________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[४१९]
के मुख पर बड़ा लोहेका चूल्हा रख कर रखदे कि नलीसे धुंआ नहीं निकलता है, तब नली और लोहजालीके ऊपर दश सेर पत्थर के कोयले द्वारा शलाका डाल कर देख ले; जब शलाकामें भर कर भट्टीके नीचे लकड़ीकी आँचदे ॥ १॥ कजली नहीं लगे तब समझे कि गन्धक जीर्ण प्रायः २॥३॥ ४ ॥ ५॥ प्रथम तीन घण्टे तो मन्दाग्नि हो गया है। तब यन्त्रको ठण्डा हो जाने पर लगानी चाहिए बाद चार घण्टे तक मध्यमानि लगानी बहुत होशियारीके साथ (उत्थापक संदंश द्वारा) चाहिए और पश्चात् तीव्राग्नि दे। यहाँ यह शङ्का हो | उतार ले और सर्वार्थ करी भ्राष्ट्रीके मुखसे चूल्हेको सकती है कि जब पत्थर के कोयलेकी आँच है हटा कर लोहजालीके ऊपर तीन चार सेर पत्थर तब अग्निक्रमका पालन किस प्रकार हो सकता के कोयले रखकर यन्त्रको कोयलों पर रख दे और है ? उसका उत्तर यह है कि जब मन्दाग्नि लगाने- नीचेसे लकड़ीकी आँच दे, परन्तु इस तीव्र आँचमें की आवश्यक्ता होगी तब भभकते हुए कोयलोंके नलीके द्वारा पारा उड़ जानेकी शङ्का है इसलिए ऊपर दो तीन नम्बरी ईट रख देंगे और मध्यमाग्नि | नलीके छिद्रको बचाकर ऊपरकी नाँदको चार तह देनी होगी तब इंटोंको हटाकर लोहेका तवा भीगे कपड़े से ढॉक दे। जव कपड़ा सूख जाय तब रख देंगे और जब तीब्राग्नि देनी होगी तब फिर दूसरा भीगा कपड़ा बदल दे । यदि किसी नवेको भी हटा देंगे, अथवा मन्दाग्नि व मध्या- | वैद्यको सर्वार्थकरी भ्राष्ट्रीके बनानेका सौकर्य नहीं ग्निके समय लोहजालीके ऊपर कोयला हो तो हलवाइयों की सी भट्टी पर ही यन्त्रको रख नहीं रखेंगे किन्तु केवल लकड़ीकी ही आँच दी। कर बबूरकी सूखी लकड़ियोंकी आँच दे। परन्तु जायगी। तीवाग्निके समय पत्थरके कोयलेभी भर | इस प्रकार करनेसे चार अहोरात्र अग्नि देनी पड़ेगी दंगे । इस प्रकार दो दिन तक आँच दे। ऐसा तब माल तैयार होगा। यन्त्रके स्वाङ्गशीतल करनेसे अग्निका प्रचण्ड ताप यन्त्रको फोड़ नहीं | हो जाने पर बहुत होशियारीसे खोले। ऊपरवाली सकेगा, क्योंकि यन्त्र सर्वदा पत्थरके कोयलोंसे | नाँदके पेंदेमें लगा हुआ सिन्दूररस मिलेगा और एक विलाँद ऊंचा रहता है । पश्चात् जब देखे । नीचेकी नाँदके तल भागमें वान्ति भ्रान्ति रहित
५-.-बराइ पुट देना हो तो लोहजालीपर उपले डालकर और भीपर लोहेका चूल्हा रखकर उसके भीतर सम्पुट रक्खें और चूल्हेमें भी उपले भरकर उसके दरवाजेको लोहेकी चादर और इंटों आदिसे बन्द करदें ।
६.-कुक्कुट पुट देना हो तो पुटको लोहजाली पर रखकर शेष भागमें उपले भरदं । इसमें भट्टीके ऊपर चूल्हा रखनेकी आवश्यकता नहीं है ।
७---भोजन बनाना हो तो लोहेकी नलीके ऊपरवाले छिद्र पर कढ़ाई रखकर बना सकत है । इत्यादि ।
(रसायनसार)
For Private And Personal