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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लेपपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ७१] - - चौंटलीके पत्ते, मीठातेलिया, तिलतैल, तिल | गुञ्जाफल ( चौंटली ) और चीतेके चूर्णका और मुलैठीके चूर्णको काञ्जीमें पीसकर शिरपर लेप अथवा मनसिल और चिरचिटे (अपामार्ग-पुटकण्डे) करनेसे ( अथवा इस मिश्रगसे शिर धोनेसे ) बाल की राखका लेप करनेसे श्वेतकुष्ट ( सफेद कोढ़ ) नहीं गिरते और इतने अधिक बढ़ते हैं कि देवकर । नष्ट होता है । आश्चर्य होता है। । (१४३२) गुज्जालेपः(यो.त.।त.७३,रा.मा.शिरो) (१४२५) गुजाफललेपः ( यो. र.) मार्कवस्वरसभावितगुञ्जाबीजचूर्णपरिपाचितौलम तक्षयित्वा क्षुरेणा केवलानिलपीडितम् । मिश्रितत्रुटिनटासुरकानैः केशभारजननं जनतायाः तत्र प्रदेहं दद्याच पिष्वा गुञ्जाफलैः कृतम् ॥ काले भांगरेके स्वरमसे ( कईबार ) भावित नेनापबाहुजा पीडा विश्वाची गृध्रसी तथा। गुना ( चौंटली ) और छोटी इलायची, जटामांसी अन्यापि वातजा पीडा प्रशमं याति वेगतः ॥ ( बालछड़ ) और देवदारके क क तथा काथसे यदि किसी अङ्गमें केवल वातज पीड़ा हो | सिद्ध तैल (शिरमें लगाने ) से अत्यधिक केशवृद्धि तो वहां नशतर लगाकर चौंटलीको पीसकर लेप । होती है। कर देना चाहिए । इस क्रियासे अपबाहुक, विश्वाची, । (१४३३) गुनासरणलेपः (वृ. नि. र. अर्श.) गृध्रसी और अन्य वातज पीडाणं शीघ्र नष्ट होती हैं। गुञ्जाशरणकूष्माण्डबीजैर्वतिस्तथा गुणाः। (१४३०) गुजाफललेपः (ग. मा. । शिगे.१) गुञ्जाफल ( चौंटलो ) जिमीकन्द और पेठेके मच्छानपूर्व परिपिष्टगुञ्जा बीजोंको पीसकर बती बनाकर गुदमार्गमें रखनेसे फलै.समालेपितमिन्द्रलुप्तम् । । अर्श नष्ट होती है। प्रणाशमायात्यचिरेण पुंसा । (१४३४) गुडगृहधूमलेपः (वै.ग.। ५.१७) मल्पैदिनैदारुण मुघोरम् ॥ गुडगृहधूमचूर्णसमुदायविलिपमिदम् । ( जोकादिसे ) रक्तस्राव करानेके पश्चात् कफपवनोद्भवग्रथितशोफरुजाबहुलम् ॥ गुञ्जाफल ( चौंटली) को भलिभाति पीसकर लेप व्रणमथ हन्त्यनवं जनयेत् सुखमाशुतरम् ॥ करनेसे इन्द्र लुप्त ( बाल नष्ट हो जाना--गन ) गुड़ और घरका धुवां समान भाग मिलाकर और भयङ्कर दारुण रोग अत्यन्त शी ( कुछ ही लेप करनेसे कफवातज सूजन और पीडायुक्त दिनोंमें ) नष्ट हो जाता है। | पुराना ब्रण ( धाव ) अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता (१४३१) गुजाफलादिलेपः है और पीडा तुरन्त शान्त हो जाती है । (वृ.नि. न.. त्वग्दाष;रस.चि.म.। अ..र..सु.।कुष्ठा.) (१४३५) गुडादिलेपः (रा.मा.।पादरोगा.) गुञ्जाफलाग्निचूर्णस्य लेपनं श्वेतकुष्ठनुत ।। गुडगुग्गुल सर्जरसँगैरिक सिन्धृत्थसिक्थकाक्षौंद्रैः शिलापामार्गभस्मादिलेपान्त्रिविनाशनम्॥ सिद्धार्थक मधुकघृतेन स्फुटनो लेपितावधी ।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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