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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir आसवारिष्टप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [६७] जलद्रोणे विपक्तव्यं पादशेषे जले ततः। यह गुग्गुल्वासव आयु और सात्म्यादिका धातक्याः प्रस्थमेकन्तु तथा गुडशतद्वयम् ॥ विचार करके सभी रोगोंमें भोजनके आदि, अन्त, द्राक्षादाडिमखण्डानां भागान्दशपलोन्मितान्। मध्य, प्रत्येक ग्रास अथवा हर दूसरे ग्रासके पश्चात् सर्वमेतत्समालोड्य स्थापयेद्भाजने शुभे ॥ (यथोचित मात्रानुसार) सेवन कराया जा सकता है । यदा युक्तरसः स्याञ्च सुजातो गन्धवर्णतः। यह उदररोग, तिल्ली, उरुस्तम्भ, कामला, तम्बूरयेत्तदा भाण्डे मुक्तस्येक्षुरसस्य तु ।। पुराना श्वास, कास, शोथ, भगन्दर, कृमि, कुष्ठ षण्माससंयुतो ह्येष द्रवो पेयः प्रयोगतः। | और प्रमेह रोगका नाश तथा अग्नि प्रदीप्त करता है। गुग्गुल्वासव इत्येष देयः सर्वेषु रोगिषु ॥ (१४०८) गुडतक्रम् (शुक्तम् ) (वं. से. । रसा.) पाग्भक्तं मध्यभक्तं वा ग्रासे ग्रासान्तरे तथा। गुडमधुकाजिकतक्रम् , दद्यात्क्रमेण योगं तु वयः सात्म्यमपेक्ष्य च ।। यथोत्तरं द्विगुणभागसंवृद्धम् ॥ नाशयेदुदरं प्लीहामूरुस्तम्भं सकामलम् । न्यस्तन्तु धान्यराशी, चिरोत्थितमपिश्वासं कासशोफभगन्दरान् ।। त्रिदिवसमिति भवेच्छुक्तम् । कृमिकुष्ठप्रमेहेषु हितश्चैवाग्निदीपनः ॥ गुड़ १ भाग, शहद २ भाग, काजी ४ ___ क्वाथ द्रव्य हर्र और बहेड़ा १००...१००/ भाग और तक ८ भाग एकत्र करके मटकेमें भरकर नग (अथवा (१००-१०० पल), आमले (शुष्क) मुंह बन्द करके अनाजके ढेरमें दबा देनेसे ३ १ प्रस्थ (१ सेर), गूगल ४ पल (२० तोले) दिनमें शुक्त तैयार हो जाता है । दारचीनी, इलायची, पीपलामूल, चव्य, चीता, अज- (१४०९) गुडारिष्टः (च. सं. । चि. स्था. पाण्डु.) वायन, तालीसपत्र, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल), मञ्जिष्ठारजनीद्राक्षाबलामूलान्ययोरजः । मोथा, नागकेसर और कायफल । २०-२० तोले। | रोधं चैतेषु गौडः स्थादरिष्टः पाण्डुरोगिणाम ॥ प्रक्षेप द्रव्य - -धायके फूल १ प्रस्थ (१ सेर), मजीठ, ह दी, द्राक्षा (मुनक्का), खरैटीकी जड़ गुड २०० पल, द्राक्षा ( मुनका), और अनारके - शुद्ध लोहचूर्ण, लोध और गुडसे निर्मित गौडः टुकड़े १० --20 पल । (गुडारिष्ट) पाण्ड्डरोगीके लिए हितकर होता है । विधिः-क्वाथ द्रव्योंको कूटकर २ डोण (३२ (प्रा. वि. ---समस्त ओषधियोंका चूर्ण ४-४ सेर) जलमं पकाकर ८ सेन शेष रहने पर छान पल, और जल १ द्रोण (१६ सेर) लेकर पकाकरलीजिए । और फिर उसमें प्रक्षेप द्रव्यांका चूण उसमें १०० पल गुड मिलाकर मिट्टी के मटकेमें मिलाकर घृतसं चिकन मटकेमें भरकर मुग्व बन्द भरकर १ मास तक रक्ग्वा रहने दीजिए, तत्पश्चात् करके रख दिजिए । जब उसमें ओषधियोंका ग्स | छानकर काममें लाए । मात्रा १। तोला, समान वर्णादि प्रकट हो जाय तो उसे इक्षुरसके पात्रमें | भाग पानी मिलाकर भोजनके पश्चात पियें ।) भर कर मुख बन्द करके रख दीजिए और ६ मास | इति गकाराद्यासवारिष्टप्रकरणम् । पश्चात् निकालकर काममें लाइये । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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