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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसपकरणम् ] द्वितीयो भागः । [ ५०९ ] RWuvvvvvvvvvvvvvvvvvv. vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvIAnyon कफ, अर्थ, कामला, प्रमेह और प्लीहाका नाश त्रिकुटा, भांग, चव, चीता, विड्लवण (वारी करती हैं। नमक), उद्भिजलवण, बाबची, सेंधानमक और (२७८८) त्र्यूषणाचं लौहम् । | सञ्चल ( काला नमक )। इन सबका चूर्ण १-१ (र. सा. सं.; र. रा. सु.। शोथ.; रसे. चि.। अ. ९) भाग और लोहभस्म सबके बराबर लेकर सबको अयोरजस्यूषणयावशूकं एकत्र खरल करके रखिये ।। चूर्णश्च पीतं त्रिफलारसेन । इसे घी और शहदके साथ मिलाकर सेवन शोथं निहन्यात्सहसा नरस्य करनेसे स्थूलता, प्रमेह और कुष्ठ नष्ट होता तथा ___ यथाशनिक्षमुदीर्णवेगः॥ बलवर्ण और अग्निकी वृद्धि होती है । लोहभस्म तथा त्रिकुटेका चूर्ण और यवक्षार इसपर किसी विशेष परहेजकी आवश्यकता समान भाग मिलाकर त्रिफलाक्काथके साथ सेवन नहीं है। करनेसे शोथ अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाता है। ( मात्रा २-३ माथे । ) (मात्रा-१ माषा) (२७८९) यूषणाद्यं लोहम् (२७९०) त्वगाद्या गुटिका ( ग.नि.|गुटि.) ( र. का. धे.; यो. र.; र. र.; र. सा. सं., धन्वं. त्वगेलागन्धकश्चैव गुग्गुलुः समभागतः । र. चं.; र. रा. सु. । मेदो.; रसे. चिं. । अ. ९) कुर्याद्वातारितैलेन गुटिका वातरोगिणाम् ॥ अषणं विजयो चव्यं चित्र विडमौद्भिदम् ।। दालचीनी, इलायची और शुद्ध गन्धकका वागुजीसैन्धवश्चैव सौवर्चलसमन्वितम् ॥ चूर्ण तथा शुद्र गूगल समान भाग लेकर सबको अयश्चूर्णेन संयुक्तं भक्षयेन्मधुसर्पिषा। । अरण्डीके तैलमें घोटकर गोलियां बना लीजिए। स्थौल्यापकर्षणं श्रेनं बलवर्णाग्निवर्द्धनम ॥ इनके सेवनसे वातरोग नष्ट होते हैं। मेहघ्नं कुष्ठशमनं सर्वव्याधिहरं परम् । ( मात्रा १ से ३ माशे तक । अनुपान गर्म नाहारे यन्त्रणा कार्या न विहारे तथैव च ॥ जल । ) त्र्यूषणायमिदं लौहं रसायनवरोत्तमम् ॥ ॥ इति तकारादिरसमकरणम् ॥ अथ तकारादिमिश्रप्रकरणम् ॥ (२७९१) तक्रपानम् ( यो. चि. । मिश्रा.), शशिकुन्दहिमोज्वलसन्निभं यथा सुराणाममृतं प्रधान परिपककपित्थसुगन्धरसम् । तथा नराणां भुवि तक्रमाहुः। न तक्रदग्धाः प्रभवन्ति रोगाः युवतीकरनिर्मलनिर्मथितं न तक्रसेवी व्यथते कदाचित ॥ पिब मानव सर्वरुजापहरम् ॥ १ त्रिफळेति पाठान्तरम् । २ विडङ्गमिति पाठान्तरम् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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