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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [गकारादि (१२८०) गृहधूमादि चूर्णम् (वं.से.। ब्र.रो.अ.) गोक्षुरकःक्षुरकाशतमूलीगृहधूमः सलवणः सकिण्वतिलचित्रकः। वानरीनागबलातिवला च । मेदोदुष्टत्रणान्याशु शोषयेन्मधुमिश्रितः॥ धरका धुवां, सेंधानमक, सुराबीज और तिल । वाजिकरं परंम मनुजानाम्॥ (अथवा तिलकी खल) और चित्रकके चूर्णको गोखरु, तालमखाना, शतावर, कौंचकेबीज, शहद में मिलाकर लेप करनेसे (अथवा इनकी पट्टी | नागवला (खरैटी भेद ) और खरैटी के चूर्णको लगानेसे) मेदसे दुष्ट व्रण शीत्र शुष्क हो जाते हैं । गत्रिके समय दृधके साथ सेवन कीजिए। यह अत्यन्त बाजीकरण है। (१२८१) गैरिकादि चूर्णम् ( यो. र. । यो. कन्द, चि. ) . । (१२८५)गोक्षुरादि चूर्णम् (वा. भ.। वाजी०) गैरिकाम्रास्थिजठर जन्यञ्जनकटफलाः । श्वदंप्रेचरमापामगुप्ताबीजशतावरी । परयेद्योनिमेतेषां चूर्गः क्षौद्रसमन्वितः ।। पिबन्क्षीरेण जीर्णोऽपि गच्छति प्रमदाशतम् ।। गेरु, आमकी गुठलीकी गिरी (गर्भ), ह दी, ___गोबरु, ईखकी जड़, उड़द, कौंचकेबीज और सरमा (अथवा रसौत ) और कायफल के चर्णको | शतावर के चूर्णको दृधमें मिलाकर पीनेसे वृद्ध पुरुषमें भी सैंकडों स्त्रियोंके साथ रमण करनेकी योनिमें भरने से गोलिकन्द नष्ट होता है। शक्ति आ जाती है। (१२८२) गोक्षुरचूर्णम् । (१२८६) गोक्षुरादि पञ्चमूलम् ( नि. र. ) (यो, र.। नपुंसका,, बं, से । रसा, ) गोक्षुरो बदरी चेन्द्रवारुणी कासमर्दिका। शमयति गोक्षुरचूर्ण छागीरेण साधितं समधु। गोक्षुरायं पश्चमूलं शिरीषेण समन्वितम् ॥ भुक्तक्षपयति पाण्डयं यज्जनितं कुप्रयोगेण ।। गोक्षुरादिकपश्चानां मूलं कुष्टार्शनाशनम् । गोखरू के चूर्णको बकरी के दृधमें पकाकर | वृष्यं वातं कर्फ गुल्मं व्रणं चामश्च नाशयेत्।। मधु मिलाकर पीनेसे कुप्रयोगों से उत्पन्न हुआ गोखरू, बेर, इन्द्रायण, कसौंदी और सिरस । नपुंसकत्व नष्ट होता है। . इन पांचोंकी जड़के समूहका नाम “ गोक्षुरादि (१२८३)गोक्षुरादि चूर्णम्(हा.सं.स्था.३अ.३५) पञ्चमूल " है । यह कुष्ट अश, वात, कफ, गुल्म, गोक्षुरकस्य बीजानां धातुमाक्षिकं संयुतम् । व्रण, तथा आम नाशक और वृष्य है। चूर्ण महिषीदुग्धेन पानं चाश्मरिपातनम् ॥ (१२८७) गोजिहादि चूर्णम् (बृ.नि.रं.। ज्व.) गोखरू और सोनामक्खीके चूर्ण ( भस्म) को गोजिह्वा च जपामूलं पिष्ट्वा तण्डुलवारिणा । भैसके दूधके साथ सेवन करनेसे अश्मरी (पथरी) | पीतं शीतज्वरं हन्ति पाठाद्भिर्मरिचानि च । निकल जाती है। गोभी, और जपा ( हारसिंहार ) की जड़को (१२८४) गोक्षुरादि चूर्णम् तण्डुल जलमें पीसकर अथवा पाठाके काथमें मिर्च (नपुंसका. त. ३ यो. त. । त. ८४) मिलाकर पीनेसे शीतज्वर नष्ट होता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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