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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४५१] vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvwwwwwwwwwvvvvviowNARAvvvvvvvvvvvvvAAAAAAAAAAAMRA दिन घृतकुमारी ( ग्वारपाठा )के रसमें घोटकर | इसके सेवन कालमें पीनेके लिये कठूमरकी कपड़मिट्टी की हुई आतसी शीशीमें भरकर जड़की छालका काथ देना चाहिये और भोजनमें उसे बालुकायन्त्रमें रखकर भट्टीपर चढ़ा दीजिये। पथ्य आहार, घीके साथ देना चाहिये, तथा जब शीशीमेंसे नीला धुंवा निकल चुके और | भोजन केवल १ समय ही करना चाहिये और बिल्कुल पीले रंगका धुंवा निकलने लगे तो उसमें । बैंगन, राई, सब प्रकारके शाक, अम्ल पदार्थ, लोहेकी एक लम्बी शलाका डालकर और उसे दही, सुरा, आसव, मछली और मांससे परहेज लगभग शीशीकी तली तक पहुंचाकर शीशीके | भीतर ही ज़रा देर घुमाइये और फिर बाहर निकालकर ( व्यवहारिक मात्रा-२-३ रत्ती। पथ्यदेखिये; यदि शलाका गीली हो जाय और हर- चनेकी रोटी, गेहूं इत्यादि । ) तालका रंग पीला मालूम हो तो १-२ दिन । (२६५४) तालकेश्वरो रसः (महान् ) (१५) अग्नि और लगाइये और फिर शलाका डालकर (र. चि. म.; र. का. धे. । कुष्ट. ) देखिये; जब हरताल बिल्कुल पानीके समान हो तालं सप्तपलं ग्राह्य स्वेदयेत्तण्डुलाम्भसा । जाय तो अग्नि लगानी बन्द कर दीजिये और दिनद्वयञ्च दुग्धेन रसाइयं पलद्वयम् ।। यन्त्रके स्वांगशीतल होनेपर शीशीको तोड़कर एकतः क्रियते घृष्ट्वा पश्चादत्र परिक्षिपेत् । उसमेंसे हरतालसत्वको निकाल लीजिये । यह वर्षाभूः पीतिका व्याघ्री गुडूची निम्बचित्रकौ।। सत्व अत्यन्त उज्ज्वल, भारी और कठिन होगा। रोहितकद्वये घष्टा शोषयित्वा भिषग्वरः। इसे अत्यन्त महीन पीसकर सुरक्षित रखिये । । निम्बरोहीतककाथे तमाप्लुत्य निरोधयेत् ।। इसमेंसे प्रतिदिन ५ माशे सत्व रोहितक | हण्डिकायन्त्रमध्यस्थं दिनमेकं शनैरिह। ( रहेड़े )की जड़की छालके काथके साथ सेवन कर्तव्यश्च शनैरेव वह्निः शीतं तदुद्धरेत् ॥ करानेसे १४ दिनमें कुष्ठ अवश्य सूखने लगता है; अर्चयित्वा शिवं देवं शिवांदवीं तथा श्रियम् । भूख बढ़ जाती है, भोजन खूब पचता है और भैरवं पूजयेद्यत्नात्पुष्पधूपादितर्पणैः ॥ शरीर सुन्दर हो जाता है। | पश्चान्माषादिनैवेद्यैर्योगिनां प्रीतिकारिभिः। शुल्वामृतं पुनर्दधात्ताप्यालं शुद्धमुत्तमम् ॥ इसके सेवनसे अरुणकुष्ठ, औदुम्बरकुष्ठ, | गन्धकं पलमात्राणि श्वेताश्च कटुकां तथा। ऋक्षजिह्वकुष्ठ, कपालिककुष्ठ, पुण्डरीककुष्ट, भयङ्कर द्वयं तत्सुन्दरं दद्यादेकमेकममुं रसम् ॥ दाद, अण्डवृद्धि, विसर्प, सिध्म, विचर्चिका, विशे- | मधुना विल्वपत्रेण प्रातरुत्थाय रोगिणे। षतः किटिभकुष्ट और पामा, किलासकुष्ट, रकसा चाश्च तण्डुलाः पश्चाद्भोज्ये दुग्धश्च भक्तकम्। और चित्रादि समस्त प्रकारके कुष्ट २ मासमें कुष्ठश्च स्फुटितं हन्ति निःशेष भग्ननासिकम् । अवश्य नष्ट हो जाते हैं। | गताङ्गुलिं गलत्पावे साध्यासाध्यं न संशयः।। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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