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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
श्रमं न कुर्याद्वहुशो न कुर्याद्वहुभाषणम् । पीली गायका तक वायुनाशक, सफेद गायका न कुर्यान्मैथुनं तक्रपाने क्रोधं विवर्जयेत् ॥ पित्तनाशक और लाल गायका कफनाशक होता है एवं यः सेवते तक्रं ग्रहणी तस्य नश्यति । तथा काले रंगकी गायका तक्र त्रिदोष को नाश शीघ्रमेव न संदेह श्रीर्यथा द्यूतकारिणः ॥ करता है। प्रशान्ते ग्रहणीरोगे ह्यन्नं गृह्णाति योगतः। गायोंको ऐसे बनमें चराना चाहिए कि जहां अन्नत्यागविधानेन गृह्णीयाच शनैः शनैः ॥ - अधिक बेलें (लता) और तृण न हों । एवं उन्हें ग्रहणीरोगिणां तक्रं हितं दोषत्रयापहम् । निर्मल जल पिलाना और धीरे धीरे टहलाना कालकूटविषं साक्षात् अन्यथा परिसेवितम् ॥ चाहिए । तक्रके लिए ऐसी गायोंका ही दूध ग्रहण तस्माद्यत्नेन संसेव्यं तक्रं संग्रहणीगदे। करना चाहिए। शस्तं नातः परं किश्चित् ग्रहणीरोगशान्तये ॥ वायुदोषमें कच्चा, पित्तमें थोड़ा पकाकर और न तक्रसेवी व्यथते कदाचिन
कफ तथा त्रिदोषमें पकते पकते पौना दूध शेष ___तक्रदग्धाः प्रभवन्ति रोगाः। रहने पर उसमें जरासी दही डालकर जमाना यथा सुराणाममृतं सुखाय
चाहिए । दही अधिक खट्टी न होनी चाहिए और ... तथा नराणां भुवि तक्रमाहुः ॥ | कठिन होनी चाहिए।
संग्रहणीवाले रोगीके लिए तक्र, संग्राहि, लघु इस दहीमें थोड़ासा पानी डालकर खूब और दीपन है। सदैव गायका हो तक सेवन मथना और उसमें से घी निकालकर तक्रमें सोंठका करना चाहिए क्यों कि वह त्रिदोष नाशक होता चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। है। चाहे कितनी ही औषधे क्यों न सेवन कराई धीरे धीरे अन्न कम करके तक बढ़ाते जाना जाय; दुस्साध्य ग्रहणी रोग तक्रके बिना शान्त चाहिए यहां तक कि अन्तमें तक्रके अतिरिक्त नहीं होता।
अन्य सब प्रकारका खान पान बन्द कर देना __ जिस प्रकार तृणके ढेरको अग्नि क्षणभरमें चाहिए और भूख प्यासमें केवल शुण्ठिचूर्णयुक्त भस्म कर देता है, और जिस प्रकार सूर्य के सम्मुख तक ही पिलाना चाहिए। अन्धकार नहीं ठहर सकता उसी प्रकार तक तक्रसेवन कालमें अधिक परिश्रम, अधिक सेवनसे संग्रहणी रोग भी अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो भाषण और मैथुन तथा क्रोध न करना चाहिए । जाता है।
जिस प्रकार चूतक्रीडासे लक्ष्मी नष्ट हो जाती __ संग्रहणीके रोगीको तक सेवन करानेके लिए है उसी प्रकार विधिपूर्वक तक्र सेवन करनेसे यथोचित वर्णवाली गायें पालनी चाहियें क्यों कि संग्रहणी अवश्य ही अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती है। तक्रमें गायके रंगके अनुसार पृथक् पृथक् गुण रोग शान्त होनेके पश्चात् भी एकदम होते हैं। यथा
| अन्नाहार न करना चाहिए बल्कि जिस प्रकार
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