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[४१८]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
जरुरत नहीं है किन्तु सर्वार्थकरी भ्राष्ट्रीमें जो ! चीजोंको पानीके योगसे दो दिन तक कूट कर लोह जालो रखी जाती है वही दो चार मासमें खूब चिकना कल्क बनावे, । इसी कल्क आँच खानेसे भस्मीभूत हो जाती है उसी को कूट की मुद्रा कर दे, और इसी कल्कसे नाँदके पेंदेंमें कर कपड़ेमें छानकर रख छोड़े अथवा लुहारोंके लगी हुई नलीके मुख परभी मुद्रा करदे । मुद्राके यहाँ जो लोह जलकर भस्मीभूत निकम्मे पड़े रहते | ऊपर सात कपरौटी करके खूब सुखादे; पश्चात् हैं उसीको ले ) और चिकनी मिट्टी, इन चारों | इस “नलिकाडमरुयन्त्र" को सर्वार्थकरीभ्राष्ट्री'
१ सर्वार्थकरी भ्राष्ट्री-प्रथम पृथ्वीमें एक वृत्त (घेरा-कुण्डल) इतना बड़ा बनावें कि जिसमें डेढ़ हाथका डण्डा आ जाय । अब इसके बीच में एक बालिश्त (बिलांद) गढ़ा खोदे
और उसमें पानी डालकर मट्टीको खूब कूटकर पक्का करदें। इसके पश्चात् इस गढ़ेके किनारेसे भट्टीकी दिवार कच्ची ईटोंसे बनाना शुरु करें, जब अठारह अंगुल ऊंची भीत बन जाय तो उसपर चारों ओर लोहेके एक एक हाथ लम्बे चार डण्डे रखदे और उनके ऊपर १० अंगुल भीत और बनादे । लोहेके उण्डे इस प्रकार लगाने चाहिये कि आवश्यकतानुसार बाहर निकाले या भीतर घुसाए जा सकें । भीतको इस प्रकार बनाना चाहिये कि जिससे अन्तमें उसके ऊपर २२ अंगुल चौड़ी लोहजाली आ सके भीतके नीचेके भागमें १-१ बिलांद लम्बे चौड़े दो दरवाजे बनाने चाहिये । भट्टीके अन्दर एक हाथ लम्बी लोहेकी नली भी लगानी चाहिये इस नलीका एक सिरा भट्टीके ऊपर जाकर निकलेगा और दूसरा भट्टीके भीतर । भट्टीके भीतरवाला सिरा (मुख) इतना बड़ा होना चाहिये किं जिसमें मुट्ठी घुस सके और ऊपरवाला सिरा ३ अंगुल चौड़ा होना चाहिये । यह नली नीचेसे ऊपरको सीधी नहीं बल्कि कुछ आड़ी करके लगानी चाहिये । इसके नीचेवाले मुवमें अमिकी लपटें घुसेगी और ऊपरवाले मुखसे बाहर निकलेंगी ।
यह भट्टी इतनी उपयोगी है कि इस पर आयुर्वेदको सभी औषधे सुगमतापूर्वक बन सकती हैं ।
उपयोग-१-यदि किसी औषधके सम्पुटको तीवामि देनी हो तो भट्टीके बीचमें लगे हुवे लोहेके डण्डोंको छः छः अंगुल भीतके बाहर (भट्टीके अन्दर ) निकालकर उन पर लोहजाली रख दीजिये ( जैसा लोहेकी अंगीठियों या दम चूल्हेमें होती है ।) इस जालीपर सम्पुट रखकर उसके चारों ओर पत्थरके या लकड़ीके पक्के कोयले भरकर भट्टीके नीचे के भागमें आग लगाइये ।
२-- हरितालादिकी भस्म बनानेके लिये भट्टीके ऊपर एक बड़ासा लोहेका चूल्हा रखकर उसपर यन्त्रको रखना चाहिये । बीचवाली जालीपर सम्पुट भी पकता रहे तो कोई हर्ज नहीं है ।
३--धात्वादि शोधनके लिए भट्टीके दरवाजाके बीच में एक तीसरा दरवाजा भी रख लेना चाहिये कि जिसके भीतर लोहेका करछा घुसाया जा सके कि जिसमें धात्वादि डालार तपाई जा सके ।
४--गजपुट देना हो तो--लोह जालीको निकाल कर और लोहेके डण्डोंको भीतर घुसाकर महीके मध्यमें सम्पुट रखदं और ऊपर नीचे उपले भरकर आंच दें तथा दरबाजे बन्द करदें ।
( शेष भाग पृ. ४१९ के नीचे दोखए)
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