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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भाग।
[४२५ ]
शुद्ध नैपाली ताम्रके बारीक पत्र और शुद्ध । ऊपर त्रिकुटेका कल्क लपेट दें तथा उसके ऊपर गन्धकका चूर्ण समान भाग लेकर एक शरावमें ! दूसरा कपड़ा लपेटकर पोटली बनाएं । अब एक थोडासा गन्धकचूर्ण बिछाकर उसपर ताम्रपत्र हाण्डीमें घी भरकर उसके मुखपर एक डण्डा रख रखें और उसपर गन्धकचूर्ण बिछाकर उसके ऊपर कर उसमें पोटलीको डोरेसे इस प्रकार बांध दीजिए दूसरा ताम्रपत्र रखकर उसे भी गन्धकके चूर्णसे कि वह धीमें डूब जाय परन्तु हाण्डीकी तलीसे कुछ ढक दें; इसी प्रकर तह जमाकर सब पत्रोंको ऊपर रहे | इस हाण्डीको मन्दाग्निपर चढ़ाकर पकागन्धकके बीच में रखकर दूसरे शरावसे ढककर इथे। जब पकते पकते औषधका गोला खूब कठिन दोनोंके जोड़को भात और खांडकी पिट्टीसे बन्द करके ! हो जाय और धीमें झाग आने बन्द हो जाये तो उसके ऊपर ३-४ कपरमिट्टी करदें और उसे अग्नि लगानी बन्द करदें और हाण्डीके स्वाङ्ग मुखाकर ४-५ कपडमिट्टी की हुई एक हाण्डीमें शीतल होनेपर पोटलीको निकालकर ऊपरसे कपड़ा रखकर उसमें मुंह तक बालू रेत भरदें और उसके और त्रिकुटेका कल्क अलग करके शेष औषधको मुंह पर शराव ढककर तथा जोड़को बन्द महीन पीस लें और उसमेंसे ५ रत्ती औषध समान करके १ प्रहर तक तेज अग्निपर पकाएं। जब भाग त्रिफला और त्रिकुटाके चूर्णमें मिलाकर प्रातःहाण्डी स्वांगशीतल हो जाय तो उसके भीतरसे काल घीके साथ सेवन करायें तथा ऊपरसे तक ताम्रको निकालकर पीसलें । इसके पश्चात् १ कर्ष पिलाएं । यदि अम्लपित्तमें सेवन कराना हो तो (१ । तो०) यह ताम्रभस्म और १ कर्ष शुद्ध केवल त्रिफलाके चूर्णके साथ मिलाकर उष्ण जलसे गन्धक एकत्र मिलाकर लोहेके पात्रमें डालकर सेवन कराएं । हर सातवें दिन १ रत्ती ताम्र मन्दाग्निपर चढाकर पत्थरकी मूसलीसे जल्दी बढ़ा दिया करें और १ माषा तक पहुंचने पर जल्दी घोटें; जब गन्धक पिघल जाय तो उसमें इसी प्रकार १-१ रत्ती औषध घटाकर सेवन जम्बीरी नीबूके रसमें शुद्ध किया हुवा पारद करायें । एक कर्ष डालकर पुनः घोर्ट और कजली हो इसके सेवनसे ग्रहणी, राजयक्ष्मा, पक्तिशल. जाने पर उसमें ८ बूंद धृत डालकर अम्लपित्त, बवासीरके मस्से ओर अन्य अनेक रोग घोंटें; जब धी अच्छी तरह मिल जाय तो
नष्ट होते हैं। पात्रको अग्निसे नीचे उतारकर उसमें १० तोले ।
इसके सेवनकालमें किसी विशेष परहेज़की मुण्डीका रस डालकर मिलावें, जब रस अच्छी तरह मिल जाय तो पात्रको पुनः अग्निपर चढ़ा
आवश्यक्ता नहीं है। कर औषधको पत्थरकी मूसलीसे घोटें। जब सब रस (२५९७ ताम्ररसायनम् (वं. से.। रसायान.) सूख जाय तो औषधको मुण्डीके रसमें घोटकर कण्टकवेधनयोग्य ताम्रस्य पत्रं पलं समादाय। गोला बनाएं और उसे कपड़े में लपेटकर उसके ! कर्षाधिकपलमात्रेऽम्लेऽग्नौ निर्दहेद्भिषक्कुशलः ।।
भा० ५४
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