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रसपकरणम्
द्वितीयो भागः।
[४२७].
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छालके स्वरसकी कई भावनाएं देकर और कुडेकी । पल नारयलका पानी और सबसे चार गुना त्रिफलेछालके रसमें ही पीसकर इन पत्रोंपर लेप करदें और का काथ मिलाकर तांबे या लोहेकी करछलीसे सुखाकर दो शरावोंके बीचमें रखकर ऊपरसे ३-४ चलाते हुवे पकावें । जब समस्त पानी जल जाय कपरमिट्टी करके सुखालें । तत्पश्चात् एक ऐसा तो तुरन्त अग्निसे नीचे उतारकर करछलीसे अच्छी गढ़ा खुदवाएं कि जो तलीमें तो ४ हाथ लम्बा | तरह घोटकर चूर्णके समान करदें । अब इसमें चौड़ा हो पर जिसका मुख केवल एक हाथ लम्बा त्रिकुटा, त्रिफला, लाल चीता, बायबिडंग, नागरमोथा, चौड़ा रहे । इस गढ़ में आधी दूरतक अरने उपले | काला जोरा और सफेद जीरेका चूर्ण ११-१॥ ( कण्डे ) भरकर उनपर अग्नि डाल दीजिए; जब तोला तथा इलायची, कंकोल, लौंग, जायफल, अग्नि अच्छी तरह सुलग जाय तो उस पर सम्पुटको जावित्री, दालचीनी और कपूरका अत्यन्त महीन रखकर गढेको मुंहतक उपलोंसे भर दीजिए और चूर्ण १०-१० माघे मिलाकर ताम्रपात्रमें अथवा उसके ऊपर मिट्टीकी नांद या अन्य कोई घृतसे चिकने किए हुवे मिट्टीके पात्र में भरकर रखदें। ऐसी चीज़ ढक दीजिये कि जिससे उसके भीतर । प्रथम दिन सूर्य का ध्यान करके इसमेंसे १। हवा जानेको मार्ग रह जाय और अग्नि न बुझने माषा औषध दही और शहदमें मिलाकर रोगीको पावे । अब अग्निके शान्त होने और गढेके खिलायें और ऊपरसे वह अधिकसे अधिक जितना बिकुल शीतल हो जानेपर उसमेंसे सम्पुटको | दूध पी सके उतना पिलादें । रात्रिको भी भरपेट निकालकर ताम्रपत्रोंको निकाल लीजिए । यदि दूध पिलाकर पान खिलाएं । कच्चे हों तो फिर इसी तरह गन्धकके साथ पुट दूसरे दिनसे रोजाना २ रत्ती, ३ रत्ती या ५ दीजिए । भस्म तैयार होनेपर शीशीमें भरकर रख रत्ती औषध बढ़ाकर खिलायें । जब दो माघे दीजिए।
मात्रा पर पहुंच जाय तो इसी प्रकार प्रतिदिन ____ अब इस ताम्रभस्मके बराबर पारद लेकर
औषध घटाकर सेवन कराएं । यदि कुछ लाभ उसे 2 दिन धरके धुंवेके साथ घोटिए और प्रतीत न हो तो पुनः इसी प्रकार सेवन कराना पानीसे धोकर डमरुयन्त्रसे उड़ा लीजिए। इसी चाहिए. परन्तु इस बार औषध खानेके बाद प्रकार एक एक दिन हल्दी, इंटका चूर्ण और । त्रिफलाके क्वाथमें ( १ माशा ) यवक्षार मिलाकर त्रिकुटेके चूणके साथ भी घोटकर उडालें और फिर पीना चाहिए। उसमें समान भाग शुद्ध गन्धक मिलाकर तीन दिन औषधका सेवन प्रारम्भ करनेपर कुछ दिनों तक घोटें । तत्पश्चात् उसमें उपरोक्त ताम्रभस्म तक मछली नहीं खानी चाहिए। मिलाकर खरल करलें और उसे तांबे या मिट्टीकी पथ्यापथ्य-----क्रोध करना, दिनमें सोना, कढाईमें डालकर मन्दाग्निपर चढ़ाकर उसमें ८-८ । मलमूत्रादिके वेगोंको रोकना, वैरभाव, शोक, अम्लपल (४०-४० तोले ) दूध और घी तथा २ पदार्थ और कड़वे तथा कषैले पदार्थोसे परहेज़
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