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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir कषायपकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२९] (१२७५) गुडूच्यादि रसायनचूर्णम् । इसे काञ्जी, शुक्त, मधु अथवा यूषके साथ (वं. मा.। रसा., यो. चिं.। चूर्ण अ.; वंग. से. । रसा.)। पीनेसे गुल्म और अश्मरीका नाश होता है। गुडूच्यपामार्गविडङ्गशविनी . (१२७७) गुल्महरचूर्णम् (यो, त.। त,४५) वचाभयाशुण्ठिशतावरी समम् ।। क्षारद्वयानलव्योषनीली लवणपञ्चकम् । घृतेन लीढं प्रकरोति मानवं चूणितं सर्पिपा पेयं सर्वगुल्मोदरापहम् ॥ त्रिभिर्दिनैः श्लोकसहस्रधारिणम् ।। दोनों क्षार (सजी क्षार, जवाखार), चीना, गिलोय, चिरचिटा, बायबिडंग, शंखाहोली | त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल) नील और पाचा (शंखपुष्पी), बच, हर्र, सोंठ और शतावर समान लवण । (समान भाग लेकर ) चूर्ण करके वृतमें भाग लेकर चूर्ण करें। इसे घृतमें मिलाकर चाट- मिलाकर पीनेसे सर्व प्रकारके गुम और उदर रोग नेसे ३ दिनमें ही स्मरण शक्ति इतनी हो जाती | नष्ट होते हैं। है कि प्रतिदिन १ सहस्र श्लोक कण्ठ किए जा | (प्र. वि. ३ माशे पूर्ण १ तोला. चुतमें सकते हैं। मिलाकर प्रातःसायं सेवन करें।) प्र. वि. ३ माशा 'चूर्ण १ तोला धृतमें। (१२७८) गुह्यदौर्गन्ध्यनाशनः योग: मिलाकर प्रातः सायं चाट कर ऊपरसे मिश्री युक्त (यो. स. । स. ५) दूध पीना चाहिए। उशीरमांसीजलचन्दनैश्च सपद्मकै केसरकुष्ठयुक्तैः। (१२७६) गुल्मनाशकचूर्णम् (च. सं.) . त्रिरात्रिमुद्वर्तनकं वराङ्गप्रक्लेददुर्गन्धविनाश हेतुः।। त्रुटिं सुराहां लवणानि पञ्च, खस, जटामांसी, सुगन्धवाला, सफेदचन्दन, यवाग्रज कुन्दुरुकाश्मभेदौ। पद्माख, केसर (जाफरान या नागकेसर) और कम्पिल्लक गोक्षुरकस्य बीज- . । कूल समान भाग लेकर चूर्ण बना लीजिए। इसे मेरवारुबीजं त्रपुषस्य वीजम् ॥ मर्दन करने से स्त्रियोंके गुह्य भाग की दुर्गन्ध चूर्णीकृतं चित्रकहिङ्गमांसी और क्लेद (आर्द्रता)का ३ दिनमें नाश हो जाताहै। यवानितुल्यं त्रिफला द्विभागम् । (१२७९) गृहधूमादि चूर्णम् (वं.से.। विष.अ.) अम्लैः सशुक्तैः रसमद्ययषैः गृहधूमं हरिद्रे द्वे समूलं तण्डुलीयकम् । पेयं हि गुल्माश्मरीभेदनार्थम् ॥ अपि वासुकिना दंष्ट्रः पिबेदधिनप्लुतम् ।। छोटी इलायची, देवदारु, पांचों नमक, यव- घरका धुवां, दोनों हल्दी (हल्दी, दारु हल्दो) क्षार, कुन्दरु, पत्थरचटा, कबीला, गोखरु, ककड़ी और मूल सहित चौलाई का पौदा समान भाग और खीरेके बीज, चीता, हींग, · जटामांसी और | लेकर पीसकर दही और घृतमें मिलाकर पिलाना अजवायन एक एक भाग तथा त्रिफला दो भाग सर्प दंश ( सापसे काटे हुवे रोगी) के लिए लेकर चूर्ण बना लीजिए। हितकर है। १ ब्राह्मी वचेति पाठभेदः । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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