SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ २८ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।. [गकारादि - - गिलोयका सत, सोंठ, मिर्च, पीपल, हैड, बहेड़ा जाती है कि वह सैकड़ों स्त्रियों के साथ रमण आमला, दालचीनी, तेजपात, और नागकेसर ?--2 कर सकता है। भाग तथा शुद्ध लोहचूर्ण ( अथवा भस्म ) १० (१२७२) गुडूच्यादि चूर्णम् (भै. र. । प्ली.) भाग लेकर चूर्ण करके ( शहद और घृतमें मिला- गुडूच्यतिविषाशुण्ठीभूनिम्बो यवतिक्तकम् । कर ) सेवन करनेसे वातरक्त नष्ट होता है। मुस्तऋणायवक्षारः कासीसं भ्रमरातिथिः ।। (१२६९) गुडूच्यादि चूर्णम् (वृ. नि.र । शु.रो.) एतेषां समभागेन चूर्णमेव विनिर्दिशेत् । पीतमुष्णाम्भसा चूर्ण, गुडूचीमरिचोद्भवम् । यकृतप्लीहपाण्डुरोगमनिमान्यमरोचकम् ।। हृच्छलं वातशूलश्च ,हन्ति पथ्याशनो नरः॥ ज्वरमष्टविधं हन्ति साध्यासाध्यमथापि वा। पथ्यपालन पूर्वक गिलोय और मिर्चका चूर्ण नानादेशोद्भवं चैव वारिदोषभवं तथा ॥ गरम पानीके साथ पीनेसे हृदयका शूल और वातज विरुद्धभेषजभवं ज्वरमाशु व्यपोहति ॥ शूल नष्ट होता है। ___ गिलोय, अतीस, सोंठ चिरायता, यवतिक्ता, नोट-इसी ग्रन्थमें अन्यत्र कथित इसी प्रयोग मोथा, पीपल, यवक्षार कसीस और चम्पा। सब को जम्बीरी नीम्बूके साथ सेवन करनेका विधानहै। ओषधियां समान भाग लेकर चर्ण कर लीजिए। (१२७०) गुडूच्यादिगणः (हा. सं. । क्ष. रो.) यह यकृत , प्लीहा, पाण्डुरोग अग्निमांद्य, अरोचक, गुडूची च बले द्वे च, धात्री च मरिचानि च। आठ प्रकारके साध्य तथा असाध्य ज्वर, नाना चूर्ण गुडेन संयुक्त राजयक्ष्मापहं नृणाम् ॥ देशों के जलदोषसे उत्पन्न ज्वर तथा विरुद्ध औषध ___ गिलोय, खरैटी, कंधी आमला और मिर्चके से उत्पन्न ज्वरको शीत्र नष्ट कर देता है। वर्णको गुड़के साथ सेवन करने से राजयक्ष्मा का (१२७३) गुडूच्यादि चूर्णम् (बं से. । श्ली.) नाश होता है। पिवेदेवं गुडूची वा नागरं भद्दारु च । (१२७१) गुडूच्यादि चर्णम् (यो. चि. । वाजी.) पिबेत्सर्षपतैलेन श्लीपदानां निवृत्तये ॥ सत्वं गुडूच्या गगनं सलौहं, गिलोय, सोंठ और देवदारु के चूर्ण को ___एलासितामागधिका समेतम् ।। (गोमूत्र ) अथवा सरसों के तेलके साथ पीनेसे एतत्समस्तं मधुनावलीढं, स्लीपद रोग नष्ट होता है। रामाशतं सेवयतीह षण्ढः।। (१२७४) गुडूच्यादि प्रयोगः (यो. र. । मेद.) __ गिलोय का सत्व, अभ्रकभस्म, लोह भस्म, गुडूचीभद्रमुस्तानां प्रयोगखैफलस्तथा।। इलायची, मिश्री और पीपल समान भाग लेकर। . तक्रारिष्टप्रयोगश्च प्रयोगो माक्षिकस्य च ॥ चर्ण बना लीजिए। इसे शहद में मिला कर गिलोय, भद्रमुस्ता ( नागरमोथा ), त्रिफला, (आधेमाशे की मात्रानुसार) सेवन करनेसे नपुंसक तक्रारिष्ट अथवा शहद सेवन करनेसे मेद रोग मनुष्य में भी इतनी अधिक कामशक्ति उत्पन्न हो नष्ट होता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy