________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
-
*.
15ay
' s
W
.
..
...
.
.
.
.
....
...
.
.
.
..
रसपकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[४.१] त्रिफला मनुष्यों के लिए अत्यन्त हितकारी है । त्रिफलाको दूधके साथ सेवन करनेसे लाभ होता और समस्त रोगोंमें प्रयुक्त किया जा सकता है। है; तथा नेत्ररोग, शिरोरोग, कुष्ठ, कण्डू, व्रण, यह शीघ्र ही समस्त रोगोंका नाश करके तेज, पीनस, मूत्रावरोध, कामला और अग्नि मांद्यमें कान्ति और प्रतिभाकी वृद्धि कर देता है। पानीके साथ पीसकर खाने से रोग नष्ट हो
__ शोथ, कामला, पाण्डु और उदर रोगों में जाता है । त्रिफलाको गोमूत्र के साथ, तथा हिचकी, अतिसार त्रिफलाको शीतकाल में सौंउके चूर्ण और
और ग्रहणी रोगमें तक के साथ सेवन करना गुड़के साथ, ग्रीष्मकालमें खांड और दूधके साथ, चाहिए।
__ और वर्षाकालमें सोंउके साथ सेवन करनेसे समस्त ___ यदि इन्द्रियां क्षीण हो गई हो या जीर्ण- रोग नष्ट हो जाते हैं। वर अथवा यस्मा रोगने दबा रखा हो तो इति तकारादिकल्पप्रकरणम् ।
अथ तकारादिरसप्रकरणम् । (२५५५) तक्रमण्डूरम् (भै. र. । शोथे) (२५५६) तक्रवटी (भै. र. । ग्रहणी) गोमूत्रशुद्धं मण्डूरचूर्ण पलचतुष्टयम् । रसस्य माषकं ग्राह्यं गन्धकस्य च माषकम् । बिल्वपत्रं भङ्गराजद्वयञ्च गणिकारिका॥ द्विमाषकं विषस्थापि तानं माषचतुष्टयम् ॥ शोथनो कोकिलाक्षश्च रसैरेषां पृथक पृथक । तोलकं पिप्पलीचूर्ण मण्डूरस्य च तोलकम् । गोमूत्राष्टपलैश्चैव भावयेधनतस्त्रिधा ॥ काथेन कृष्णजीरस्थ भावयेत्सप्तवासरम् ॥ दशगुञ्जामितां खादेत्तक्रेण वर्जयेज्जलम् । वल्लप्रमाणां वटिकां तक्रेण सह पाययेत् । तक्रेण भीजयेदन पाने तक्रश्च दापयेत् ॥ तक्रेण भोजनं पानं लवणाम्भोविवर्जितम् ।। पाण्डुशोथं हरेत्तर्ण भास्करस्तिमिरं यथा ॥ निहन्ति शोथं ग्रहणीं मन्दाग्निं पाण्डुतामपि ।।
गोमूत्रमें शुद्ध किया हुवा ४ पल (२० तोले) शुद्ध पारा और गन्धक १-१ माषा, शुद्ध मण्डर लेकर उसे बेलपत्र, काला और सफेद / मीठा तेलिया २ मा, तात्र भस्म ४ माथे और भंगरा, अरनी पुनर्नवा और तालमखानेके रसमें । पीपल तथा मण्डूर भस्म १-१ तोला लेकर प्रथम १-१ दिन घोटकर उसमें ८ पल ( ४० तोले) पारे गन्धककी कजली बना लीजिए और फिर गोमूत्र थोड़ा थोड़ा डालकर घोटें ।
अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर सबको सात दिन इसे १० रत्तीकी मात्रानुसार तक्रके साथ तक काले जीरेके रसमें घोटकर ३-३ रत्तीकी सेवन करने तथा जल बन्द कराके तक्रके साथ ही गोलियां बना लीजिए। आहार देने और प्यास में भी तक ही पिलानेसे इनमेंसे १-१ गोली प्रतिदिन प्रातः सायं पाण्डु और शोथ अत्यन्त शीघ्र नष्ट होते हैं। तक्रके साथ सेवन कराने और लवग तथा पानी
भा० ५१
For Private And Personal