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[४४८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
[तकारादि शुद्ध बछनाग ) १॥ भाग, मरिच ४ भाग, नीम | (२६५०) तालकेश्वरो रसः (११) और धतूरेके बीज १-१ भाग, शुद्ध गन्धक ३ | (र. रा. सुं. । कु.) भाग और जायफल, सुहागेकी खील तथा शुद्ध | शुद्धं सूतं समं गन्धं सतात्तालं चतुर्गुणम् । हरताल १०-१० भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कुकुटीपर्णसारेण वाकुच्या वा कषायकैः ॥ कजली बना लीजिये फिर उसमें अन्य औषधोंका दिनैकं मर्दयेत्खल्ले त्रिभिस्तुल्यं मृतायसम् । महीन चूर्ण मिलाकर आमले और धतूरेके रसमें अयस्तुल्यं मृतं तानं मर्दयेदिनपञ्चकम् ॥ एक एक दिन घोटकर गोला बना लीजिये और पूर्वकाथद्रवैर्वाथ सर्व तद्गोलकं कृतम् । उसे सुखाकर सम्पुटमें बन्द करके लघुपुटमें फूंक वर्षाभूचित्रपत्रैश्च मूषागर्भ प्रलेपयेत् ॥ दीजिये । सम्पुटके स्वांग शीतल होनेपर उसमेंसे | तन्मध्ये निक्षिपेद्गोलं लेपः कल्पस्ततोपरि। रसको निकालकर पीसकर रखिये।
रुचाहिं भूधरे पकं समुद्धत्य विभावयेत् ॥ ___ इसके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ट नष्ट होते सप्तधामलजैस्तोयैर्मधुमिश्रं निरुध्य च । और भूख खुलती है।
पुटैके भूधरे पको रसः स्यात्तालकेश्वरः ॥ (मात्रा-२-३ रत्ती । साधारण अनुपान
चतुर्गनं पर्णखण्डे भक्षयेच पिबेदनु । धी और मिश्री।)
अजाजीद्वितयं त्र्यूषं गिरिकर्णी गवां पयः ।। (२६४९) तालकेश्वरो रसः (१०)
मुण्डीचूर्ण तथा क्षौद्रैः सर्व कुष्ठं नियच्छति ।। (रसें. चि. । अ. ९; र. सा.सं.; र. रा. सुं. । कुष्ट)
शुद्ध पारा और गन्धक १-१ भाग और धात्रीटङ्कणतालानां दशभागं समुद्वरेत् ।।
शुद्ध वर्कीहरताल ४ भाग लेकर सबको एकत्र धाच्या रसैमर्दयित्वा शिखरीमूलवारिणा ॥ | घोटकर महीन कजली बनावें और फिर उसे सर्वकुष्ठहरः सेव्यः सर्वदा भोजनपियैः ।।
एक एक दिन सेंभलके पत्तोंके रस और ___आमलेका चूर्ण, सुहागेकी खील और हरताल
बाबचीके काथमें धोटकर उसमें ६-६ भाग भस्म समान भाग लेकर सबको १-१ दिन आम
लोहभस्म और ताम्रभस्म मिलाकर ५-५ दिन लेके रस और चिरचिटेकी जड़के काथमें घोटकर
उपरोक्त दोनों चीजोंके रसोंमें घोटें और गोला सुखा कर रखिये।
बनाकर सुखालें । तत्पश्चात् दो शरावोंके भीतर ___इसके सेवनसे सर्व प्रकारके कुष्ट नष्ट होते और भूख खुलती है।
पुनर्नवा और चीतेके पत्तोंके रसका लेप करके
सुखाकर उनमें उपरोक्त गोलेको बन्द करके ऊपर तालकेश्वरो रसः
कपरौटी कर दीजिये । तत्पश्चात् इसे १ दिन (रसे. चिं.अ. ९; र. सा.सं.; धन्वं.; र. रा. सुं.। सोम)
भूधरपुटमें पकाइये और फिर उसके स्वांग शीतल चतुर्थ तारकेश्वर रस सं. २६१५ देखिये ।।
होनेपर उसमेंस औषधको निकालकर उसे आमलेके इसमें उसकी अपेक्षा १-१ भाग हरताल और रसकी सात भावना देकर और शहदमें घोटकर गन्धक अधिक है । शेष प्रयोग समान है। । पुनः १ दिन भूधरपुटमें पकाइये।
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