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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [४४९] इसमेंसे ४ रत्ती रस पानमें खाकर ऊपरसे दोनों इसमेंसे प्रतिदिन ३ टङ्कः ( १५ माशे) जीरे, त्रिकुटा, विष्णुक्रान्ता और मुण्डीके चूर्णको दवा बकरीके मूत्रके साथ सेवन करनेसे खुजली, गायके दूध मिलाकर शहदसे मीठा करके पीनेसे | स्राव और पिडिकाओंसे व्याप्त कुष्ठ तथा जिसमेंसे समस्त प्रकारके कुष्ट नष्ट होते हैं । अत्यन्त पीप निकलता हो, कृमि पड़ गये हों, (२६५१) तालकेश्वरो रसः (१२) दुर्गन्धित और चिकना मवाद जाता हो, जिसके (र. का. धे.; र. चिं. म. । कुष्ट. ) कारण नासा और अन्य अङ्ग गल गये हों वह हरितालं पलाकं तथा सौवर्चलस्य च ।। कुष्ठ भी शीघ्र ही अवश्य नष्ट होकर देह सुन्दर हो जाती है। इसके अतिरिक्त इसके सेवनसे शतटङ्कमितं ग्राह्य विंशत्यधिकमुत्तमम् ॥ गुल्म, प्लीहा ( तिल्ली) और पलित भी १ मासमें आरुष्करफलं पक्कं कुट्टितव्यश्च किञ्चन । नष्ट हो जाता है एवं इसे सेवन करनेवाले मनुष्य सेहुण्डपयसाऽऽप्लाव्य कृत्क्षारश्च तत्त्रयम् ॥ पर विषका प्रभाव नहीं होता। त्रिटङ्कमात्रं तदद्याच्छागमूत्रेण रोगिणे । ( व्यवहारिक मात्रा-३-४ माशे ।) कुष्ठं कण्डूयुतं स्रावि पिडिकाभिः समन्वितम् ॥ (२६५२) तालकेश्वरो रसः ( महान् ) (१३) अत्रणं सत्रणं पूयवहलं कृमिलं मलम् । ( यो. चिं. । अ. ७; र. प्र. सं. । अ. ८ गतनासां गताङ्गश्च दुर्गन्थ्यतीवपिच्छिलम् ॥ भा. प्र. । कुष्ट.) नाशयेद्वेगतः सर्वमपूर्व कुरुते वपुः । | तालं वाप्यं शिलामृतं शुद्धसैन्धवटङ्कणम् । कुरुध्वं निश्चितं मासाद्गुल्मप्लीह विनाशनम् ॥ समांशं चूर्णयेत्वल्वे सूताद्विगुणगन्धकम् ।। पलितश्च जरां हन्यान्न विषैःपरिभूयते ॥ गन्धतुल्यं मृतं ताम्र जम्बीरैर्दिनपञ्चकम् । हरताल भस्म २॥ तोले, काला नमक मद्य षड्भिः पुटैः पाच्यं भूधरोदरसम्पुटे ।। ( सौवर्चल ) २॥ तोले और उत्तम पके हुवे पुटे पुटे द्रवैर्मध सर्वमेकत्र षट्पलम् । भिलावे ३७॥ तोले लेकर सबको अधकुटा करके द्विपलं मारितं तानं लोहभस्म चतुः पलम् ॥ सेहुंड ( सेंड-थोहर )के दूधमें भिगो दीजिये और जम्बीराम्लेन तत्सर्व दिनं मधे पुटेल्लघु । दूसरे दिन कपरमिट्टी की हुई हाण्डीमें बन्द करके , त्रिंशदंशं विषं चास्मिन् क्षिप्वा विचूर्णयेत् ॥ चूल्हेपर चढ़ाकर उसके नीचे (१ पहर तक ) माहिष्याज्येन संमिश्रं कर्षाः भक्षयेत्सदा । अग्नि जलाइये और फिर हाण्डीके स्वांगशीतल होने | मध्वाज्यैर्वाकुचीचूर्ण कर्षमात्रं लिहेदनु । पर उसमेंसे औषधको निकालकर पीसकर रखिये। सर्वकुष्ठानिहन्त्याशु महातालेश्वरो रसः॥ १-र. प्र. सु. में सैन्धव नहीं है तथा पुट लगानेसे पूर्व भी ४ पल लोहभस्म डालना लिखा है । भूधरकी जगह कुक्कुट पुट लिखी है। भावप्रकाशमें-ताम्रभस्म और लोहभस्म नहीं लिखी । तथा जम्बीरी नीबूके रसमें घोटकर ३० वां भाग शुद्ध बछनाग मिलाकर घोटकर सेवन करनेके लिये लिखा है पुटपाकका अभाव है। भा० ५७ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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