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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] द्वितीयो भागः । (४१३ ] इसपर दुग्धाहार करना चाहिये और मांस, (२५८१) ताम्र भस्मविधिः (१) मछली तथा विदाही पदार्थ और भारी पानीसे (वैद्यामृत. । विषय १० श्लो. १७-१८) परहेज़ करना चाहिये। तानं कशानौ सलिलं विधाय (२५७८) ताम्रभस्मयोगः (७)(र.रा.मुं.। ज्वरा) निर्वापयेल्लोणिरसे त्रिवारम् । मृतं तानं च मरिचं लवङ्गं कुङ्कुमं कणा। उपर्यधस्तस्य पटु प्रदत्वा भार्गी समांशचूणे स्यानागवल्लीदलान्वितम् ॥ पुटं प्रदद्याच्च भवेत् सुभस्म ॥१७॥ माषैकं सार्द्धमाष वा कफव्याधिविनाशनम् ।। कासातुराय श्वसनातुराय ____ ताम्रभस्म, कृष्ण मरिच, लौंग, केसर, हितं तदेतन्मगधामधुभ्याम् । पीपल और भार्गीका चूर्ण समान भाग लेकर एकत्र यथा तृषार्ताय सुगन्धशीतं खरल कर लीजिये। चकोरनेत्राकरदत्तमम्भः ॥१८॥ इसमेंसे १ या १॥ माषा चूर्ण पानमें रख- तांबेको अग्निमें गला गलाकर तीन बार कर खानेसे कफज वर नष्ट होते हैं । | लोणीके रसमें बुझाइये । अब इसे सेंधा नमकके (२५७९) ताम्रभस्मयोगः (८) चूर्णके बीचमें रखकर सम्पुट करके गजपुटमें ( र. चं. । मूर्छा; भा. प्र. । ख. २ मूर्छा.) फूंकनेसे उत्तम भस्म बन जायगी। ताम्रचूर्ण समोशी केसरं शीतवारिणा।। इसे पीपलके चूर्ण और शहद के साथ चाटनेसे पीतं मूच्छी द्रुतं हन्याद् वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा॥ खांसी और स्वासका नाश होता है। ताम्रभस्म, खस और केसरका समान भाग । (नोट-यदि एक पुटमें भस्म न हो तो चूर्ण एकत्र खरल कराके रखिये। पुनः इसी प्रकार पुट लगानी चाहिये ) इसे ३-४ रत्तीकी मात्रानुसार शीतल जलके । (२५८२) ताम्रभस्मविधिः (२-४ ) साथ पीनेसे मूर्छा अत्यन्त शीघ्र जाती रहती है। (र. र. स. । पू. ख. अ. ५; र. मञ्जरी. अ. ५) (२५८०) ताम्रभस्मयोगः (९) जम्बीररससंपिष्टरसगन्धकलेपितम् । ( र. चिं. म. । अ, ९: र.का.धे.। अधि. २२) शुल्वपत्रं शरावस्थं त्रिपुटैाति पश्चताम् । केवलं जारितं तानं शृङ्गवेररसैः सह । द्विगुजं भक्षयेत्पातः सर्वगुल्मोदरापहम् ॥ । अथवा मारितं तानं ह्यम्लेनैकेन मर्दितम् । केवल ताम्रभस्मको २ रत्तीकी मात्रानुसार । तद्गोलं मरणस्यान्तं रुध्या सर्वत्र लेपयेत् ।। अदरकके रसके साथ प्रातःकाल सेवन करनेसे शुष्कं गजपुटे पच्यात्सर्वदोषहरं भवेत् । समस्त प्रकारके उदररो7 और गुल्म नष्ट होते हैं। वान्ति भ्रान्ति विरेकश्च न करोति कदाचन ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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