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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ४०० ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [तकारादि भङ्गराजरसेनापि घृतेन सह योजितः।। त्रिफला-कफपित्त और महाकुष्ठ नागक, वलीपलितहन्ता च तथा मेधाकरः स्मृतः ॥ आयुवर्द्धक, अग्निदीपक, नेत्रोंके लिए हितकर, ब्रणसक्षीरः सगुडः काथो विषमज्वरनाशनः । शोधक, वर्ण संस्कारक, वृष्य, विषमज्वरनाशक, सशकेरा घृतः काथः सर्वजीर्णज्वरापहः ॥ | खुजली, वमन, गुल्म, अर्श, इत्यादि समस्त रोगों एषा नराणां हितकारिणी च | को नष्ट करनेवाला और स्मृति तथा मेधावर्द्धक है।' सर्वप्रयोगे त्रिफला स्मृता च । त्रिफलाको वातज रोगोंमें घृत और गुड़के सर्वामयानां शमनी च सय साथ, पित्तज रोगोंमें शहद और खांडके साथ, स्तेजश्चकान्तिप्रतिभां करोति ॥ कफजरोगोंमें त्रिकुटाके साथ मिलाकर सेवन कराना शोफे तथा कामलपाण्डुरोगे चाहिए। प्रमेह रोगमें शहदके साथ चाटकर तथोदरे मूत्रयुता हिता च । ठण्डा पानी पीना चाहिए। यदि त्रिफलाको घीके हिध्मातिसारे ग्रहणीविकारे साथ सेवन किया जाय तो कुष्ट नष्ट होता है हिता च तक्रेण फलत्रिका च ॥ | और सेंधा नमकके साथ सेवन करनेसे अग्नि प्रदीप्त क्षीणेन्द्रिये जीर्णज्वरे च यक्ष्मे होती है। क्षीरेण युक्ता त्रिफला हिता च । स्यान्नेत्ररोगे च शिरोगदे च । त्रिफलाके काथसे आंखें धोनेसे नेत्ररोग नष्ट कुष्ठे च कण्डूत्रणपीनसे च ॥ | होते हैं। मूत्रग्रहे कामलके ऽग्निमान्ये त्रिफलाके काथमें घी डालकर पीनेसे खुजली; हिता जलेन त्रिफला हि कल्किता। नीबूका रस मिलाकर पीनेसे वमन, दूधके साथ सशीतकाले गुडनागरेण पीनेसे राजयक्ष्मा, और गुड़ डालकर पीनेसे सशर्कराक्षीरयुता तथोष्णे ॥ । पाण्डुरोग नष्ट होता है। वर्षासु शुण्ठीसहिता फलत्रिका यदि त्रिफलाके क्वाथमें भांगरेका रस और फलत्रिका संवरुजाहरा स्यात् ॥ घी डालकर सेवन किया जाय तो वलि पलित नष्ट हर्र, वहेड़े और आमलेके फलोंके योगको होकर मेधा और स्मरण शक्तिकी वृद्धि होती है। त्रिफला कहते हैं । त्रिफला बनाने के लिए १ भाग त्रिफलेके काथमें दूध और गुड़ मिलाकर हर्र, २ भाग बहेड़ा और ३ भाग आमला लेना पीनेसे विषमज्वर और खांड तथा घृत मिलाकर चाहिए। पीनेसे जीर्ण ज्वर नष्ट होता है। १ संस्कृतमें त्रिफला स्त्रीलिंग है परन्तु हिन्दी में प्रायः उसे पुल्लि लिखते हैं । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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