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[ ४९० ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
तकारादि
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इसे प्रातःकाल सेवन करनेसे दुस्साध्य आम- १०० पल त्रिफलाचूर्णको भंगरेके रसकी वात, पाण्डु, हलीमक, परिणामशूल, शोथ और सात भावना देकर छायामें सुखाकर उसमें २५ ज्वर नष्ट होता है । (मात्रा-१।। माषा) पल शुद्र गन्धक और १२॥ पल शुद्ध पारदकी (२७४७) त्रिफलाद्यो लेहः
कजली मिलाकर खरल करके रखें । (ग. नि. । पाण्डु.; वै. क. द्रु. । पाण्डु.) इसे नित्य प्रति यथोचित मात्रानुसार प्रातः त्रिफला द्वे हरिद्रे च कटुरोहिण्ययोरजः। काल, भोजनके पहिले और भोजन पचनेपर घी चूर्णितं मधुसर्पियो लेहयेत् कामलापहम्॥ तथा शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे मनुष्य सर्व
त्रिफला, हल्दी, दारुहल्दी, कुटकी और व्याधि रहित ३०० वर्षकी आयु प्राप्त कर सकता लोहभस्म समान भाग लेकर एकत्र मिलाकर यथो- है तथा दृष्टि निर्मल हो जाती है । चित मात्रानुसार घी और शहदके साथ सेवन (मात्रा १-१॥ माषा ।) करनेसे कामला रोग नष्ट होता है।
| (२७५०) त्रिफलालौहः (र. र. । ज्वर.) ( मात्रा १||-२ मापे ।)
त्रिफलामृतलौहश्च भृङ्गराजं च चूर्णितम् । (२७४८) त्रिफलामण्डूरम्
चूर्णमर्जुनपत्रस्य त्रिजातकशिलाजतु ॥ ( भै. र.; धन्वं. । अम्लपि. )
व्यूषणं तुल्यतुल्यांशं सर्वेषाश्च समांशतः। गोमूत्रशुद्धमण्डूरं त्रिफलाचूर्णसंयुतम् ।।
क्षौद्रेण वटिका कार्या कर्षमात्रन्तु भक्षयेत् ।। विलिहन मधुसर्पियो शूलं हन्त्यम्लपित्तजम् ।।
सर्वज्वरहरः श्रेष्ठो ह्यनुपानं प्रकल्पयेत् ॥ गोमूत्रमें शुद्ध किया हुवा मण्डूर और त्रिफ
त्रिफला, लोहभस्म, भंगरा, अर्जुनके पत्ते, लाका चूर्ण समान भाग लेकर दोनों को एकत्र
| दालचीनी, इलायची, तेजपात, शिलाजीत और मिलाकर शहद और घी के साथ सेवन करनेसे अम्लपित्तजनित शूल नष्ट होता है।
त्रिकुटेका समान भाग चूर्ण लेकर सबको शहदमें (मात्रा-२-३ माषे । अनुपान-शीतलजल।)
| मिलाकर गोलियां बनाएं। (२७४९) त्रिफलारसायनम्
इन्हें यथोचित अनुपानके साथ १। तोलेकी ( धन्वं.; र. र. । रसा.)
मात्रानुसार सेवन करनेसे समस्त प्रकारके ज्वर त्रिफलायाः पलशतं चूर्ण भृङ्गरसाम्बुना। .
नष्ट होते हैं । ( व्यवहारिक मात्रा २ माषे ) भावयेत्सप्तवारांस्तु छायाशुष्कन्तु कारयेत ॥ (२७५१) त्रिफलालोहः (र. सा. सं.। अजी.) पादं गन्धकचूर्णस्य तदर्द्ध पारदं क्षिपेत् । त्रिफलामुस्तवेल्लैश्च सितया कणया समम् । लिद्यान्मधुघृताभ्यां च मात्रया प्रत्यहं पुमान् ॥ खरमञ्जरीवीजैश्च लौह भस्मकनाशनम् ॥ जीर्णे भोज्ये ह्यनाहारे गुणानेतानवामुयात् । त्रिफला, मोथा, बायबिडङ्ग, मिश्री, पीपल प्रसन्नदृष्टिरव्याधि वेद्वर्षशतत्रयम् ॥ और अपामार्ग (चिरचिटे) के बीजोंका चूर्ण १-१
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