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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तैलपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [५९] उन्हें इसी प्रकार एक दिन दूध और मुलैठीके काथमें । ___ गन्धकपिष्टी को कड़वे तैलमें पकाकर तैंल रात्रि भर भिगोकर प्रातःकाल सुखाइये फिर गोदु- छानकर रख लीजिए। इसकी मालिशसे पामा ग्धसे एक रात भिगोकर चूर्ण कर लीजिए । तत्पश्चात् । (खुजली) नष्ट होती है। काकोल्यादि गण, मुलैठी, मजीठ, सारिवा, कूठ, (प्र. वि.-गन्धक पिष्टी १ भाग, तैल ४ भाग, राल, जटामांसी, देवदारु, चन्दन, और सोया बरा- पानी १६ भाग लेकर तैलावशेष पर्यन्त पकाइये।) बर बराबर लेकर चूर्ण करके उपरोक्त तिल चूर्णमें (१३८३) गन्धर्वहस्तौलम् . उसके समान मात्रामें मिला लीजिए। तत्पश्चात् (भै. र.; धन्वं.; र. र.; ग. नि.; वं. से. । वृद्धि. इस चूर्णको सर्वगन्धं सिद्ध दुग्धसे आई ( गीला) ग. नि. । परिशिष्ट ते. २) . . करके कोल्हूमें पिलवाकर तैल निकलवा लिजिए। शतमेरण्डमूलस्य पले शुठया यवाढकम् । इस तैलको चतुर्गुण जल और इलायची, जलद्रोणे विपक्तव्यं यावत्पादावशेषितम् ॥ शालपर्णी, तेजपात, जीवन्ती, असगन्ध, लोध, | तेन पादावशेषेण पयसा तत्समेन च । पुण्डरिया, तगर, भूरिछरीला, क्षीर बिदारी, दूब, मूर्वा, | प्रस्थमेरण्डतैलस्य तन्मूलाच चतुष्पलम् ॥ सिंघाड़ा और पूर्वोक्त काकोल्यादिगण, मुलैठी इत्यादि त्रिपलं शृङ्गबेरश्च गर्भ दत्वा विपाचयेत् । समस्त ओषधियोंके कल्कके साथ मन्दाग्नि पर पका | तत्पिबेत्मयतः शुद्धो नरःक्षीरानभुक्सदा ॥ लीजिए। अन्त्रवृद्धि जयत्याशु तैलं गन्धर्वहस्तकम् ॥ इसे पान, अभ्यङ्ग, नस्य, बस्ति और भोज- अरण्डमूलकी छाल १०० पल (६। सेर ) नमें प्रयुक्त करनेसे भग्न, आक्षेपक, पक्षाघात, तालु- सोंठ २ पल और जौ ४ सेर लेकर कूटकर १ द्रोण शोष, अर्दित, मन्यास्तम्भ, शिरोरोग, कर्णशूल, हनुग्रह, (१६ सेर) पानीमें पका लीजिए । जब चार सेर वाधिर्य, तिमिर, अधिक स्त्री प्रसंगसे उत्पन्न क्षीणता, पानी शेष रहे तो छान लीजिए । तत्पश्चात् यह और गरदनका हिलना इत्यादि रोग नष्ट होते हैं। काथ और ४ सेर दूध तथा १ सेर अरण्डका तैल नृप-व्यवंहार योग्य इस गन्धतैलके व्यवहारसे और चार पल अरण्डमूलकी छाल, एवं ३ पल मुख कमलके समान सुन्दर एवं सुगन्धित हो जाता है। (१५ तो.) अदरखका कल्क एकत्र करके पकाइये। (१३८२) गन्धपिष्टीतलम् (र.र.स.।उ.ख.अ.२०) जब केवल तैल शेष रह जाय तो उतारकर छान विपका कटुतैलेन पामाहृत् गन्धपिष्टिका। । लीजिए । १-सर्वगन्ध गन्धद्रव्याणि अवलोकन कीजिए । २-ओषधियोंसे ८ गुना द्ध और दूधसे चार गुना पानी एकत्र मिलाकर दुग्ध शेष रहने तक पका लीजिए । ३-काकोल्यादि गण-भा. भै. र., भाग १ में ककारादि क्वाथ प्रकरणमें अवलोकन कीजिए । ४-गन्धकको अमलतासके गूदेमें घोट लीजिए अथवा ५ तोले गन्धक और १ तोला पारदको देवदाली (पिंडाल डोढे) के रसमें घोट लीजिए । इसीका नाम गन्धक पिष्टी है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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