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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
बन्द करके रोगीको केवल तक्र (छाछ) पर रखने- इसमेंसे १ माषा औषध १ शाण (४ माशे) से शोथ, संग्रहणी, मन्दाग्नि और पाण्डुका नाश काली मिर्च के चूर्ण और १॥ निष्क ( ६ माशे) होता है।
गुडके साथ मिलाकर नागरबेलके २ पानोंके साथ (२५५७) तरुणज्वरारिरसः (१)
खानेसे शीतपूर्व, और दाहपूर्व, द्वयाहिक (तिजारी) (र. प्र. सु. । अ० ८.) आदि ज्वर नष्ट होते हैं। तालताम्ररसगन्धतुत्थका
(व्यवहारिक मात्रा-२ रत्ती । ज्वर आनेके श्छाणमात्रतु लेतान्समानपि ।
समयसे ३ घन्टे पूर्व खिलाएं । औषध खिलानेके निष्कमात्रं रुचिरां मनःशिला
पश्चात् २ पान खिलाएं।) मदये त्रिलकाम्बुभिदृढम् ॥
नोट-यह रस रेचक है, गर्भिणी और बहुत गोलमस्य च विधाय सम्पुटे
छोटे बच्चोंको न देना चाहिए । पाचयेच्च पुटयोगतःसदा ।
(२५५८) तरुणज्वरारिरसः (२) अर्कवत्रिपयसा सुभावयेत्
(भै. र; धन्वं.; र. चं; रसें. सा.; र. रा. मुं.। ज्वरा.) सप्तवारमथ दन्तिकातैः॥
जैपालगन्धं विषपारदश्च माषमात्ररसमेव भक्षितं शाणमानमरिचैयुतं सदा।
तुल्यं कुमारीस्वरसेन मद्यम् । सार्धनिष्कगुडमत्र योजितं
अस्य द्विगुञ्जा हि सितोदकेन - तच्च सौरसदलद्वयान्वितम् ।।
ख्यातो रसोयं तरुणज्वरारिः॥ शीतपूर्वमथ दाहपूर्वक
दातव्य एषोऽति पञ्चमे वा ___घाहिकं च सकलान् ज्वरानपि ।
षष्ठेऽथवा सप्तम एव वापि । नाशयेद्धि तरुणज्वरारिकः
जाते विरेके विगतज्वरःस्थात् . सर्वदोषशमन सुखावहः ।।
पटोलमुद्गाननिषेवणेन ।। शुद्ध हरताल, तात्रभस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, शुद् जमाल गोटा, शुद्र गन्धक, शुद्ध वछ. शुद्ध नीला थोथा और शुद्ध मनसिल समान भाग लेकर नाग ( मिठा तेलिया ), और शुद्र पारद समान सबको त्रिफलाके रसमें अच्छी तरह घोटकर गोला। भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना बना लीजिए और उसे सुखाकर सम्पुटमे बन्द लीजिए. और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण करके गजपुट में फूंक दीजिए । पुटके स्वांग मिलाकर घीकुमारके रसमें धोटकर २-२ रत्तीकी शीतल होनेपर उसमें से औषधको निकालकर उसे गोलियां बना लिजिये । इनमेंसे प्रातःकाल मिश्रीके आक ( अर्क) और सेहुंड (सेंड-थोहर ) के दूध पानीके साथ १ गोली खिलानेसे विरेचन होकर तथा दन्तीमूलके काथकी सात सात भावनाएं दीजिए। ज्वर नष्ट हो जाता है।
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