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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [६८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [ गकारादि अथ गकारादिलेपप्रकरणम् मांगन ) और जमालगोटेकी गिरी समान भाग लेकर नीबूके रसमें घोट लीजिए । (१४१०) गदादिलेपः (वृ. नि. र. । ग्रन्थि.) गण्डमाला और अपचीको शस्त्रशे चीर कर उनके ऊपर यह लेप लगाकर ऊपरसे अरण्डका पत्ता सर्वेषामेव ग्रन्थीनां रक्तस्रावः प्रशस्यते।। । बांध दीजिए । इससे तीन दिनमें गांठे फूट जायगी गदार्कदुग्धतालेन जैपालेन विनाशयेत् ।। तब उन पर दहीभातकी पुल्टिस बांध दीजिए । सर्व प्रकारकी ग्रन्थियोंमें रक्तस्राव कराना इस क्रियासे गण्डमाला और अपचीकी गाठे बाहर हितकर होता है। निकल जाती हैं। प्रन्थिपर कूठ, आकका दूध, हरताल और (१४१३)गन्धकादिलेपः(वृ.नि.र.;यो.र.।गं.मा.) जैपाल ( जमालगोटे )का लेप करनेसे वह नष्ट हो गन्धकं मूतकं तुल्यं अर्कक्षीरं ससैन्धवम् । जाती है ॥ पिटवा च काश्चनीमूलं लेपोयं गण्डमालिके ।। (१४११) गन्धकादिलेपः गण्डमालामें गन्धक, पारा, अर्कदुग्ध, सेंधा(वृ. नि. र.। त्वक्दोष; वृं.मा.;ब.से. यो.र.।कुष्टा०) नमक और हल्दीको पीसकर लेप लगाना चाहिए। (प्र. वि. )—प्रथम पारे और गन्धकको गन्धपाषाण मिश्रेण यवक्षारेण लेपितम् ।। | एकत्र घोटकर कजली बना लीजिए, तत्पश्चात अन्य सिध्मं नाशमुपैत्याशु कटुतैलयुतेन च ॥ ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर आरके दूधमें धोटिए।) गन्धक और यवक्षारको कड़वे तैल में मिलाकर (१४१४) गन्धकादिलेपः (यो. र. । अर्बुद) लेप करनेसे सिध्म ( चेपा-सीप) नष्ट होता है। गन्धाशिलाविश्वौषधविडङ्ग (१४१२) गंधकादिलेपः(वृ.नि.र.;यो.र.ग.मा.) नागभस्मभिः समैश्चूर्णम् । गन्धकं टङ्कणं सिन्धुकाश्चनी नवसारकम् ।। कृकलासरक्तयुक्तं सौवर्चलं यवक्षारं काचं रक्तं सुवर्चलम् ॥ लेपात्सद्योऽर्बुदध्वंसि ॥. सितंरक्तश्च पाषाणं मूषकोत्थं नियोजयेत् । गन्धक, मनसिल, सोंठ, बायबिडंग और जेपालबीजमज्जा च सर्व जम्बीरपीडितम् ॥ | सीसेकी भस्म बराबर बराबर लेकर चूर्ण करके लेप शस्वैश्छिवा प्रदातव्यं वेष्टयमेरण्डपत्रकैः। करनेसे रक्तयुक्त कृकलास ( कुष्ठ भेद ) और एवं व्यहात्स्फुटन्त्यत्र दध्यन्नं बन्धयेत्ततः॥ अर्बुद ( रसौली ) का नाश होता है । गण्डमालाग्रन्थ्यपच्यो बहिनिर्यान्ति नान्यथा॥ (१४१५) गन्धकादि लेपः (रसें.चिं.म.अ.९) ___ गन्धक, सुहागेकी खील, सेंधानमक, हल्दी, | गन्धकं मूलकक्षारमाईकस्य रसैदिनम् । नवसादर, कालानमक ( सौंचल ) जवाखार, कंच, | मर्दितं हन्ति लेपेन सिध्मं तु दिनमेकतः ॥ शिंगरफ ( अथवा सिन्दूर ) सजीखार, सफेद गन्धक और मूलीके खारको एक दिन अद्रकके और लाल संखिया, मूषाकर्णी ( अथवा चूहेकी । रसमें घोटकर लेप करनेसे सिध्म रोग ( त्वक् For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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