SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४८९] औषध-नाभिसे नीचेके रोगोंमें भोजनसे | कुष्ठानि जठरं मेहं श्वासं शोफमरोचकम् । पहिले, उदर विकारोंमें भोजनके मध्यमें और विशेषाच्च ह्यपस्मारं कामलां गुदजानि च ॥ गलेसे ऊपरके रोगोंमें भोजनके अन्तमें सेवन त्रिफला (हर, बहेड़ा, आमला) ३ भाग, करानी चाहिए। त्रिकटु (सोंठ, मिर्च, पीपल) ३ भाग, चीतेकी (२७४४) त्रिफलादियोगः (ग. नि. । नेत्र.) जड़ तथा बायबिडंग १-१ भाग, शिलाजीत त्रिफला लोहचूर्णश्च पटोली मधुयष्टिका।। और रूपामक्खी भस्म ५--५ भाग, शुद्र लोहचूर्ण (भम्म) और मिश्री ८-८ भाग । सब चीजोंके सर्वमेकांशतः पथ्या विभीतामलकं क्रमात् ॥ महीन चूर्ण को शहदमें मिलाकर अवलेह (चटनी) द्विव्यक्षिभागिकं रुद्रभागाः स्युस्तवराजकात् । सर्पिषा भक्षिते यान्ति विचूर्णेऽक्षिरुजोऽखिलः ॥ बनाकर लोहे के पात्रमें भरकर रख दीजिए। इसमें से प्रतिदिन गूलरके फलके बराबर अथवा अग्नि त्रिफला, लोहचूर्ण, पटोल और मुलैठी एक बलानुसार न्यूनाधिक मात्रामें खानेसे पाण्डु रोग, एक भाग, हर्र २ भाग, बहेड़ा ३ भाग, आमला विषविकार, खांसी, क्षय, विषमञ्चर, कुष्ठ, उदर२ भाग और यवासशर्करा (शीर खिस्त-जवासेकी विकार, प्रमेह, श्वास, सूजन, अरुचि, और विशेष खांड) ८ भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। कर अपस्मार कामला तथा बवासीर का नाश __इसे घीमें मिलाकर सेवन करनेसे समस्त होता है। नेत्ररोग नष्ट होते हैं। (२७४६) त्रिफलादिलोहम् (भै. र. । आ.वा.) (२७४५) त्रिफलादिलेहः त्रिफला मुस्तकं व्योषं विडङ्गं पुष्कर वचा । (वृ. यो. त. । त. ७४; वृ, नि. र. । पाण्डु.) चित्रकं मधुकश्चैव पलांशं श्लक्ष्णचूर्णितम् ।। त्रिफलायास्त्रयोभागास्त्रयस्त्रिकटुकस्य च ।। अयश्चूर्णपलान्यष्टौ गुग्गुलोस्तावदेव हि । भागश्चित्रकमूलस्य विडङ्गात्तथैव च ॥ आलोड्य मधुनोपेतं पलद्वादशकेन च ॥ पश्चाश्मजतुनो भागास्तथा रूप्यमलस्य च। प्रातर्विलिह्य भुञ्जानो जीर्णे तस्मिञ्जयेद्रुजः । शुद्धलोहस्य रजसो भागाश्चाष्टौ प्रकल्पयेत्॥ दुःसाध्यमामवातश्च पाण्डुरोगं हलीमकम् ॥ अष्टौ भागाः सितायास्तु तत्सर्व मधुसंयुतम् । जीर्णान्नसम्भवं शूलं श्वय) विषमज्वरम् ॥ श्लक्ष्णचूर्ण सुसंस्थाप्यमायसे भाजने शुभे ॥ त्रिफला, मोथा, त्रिकुटा, बायबिडङ्ग, पोखरउदुम्बरसमां मात्रां ततः खादेद्यथानि ना। मूल, बच, चीता और मुलैठीका महीन चूर्ण १-१ दिने दिने प्रयोक्तव्यं जीर्णे भोज्यं यथोचितम्।। पल (५-५ तोले) तथा शुद्ध लोहचूर्ण (अथवा वर्जयित्वा कुलित्थांस्तु काकमाचीकपोतकान्। भस्म) और शुद्ध गूगल ८-८ पल लेकर सबको पाण्डुरोगं विषं कासं यक्ष्माणं विषमज्वरम् ॥ एकत्र कूटकर १२ पल शहदमें मिलाकर रक्खें । १ माक्षिकस्य च शुद्धस्य लोहस्य रजसस्तथेति पठान्तरम् । भा० ६२ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy