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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [४१२] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [तकारादि - - शुद्ध ताम्र २० भाग, शुद्ध मंसिल ३ भाग, पल गन्धककी कजलीको पौन पल (३॥ तोले) और कुटेहुवे भिलावे २० भाग तथा गन्धक ४० नीबूके रसमें घोट कर लेप करदें और अन्धमूषामें भाग लेकर सबको एकत्र कूटले; और उसे सम्पुट बन्द करके लघुपुटमें फूंक दें, इसी प्रकार ५ पुट दें। में बन्द करके हण्डिकायन्त्र (बालुका यन्त्र) में इसे १ रत्तीकी मात्रानुसार घी और शहदमें ५ पहरकी अग्नि दें । तत्पश्चात् हण्डीके स्वांग- मिलाकर चाटनेसे सर्व प्रकारके भगन्दर और व्रण शीतल होने पर उसमेंसे भस्मीभृत ताम्रको निकाल । (घाव) नष्ट होते हैं। लें और पीपलके काथ, इमलीके पत्तोंके स्वरस, : (२५७६) ताम्रभस्मप्रयोगः ( २ ) बेरीके पत्तोंके स्वरस और घृतकुमारीके रसमेंसे (भा. प्र. । ख. २ मूर्छा.) प्रत्येकमें घोट घोटकर ५-५ पुट (कुल मिलाकर तानं दुरालभाकाथैः पीतन्तु घृतसंयुतम् । २० पुट) दें और फिर पीसकर रख लें। - निवारयेदभ्रमं शीघ्रं तं यथा शम्भुभाषितम् ।। इसमेंसे १ माषा या न्यूनाधिक मात्रानुसार ताम्र भस्मको घीमें मिलाकर चाटकर ऊपरसे पीपलके चूर्णके साथ खिलानेसे समस्त आम निकल | धमासेका काथ पीनेसे भ्रमका अत्यन्त शीघ्र नाश जाने तक विरेचन होता रहता है और मूर्छा, हो जाता है। वमन, भ्रान्ति आदि नहीं होती। (२५७७) ताम्रभस्मयोगः ( ६ ) (अनुपान-उष्ण जल या त्रिफला काथ।) (र. का. थे. । कुष्ठ.) (२५७५) ताम्रभस्मप्रयोगः (४) तानं मृतमपामार्गक्षारञ्च क्षारकद्वयम् । (भै. र. । भगन्दरा.) समं गुञ्जाद्वयं प्रातः प्रातर्नित्यं निषेवयेत् ।। ताम्रपत्रं रवेः क्षीरे निर्गुण्डीस्वरसे तथा । मध्याह्नभोजनात्पूर्व सायमेव द्वयं भवेत् । त्रिकण्टजे स्नुहीरसे तानं दग्ध्वा क्षिपेत्ततः॥ औदुम्बरे महाकुष्ठे साध्यासाध्येपि निश्चितम् ।। रसस्या पलं शुद्धं गन्धकस्य पलं तथा। सप्तसप्तकमध्ये तदवश्यं नाशयेदपि । कज्जल्यर्द्धन जम्बीरप्लुतेन ताम्रतः पलम् ॥ मांसं न भक्षयेन्नूनं न मत्स्य क्षीरमेव च ॥ परिक्षिप्यान्धमूपायां दद्यात्पञ्चपुटालंघून् । अन्यद्वस्तु न चाश्नीयाद्विदाही न गुरूदकम् ॥ सम्मयं मधुसर्पिभ्यो ततो रक्तिमितं लिहेत् ॥ ताम्रभस्म, अपामार्ग ( चिरचिटे )का क्षार, भगन्दरे सर्वभवे कार्य सर्वत्रणेषु च ॥ जवाखार और सज्जीखार ( सोडा ) समान भाग तांबेके बारीक पत्रोंको अग्निमें तपा तपा कर लेकर एकत्र खरल करा लीजिए । सात सात बार आकके दूध, संभालुके रस, गोखरु- इसमेंसे प्रतिदिन प्रातःकाल तथा दोपहरको के रस या काथ, तथा सेंड (थूहर) के रसमें । और शामको भोजनसे पहिले २ रत्ती की मात्रानुसार बझाइये: फिर १ पल (५ तोले) यह शुद्ध ताम्र सेवन करनेसे ४९ दिनमें साध्य अथवा असाध्य पत्र लें और उनपर आधा पल पारद और एक | औदुम्बर महाकुष्टको अवश्य आराम हो जाता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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