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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org - भैषज्य रत्नाकरः । भारत [ ५०८ ] पकाइये और जब समस्त रस शुष्क हो जाय तो औषधको पीसकर महीन चूर्ण बना लीजिए और फिर उसमें १० माशे हींग, ५ - ५मापे हर, बहेड़ा और आमला, तथा आमलेका चूर्ण २५ तोले, मिश्री ५ पल (२५ तोले) और शहद ५ पल तथा पाषाणभेद (पखानभेद)का चूर्ण ५ पल मिलाकर सबको एकत्र खरल कराइये और फिर उसे जीरे तथा धनियेके काथ और इन्हीं के कल्कसे पके हुवे घी में घोटकर सुरक्षित रखिये । इसे भोजन आदि मध्य और अन्त में सेवन करनेसे सन्निपातजशूल, परिणामशूल और अम्लपित्त अवश्य नष्ट हो जाता है । (२७८६) ज्यूषणादिमण्डूरम् (र. रा. सुं.; र. सा. सं . । पाण्डु . ) स्विन्नमष्टगुणे सूत्रे लोहकिटं सुशोधितम् । पाकान्ते त्र्यूषणं वहिवरादावसुरद्रुमान् ॥ विडङ्गबीजचूर्ण च मुस्तं किट्टं समं क्षिपेत् । प्रातः कर्षे भजेदस्य जीर्णे तक्रौदनं भजेत् ॥ हलीमकं पाण्डुरोगमर्शासि श्वयथुन्तथा । ऊरुस्तम्भं जयेदेतत्कामलां कुम्भकामलाम् || शुद्ध मण्डूरके चूर्णको आठ गुने गोमूत्र में पकाइये और जब वह गाढ़ा हो जाय तो त्रिकुटा, चीता, त्रिफला, दारूहल्दी, देवदारु, मोथा और बायबिड़ङ्गका समान भाग एकत्र मिला हुवा चूर्ण उसके बराबर लेकर उसमें मिला दीजिये । इसे प्रतिदिन प्रातःकाल १ | तोला मात्रानुसार सेवन करने और औषध पच जाने पर भातका आहार करनेसे हलीमक, पाण्डु, अर्श, [ तकारादि शोथ, ऊरुस्तम्भ, कामला और कुम्भकामलाका नाश होता है । ( व्यवहारिक मात्र - ३ भाषा ) (२७८७) त्र्यूषणादिमण्डूरवटिका: ( भै. र.; धन्वं. भा. प्र. । ख. २. पाण्डु. ) त्र्यूषणं त्रिफला मुस्तं विडङ्गं चव्यचित्रकम् । दार्वीत्वङ्माक्षिको धातुर्ग्रन्थिको देवदारु च ॥ एषां द्विपलिकान्भागान्कृत्वा चूर्ण पृथक् पृथक् । गण्डूरचूर्ण द्विगुणं शुद्धमञ्जनसन्निभम् ॥ मूत्रे चाष्टगुणे पक्त्वा तस्मिंस्तत्प्रक्षिपेन्नरः । उदुम्बरसमाकारान् बटकांस्तान्यथानि च ।। उपयुञ्जीत तक्रेण जीर्णे सात्म्यञ्च भोजनम् । मण्डूरवटिका ह्येताः प्राणदाः पाण्डुरोगिणाम् || कुष्ठानि जठरं शोथमूरुस्तम्भं कफामयान् । शशि कामलां मेहं प्लीहानं शमयन्ति च ॥ Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir त्रिकुटा, (सोंठ, मिर्च, पीपल), हर्र, बहेड़ा, आमला, नागरमोथा, बायबिडंग, चव, चीता, दारूहल्दीकी छाल, सोनामक्खीभस्म, पीपलामूल और देवद्वारका चूर्ण २ - २ पल ( १०-१० तोले ) तथा सबसे २ गुना शुद्ध सुरमेके समान काला मण्डूरचूर्ण लेकर प्रथम मण्डूरको आठ गुने गोमूत्र में पका लीजिए और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर गूलरके फलके समान मोदक बना लीजिए | इन्हें अग्नि बलोचित मात्रानुसार, के साथ सेवन करना और औषध पचने पर पथ्य भोजन करना चाहिए | यह मण्डूरवटिका ' पाण्डुरोगियोंके लिए जीवनदाता हैं तथा कुट, शोथ, उदररोग, ऊरुस्तम्भ, For Private And Personal "
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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