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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [६६] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। [गकारादि (मात्रा १। तोला । समान भाग पानीमें मिला दशमूल ६। सेर, कुड़की छाल २५ पल (१२५ कर भोजनके पश्चात् पियें ।) . तोले), भिलावा, इन्द्रजौ, बायबिडंग और नागर(१४०६) गन्डीरामवः (ग. नि. । आस. ६) मोथा आधा आधा प्रस्थ (४० तोले), पाठा, मूर्वा, जातसारं तु गण्डीर सपुष्पं परिशोपयेत । दन्तीमूल, बच और चीता १० १० पल तथा खण्डशः क्षोदितं कृत्वा तस्य पञ्चाढकं पचेत् ॥ मुनका १ आढक (४ सेर)। सबको कृटकर १० त्रींश्चैव त्रिफला प्रस्थान दशमली तुलां तथा। द्रोण (१६० सेर) पानीमें पका लीजिए, जब दो दद्यात्कुटजबलकस्य पलानां पञ्चविंशतिम् ३४३ द्रोण पानी शेष रह जाय तो उतारकर छान लीजिए । भल्लातकानीन्द्रयवं विडङ्गं घनमेव च। तत्पश्चात इसमें १ तुला (६। सेर) शुद्ध गुड़, २ अर्धप्रस्थसमान् भागानेकैकस्यसमावपेत्।३४४ प्रस्थ (२ सेर) शहद और निम्न लिखित प्रक्षेप पाठा मधुरसा दन्ती षड्ग्रन्था चित्रकस्तथा।। द्रयोंका चूर्ण मिलाकर घृताक्त ( चिकने ) मटकेमें एषां दशपलान्भागान्मृद्वीकायास्तथाढकम्।३४५ (कि जिसके भीतर मरिच चूर्ण मिश्रित भधुका लेप तोयद्रोणेषु दशसु पचेद् द्विद्रोणशेषितम् । कर दिया गया हो) भर कर यथाविधि मुख बन्द तस्मिन्कषाये पूते तु गुडस्यैकां तुलां क्षिपेत् ॥ करके १मास पर्यन्त रक्खा रहने दीजिए और उसके तथा तु शोधितस्यापि शुभे भाण्डे निधापयेत् । पश्चात् छानकर रोगी और रोगके बलाबलका विचार द्रौ प्रस्थौ मधुनश्चैव द्वावयोरजसस्तथा ॥३४७ करके यथोचित मात्रानुसार सेवन कगना चाहिए । अर्ध प्रस्थो विडङ्गानां कुडवो मरिचस्थ च। यह गण्डीरारिष्ट शोष, प्रमेह, गुल्म, उदररोग, एतयोः मूक्ष्मचूर्णानि प्रतिवापार्थमाहरेत् । ३४८ कृमि, कुष्ट, प्लीहाभिवृद्धि, अर्श, भगन्दर, शोथ, चूर्ण मरीचकानाश्च मधुना सह योजयेत् । पाण्डु, ग्रहणी, प्रन्धि, गलगण्ड, गण्डमाला, विषम भाण्डमलेपः कर्त्तव्यः समासिच्य निधापयेत् ।। ज्वर, खांसी, विद्रधि और वातरक्तको इस प्रकार एष मासस्थितः पेयो यथाव्याधि बलाबलम् । नष्ट करता है जिस प्रकार युद्ध में - असुरोंका गडिरारिष्ट इत्येष व्यासतः परिकीत्तितः।३५० संहार करता है। एष शोषान् प्रमेहांश्च गुल्मांश्च जठराणि च । | प्रक्षेप द्रव्य..... शुद्ध लोहाचूर्ण २ प्रस्थ, बायक्रिमिकुष्ठानि वानि प्लीहासि भगन्दरम् ॥ बिडंग आधा प्रस्थ, और म्याह मिर्च २० तोले । श्वयथून पाण्डुरोगांश्च ग्रहणीदोषमेव च। सबका महीनचूर्ण करके उपरोक्त काथमें मिला । ग्रन्थींश्च गलगण्डं च गण्डमालां तथैव च ॥३५२ (१४०७) गुग्गुल्वासवः (ग. नि. । आमवा.) विषमज्वरकासांश्च विद्रधीन वातशोणितान् । शनं हरीतकीनान्तु विभीतकशतं तथा । अरिष्टःशमयत्याशु युधि शक्र इवासुरान् ।३५३ प्रस्थमामलकानाञ्च गुग्गुलोश्च चतुप्पलम् ॥ काथ द्रव्य---सार और पुष्पयुक्तः शुष्क त्वगेलापिप्पलीमूलचपचित्रकीयकम् ।। मजीठ २० सेर (१६०० तोले), त्रिफला ३० सेर, | तालीसपत्रत्रिकटुमुस्तकेसरकटफलम् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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