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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि शगालैरथमार्जारैमण्डूकैरथवाहिमिः ॥ (१२९९)ग्रन्धिकादि चूर्णम् (वृ.नि.र.का०) कालेनापि हि दष्टस्य मृतसञ्जीवनो ह्ययम् ॥ । ग्रन्थिकमागधिमहौषधै रुचितं____ गोरोचनको मनुष्यके मूत्रमें पीसकर शहदमें चूर्णमिदं मधुना युतम् । मिलाकर प्रयुक्त करनेसे, गीदड, बिल्ली, मेंडक और हरति कासभवं दरमाततं विविधदोषहरं च निषेवितम् ।। सांपका विष नष्ट होता है। पीपलामूल, पीपल, बहेडा और सोंठके चूर्णको (१२९६) गोरोचनचूर्णम् (यो. र.,भा.१।ज्वर.)। शहदमें मिलाकर चाटनेसे खांसीसे उत्पन्न होनेवाले गोरोचनं च मरिच रास्ना कुष्ठं च पिप्पली। विकार नष्ट होते हैं। उष्णोदकेन पीतं च सर्वज्वरविनाशनम् ।। | (१३००)ग्रन्थिकाद्यं चूर्णम् (ग.नि०म०रो०३) ___ गोरोचन, स्याह मिर्च, रारना, कूट और सग्रन्थिकं त्रिकटुक लवणत्रयं च । पीपलके चूर्णको ( ३ माशेकी मात्रानुसार ) उष्ण क्षारद्वयं सचविकं च सचित्रकं च । जलके साथ सेवन करनेसे सब प्रकारके चर नष्ट | सानाजीदीप्यमिशिहिङ्गु विधाय चूर्णम् हो जाते हैं। सद्वीजपूरकरसप्लुतमेतदेषाम् ॥ तक्रेण कोष्णसलिलेन तुषाम्बुना वा । (१२९७) गोरोचनादि चूर्णम् (यो. र. । ने. रो.) पीतं कुलत्थयवकोलरसेन चापि। रोचनाक्षारतुत्थानि यिप्पल्यः क्षौद्रमेव च ।। मन्दानलेषु नृषु दीप्तिकरं ग्रहण्याप्रतिसारणमेकैकं भिन्ने लगणे इष्यते ॥ मर्शस्सु गुल्मिषु च भेषजमेतदेव।। लगण ( नेत्रकी पलकमें होनेवाली फुसी पीपलामूल, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, पीपल ) (पिटिका ) विशेष )के फूट जाने पर गोरोचन, सेंधानमक, कालानमक, सांभरनमक, जवाखार, यवनार, तृतिया, और पीपलमसे किसी एकके | जजीरवार, चव, चीता, जीरा, अजवायन, सौंफ, और हींग (धीमें भुना हुवा ) समान भाग लेकर चर्णको शहद में मिलाकर प्रतिसारण करना (रगड़ना) चर्ण बना लीजिए और फिर उसे बिजौरे नीबूके चाहिए। रसमें घोटकर रख लीजिए। (१२९८)गोङ्गवचादिचूर्णम् वै.म.।पटल १६) इसे ( १॥ माशेकी मात्रानुसार) तक, किश्चिमहिषीनवनीतयुतं गोशृङ्गवचाश्वगन्धबहुलम् । दुष्णजल, काजी, जौके अथवा कुलथीके क्वाथ के सांथ सेवन करने से मन्दाग्नि दीम होती और अर्श दिनकरतप्तं कुर्यादंसस्थललम्बिनौ कर्णौ । तथा गुल्म रोग नष्ट होता है। ___ गायकासींग बच और असगन्धके चूर्णको ग्रहणीशालचर्णम् (भै. र. । ग्रहण्य० ) भैसके घृतमें मिलाकर थोड़े समय तक धूपमें | रस प्रकरणमें अवलोकन कीजिए । रक्खा रहने दीजिए। ग्रीष्मौ .विरेचनम् (यो. त. । ७ त.) इसकी मालिश करनेसे कान बहुत अधिक त्रिवृद्विरेचन अवलोकन कीजिए। बड़े हो जाते हैं। इति गकगदि चूर्णप्रकरणम् । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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