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[ ४३८ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि ( नोट-जब पुट लगानेसे चांदीके पत्रोंकी | ( नोट—किसी किसी ग्रन्थमें प्रत्येक वस्तुमें अधपकी भस्म बन जाय और वह पत्रोंके रूपमें सात सात बार बुझानेको लिखा है।) न रहें तो हरतालको उस चूर्णके ऊपर नीचे (२६३१) तारस्य विशेषशोधनम् रखकर पुट देनी चाहिये अथवा चांदीके साथ ही ( आ. वे. प्र. । अ. ११ ) किसी अम्ल पदार्थमें धोटकर टिकिया बनाकर तैलतक्रादिशुद्धस्य रजतस्य विशेषतः । सुखाकर सम्पुटमें बन्द करके पुट देनी चाहियें।) शोधनं मुनिभिः प्रोक्तं तद्यथावनिगद्यते ॥ (२६२९) तारशोधनम् (र.र.स.पूर्व.अ.५) पत्रीकृतं तु रजतं प्रतप्तं जातवेदसि । नागेन टङ्कणेनैव वापितं शुद्धिमृच्छति ।
निर्वापितमगस्त्यस्य रसे वारत्रयं शुचि ॥ तारं त्रिवारं निक्षिप्तं तैले ज्योतिष्मतीभवे ॥
चांदीके पत्रोंको तैल तक्रादिमें शुद्ध करनेके
पश्चात् उन्हें अग्निमें खूब तपा तपाकर तीन बार समान भाग चांदी और सीसेको पिघलाकर
अगस्तिके रसमें बुझानेसे वह शुद्ध हो जाते हैं। एकत्र मिलावें फिर उसमें सुहागा डालकर अग्निमें तपाकर मालकंगनीके तैलमें बुझावें । इसी प्रकार
(२६३२) तारसुन्दरीवटी (रससार । प.२४)
तारं कान्तं व्योम वङ्गं तावद्भागं च मूतकम् । तपा तपाकर ३ बार बुझानेसे चांदी शुद्ध हो
गन्धकेन समायुक्तं चक्रयन्त्रे स्थिरीकृतम् ॥ जाती है।
क्षुरको गोक्षुरः कच्छुः शतमूली बलात्रयम् । (नोट-सीसा केवल पहिली बार ही मिलाना
एभिर्वद्धा वटी श्रेष्ठा सुन्दरी तारसंज्ञका ॥ चाहिये बाद को नहीं; और सुहागा हर बार
रमेद्रामाशतं रात्रौ दुर्दण्डविहितेन्द्रियः । डालना चाहिये । )
वलीपलितनिर्मुक्तो दीर्घायुर्जायते नरः ॥ (२६३०) तारशोधनम्
___चांदीभस्म, कान्तलोह-भस्म, अभ्रकभस्म, (शा. सं. । म. ख. अ. ११; भा. प्र. । ख. १; वङ्गभस्म और शुद्ध पारा तथा शुद्ध गन्धक समान
यो. त. । त. १७; र. र. स.। पू.खं. अ. ५) । भाग लेकर सबको घोटकर महीन कज्जली बना स्वर्णतारारताम्रायःपत्राण्यग्नौ प्रतापयेत् ।
लीजिये फिर उसे सम्पुटमें बन्द करके चत्र यन्त्रमें निषिश्वेत्तप्तततानि तैले तके च कानिके॥ पकाइये और फिर स्वांग शीतल होने पर निकाल
" गोमूत्रे च कुलत्थानां कषाये च त्रिधा त्रिधा।
कर १-१ दिन तालमखाना, गोखरू, कौंचके
बीज और तीनों प्रकारकी बला (खरैटी, गंगेरन, एवं स्वर्णादिलोहानां विशुद्धिः संप्रजायते ।।
कंघी )के काथ तथा शतावरीके रसमें घोटकर स्वर्ण, चांदी, पीतल, ताम्र और लोहके गोलियां बना लीजिए । पत्रोंको अग्निमें तपा तपाकर ३-३ बार तिलके इसके सेवनसे सैंकड़ों स्त्रियोंके माथ रमण तैल, तक्र, काञ्जी, गोमूत्र और कुलथीके क्वाथमें . करनेकी शक्ति और बलीपलित-रहित दीर्घायु प्राप्त बुझानेसे वह शुद्ध हो जाते हैं।
| होती है।
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