ॥ दोनो प्रकारकी कोयल, हिसोड़ा (रीठा ) पाढल, दोनों प्रकारका पुनर्नवा, कैथ और सिरसकी छालका लेप करनेसे मकड़ीका विष नष्ट हो जाता है 1 (१२२४) गुग्गुल्वादिलेपः ( वा. भ. । चि. स्था. कुटा. १९ ) गुग्गुलुमरिच विडङ्गैः सर्षप कासीससर्जरसमुस्तैः। श्रीवेष्ठकालगन्धैर्मनः शिलाकुष्ठुकम्पिल्लैः ॥ उभय हरिद्रासहितैश्चाक्रिक तैलेन मिश्रितैरेभिः दिनकरकरामितप्तैः कुष्ठं घृष्टश्च नष्टश्च ॥ गूगल, स्याह मिर्च, बायबिडंग, सरसों, कसीस, राल, मोथा, श्रीवेष्ट (धूप सरळ), हरताल, गन्धक, मनसिल, कूठ, कबीला, हल्दी, और दारु हल्दो, के समान भाग चूर्णको पंबाड़के तैलमें मिलाकर धूप में गरम करके लेप करनेसे घृष्ट ( धरोंट ) और कुछ नष्ट होता है । * (१४२५) गुञ्जादिलेप: (बृ.नि.र. ब. दोष.) गुआं कुष्ठवचानिम्बैर्वारिपिष्टैः प्रलेपनात् । श्वेतपराजितामूलं हन्ति श्वित्रमसंशयम् ॥ गुञ्जा ( चौंटली ) कूठ, बच, नीमको छाल और सफेद अपराजिता ( कोयल ) की जड़की पानी में पीसकर लेप करनेसे सफेद को अवश्य नष्ट हो जाता है । (१४२६) गुञ्जादिलेप: (ग.नि. रा. मा. कुश.) अपगततुषगुञ्जाचूर्ण हैयङ्गवीनं प्रमृदितमुपशान्ति कुष्ठिनो याति कुष्ठम् । * अथवा कुष्टको खुजाकर लेप करनेसे वह नष्ट होता है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ गकारादि यदि तु भवति लिप्तं सर्वतस्ताम्रपात्रे गृहितमथितस्तन्नभूयो भवेत्तु ॥ छिलके रहित गुञ्जा ( चौंटली ) के चूर्णको नवनीत ( नौनी - मस्का ) में घोटकर मालिश करने से कुष्ट नष्ट होता है । और यदि मन्थकी गाद (जल रहित छानी हुई दहीकी तलछट ) को ( कुछ समय तक ) ताम्रपात्र में रक्खा रहने देनेके बाद समस्त शरीर में उसकी मालिश की जाय तो पुनः कुछ होने का भय नहीं रहता । (१४२७) गुञ्जादिलेप: (यो. र. । कुष्ट) गुञ्जाचित्रकशलभस्मरजनीदुर्वाभयालाङ्गली स्नुक्सिन्धूत्थकुमारिकाजलधरार्क क्षीरधू मेशजैः । बल्यू एडगजविडङ्गमरिचक्षौद्रैश्च वारियुतैः कार्य वै गजचर्मदरसा कण्डुघ्नमुद्वर्त्तनम् ॥ For Private And Personal चौंटली (गुञ्जाफल ), चीतेकी जड़, शंख भस्म, हल्दी, दूब घास, हर्र, कलिहारी, थोहरका दूध, सेंधानमक, घीकुमार, नागरमोथा, अर्क दुग्ध, धरका धुवा, पारा, बाबची, पंवार, बायबिडंग और स्याहमिचेका समान भाग चूर्ण एकत्र करके शहद में मिलाकर मलने से गजचर्म, दाद, रकस और खुजली, नए होती है । ( विधिप्रथम पारदको घरके वेंके साथ. घोटकर कजली कर लीजिए पहचान अन्य वस्तु ओंका चूर्ण मिलाइये | ) (१४२८) गुञ्जापत्रादिलेप: (वं. से. रो.) गुञ्जापत्रं विषं तैलं तिला मधुककाञ्जिकम् । पतन्त्यनेन नो केशा लेपाद्रोहन्ति चाद्भुतम् ॥
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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