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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [६०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः [गकारादि कोष्ठ शुद्धिके पश्चात् इसे यथोचित मात्रानु- | समान भाग चूर्णको चारगुने तैलमें मिलाकर तेज़ सार सेवन करने और दुग्ध भात भोजन करनेसे | धूपमें रखिए । अन्त्रवृद्धि रोग नष्ट हो जाता है। इस तैलकी मालिशसे कुष्ठ रोग नष्ट होताहै। . (मात्रा–६ माशेसे १ तोला तक, सोंठके | (प्र. वि. तैलसे चारगुनाजल मिलाकर जल काथकै साथ ।) शुष्क होने तक धूपमें रक्खा रहने दीजिए। ) (१३८४) गर्भविलासतैलम् (१३८६) गुञातैलम् - (मै. र. । स्त्रीरो., धन्व. । सूतिका.) (ग. मा. । शिरो. रो., यो. त. । त. ७३) विदारी दाडिमं.पत्रं रजनी च फलत्रयम् । मार्कवस्वरसभावितगुञ्जा शृङ्गाटकस्य पत्रश्च जातीकुसुममेव च ॥ वीजचूर्णपरिपाचिततैलम् । वरी नीलोत्पलं यमं तैलमेतैः पचेत्सुधीः । मिश्रितं त्रुटिजटामुरकुष्ठैः एतद्गर्भविलासाख्यं गर्भसंस्थापनं परम् ॥ केशभारजननं वनितायाः॥ निहन्ति गर्भशूलञ्च शोणितस्रुतिसंहरम् ।। गुञ्जा (चौंटलो) के चूर्णको भांगरेके रसकी परं वृष्यतरं ह्येतत् काशीराजेन निर्मितम् ॥ भावनादे लीजिए तत्पश्चात् इस चूर्ण और इलायची ___विदारीकन्द, अनारके पत्ते, हल्दी, हैड़, (छोटी) जटामांसी (बालछड़) मुर (मुरमुकी) और बहेड़ा, आमल।, सिंघाड़ेके पत्ते, चमेलीके फूल, कूठके चूर्णके साथ तैल सिद्धकर लीजिए। शतावर, नीलोफर और कमलपुष्पके काथ तथा इसके व्यवहारसे स्त्रियोंके केश अत्यधिक कल्कसे तैल सिद्ध कर लीजिए। बढ़ जाते हैं। ... यह काशीराज निर्मित 'गर्भविलास' नामक (प्र. वि.-समस्त वस्तुओंका समभाग मिश्रित तैल गर्भसंस्थापक, गर्भशूल और रक्तस्राव नाशक | चूर्ण १ भाग, तैल ४ भाग, पानी-१६ भाग मिलातथा अत्यन्त वृष्य है। कर पकावें ।) (१३८५) गुग्गुल्वाधं सूर्यपाकतैलम् (१३८७) गुञ्जातैलम् (भै. र.; धन्व.। शिरो.) - (ग. नि. । तैला० २) विशुद्धं तिलतैलञ्च तत्समं काञ्जिकं भवेत् । गुग्गुलुमरिचविडङ्गैः सर्पपकासीसमुस्तसर्जरसैः आरनालसमं भृङ्गद्रवं कृखा पदापयेत् ॥ श्रीवेष्टतालगन्धैमनःशिलाकुष्ठकम्पिल्लैः॥ मन्दाग्निना ततः पाच्यं यावत्तैलं स्थितं भवेत् । उभयहरिद्रासहितैः कटुतैलं विमिश्रितैरेभिः। तैलमध्ये प्रदातव्यं पिट्वा गुञ्जापलद्वयम्॥ आदित्यरश्मिपक्वैः कुष्ठं विनिहन्ति संस्पर्शात्।। उत्तार्य तैलशेषं तु दिनैकं तत्तु रक्षयेत् । गूगल, मिर्च (स्याह) बायबिडंग, सरसों, । शिरोरोगेषु दुष्टेषु अर्द्धशीर्षे सुदारुणे॥ कसीस, मोथा, राल, तारपीन, हरताल गन्धक, भ्रूशङ्खकर्णपीडाश्च नश्यन्ति नात्र संशयः। मनसिल, कूठ, कमीला, हल्दी और दारु हल्दीके | गुञ्जातैलमिति ख्यातं दत्तं हन्ति शिरोव्यथाम्॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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