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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। - - विकार विशेष चेपा-सीप ) एकही दिनमें नष्ट (१४२०) गिरिकर्णिकादिलेपः हो जाता है। (वैद्यामृत । विषय ३४ ) (१४१६) गन्धकादिलेपः (यो. २. कुया.) मूलं सिताया गिरीकर्णिकाया बलिवेल्लाग्निभल्लातदन्तीशम्पाकनिम्बकैः। मूलं विशालाभवमुग्रगन्धा। काजिकैः पेपितैर्लेपः श्वेतकुष्ठविनाशकृत् ॥ गोमूत्रपिष्टत्रितयस्य लेपागन्धक, बायबिडंग, चीतेकी जड़, भिलावा, सोपद्रवा गच्छति गण्डमाला ॥ दन्तीमूल, अमलतास, और नीमकी छालको कानीमें सफेद कोथलकी जड़, इन्द्रायणकी जड़ और पीसकर लेप करनेसे श्वेत कुष्ट नष्ट होता है। | बच, बराबर बराबर लेकर गोमूत्रमें पीसकर लेप (१४१७)गन्धपाषाणलेपः(वृ.यो.त.।त.१२०) करनेसे उपद्रवयुक्त गण्डमाला भी नष्ट हो जाती है। पाषाणचूणेन्तु कटुतलेन याजितम् । (१४२१) गिरिकर्णिपुष्पलेपः (वै.म.।प.१६) लेपनादथ पानाद्वा कच्छूपामाविनाशनम् ॥ । अन्तर्वहिनयनयोगिरिकर्णिकायाः (शुद्ध) गन्धकको कटुतैलमें मिलाकर लेप करने पुष्पं गवां पयसि पेपितमर्भकानाम् । और पीनेसे कच्छू और पामा रोग नष्ट होता है। संयोजयेद्दशनजन्मनिदानभूतम् ।। (१४१८) गाढीकरणो लेपः (यो. चिं.।अ.७) रोगं कुकूणकमपोहति शीघ्रमेव ।। नूकर धातुकी जाङ्गी सौराष्ट्रफुल्लकं तथा।। गिरिकर्णिका ( कोयल अथवा अमलतास ) माजूफलं हौहबेरलोधं दाडिमत्वक् तथा ॥ ! के फूलोंको गायके दूध में पीसकर बच्चोंकी आंखके कादंवर्या भगे लेपो गाढीकरणमुत्तमम् ॥ बाहर लेप करने और भीतर आंजनेसे दांत निक नीलोफर धायके फूल, काबली (पीली) हैड, लनेके कारण उत्पन्न कुकूणक नामक नेत्ररोग शान्त फिटकरीकी खील, माजूफल, हाऊबेर, लोध और होता है । अनारकी छाल, के चूर्णको कादम्बरी ( सुरा ) में (१४२२) गिरिकर्णिमूललेवः (रा.मा.। कुष्ठ.) मिलाकर लेप करनेसे स्त्रीका गुह्याङ्ग दृढ़ होता है। मूलेन पिष्टेन सिताद्रिका(१४१९) गायत्र्यादिलेपः शीताम्बुयुक्तेन विलिप्य गाहम् । ( वृ. नि. र.; यो. र.; वं. से. । विसर्प.) पक्षात्प्रणाशं सितमेति कुष्ठं गायत्रीसप्तपर्णाहवासारखधदारुभिः। चिरमरूढं द्विगुणैर्दिनैस्तु । कुटन्नटैर्भवेल्लेपो विसर्प श्लेष्मसम्भवे ॥ सफेद कोयलकी जड़को शीतल जलमें खैरसार, सतौना, बासा, अमलतास, देवदारु पीसकर लेप करनेसे नूतन स्वेत कुष्ट १५ दिनमें और नागरमोथा समान भाग लेकर पीसकर कफज और पुराना १ मासमें नष्ट हो जाता है। विसर्पमें लेप करना हितकर है। (१४२३) गिरि कादिलेपः(वृ.नि.र.। वि.चि.) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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