________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
अञ्जनप्रकरणम् ]
हर्र, बहेड़ा, आमला, बछनाग विष, कसीस, संधानमक, और रसौत समान भाग लेकर ४ गुने पानीमें पकाएं जब चौथाई भाग पानी शेष रहे तो छानकर उस काथको पुनः पकाकर गाढ़ा करलें और सूखने पर महीन खरल कर लें ।
www.kobatirth.org
कृमिग्रन्थि फूट जाने पर उस स्थान पर यह चूर्ण घिसना चाहिए । (२५४७) यूषणादिवर्त्तिः
द्वितीयो भागः ।
( वृं. मा.; वं. से.; धन्वं.; भै. र. | नेत्ररो० ) त्र्यूषणत्रिफलाव तू सैन्धवालमनःशिला । दोपदेहकण्डूत्री वर्त्तिः शस्ता कफापहा ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, तगर, सेंवा, हरताल और मनसिल । सब चीज़ोंका समान भाग महोन चूर्ण लेकर पानीमें घोटकर बत्तियां बना लीजिए ।
(२५४९) ताम्बूलादिनस्यम्
( हा. सं. । अ० ३ अ. ४४ )
ताम्बूलपत्रस्य रसं विडङ्ग
सिन्धुद्भवं हिङ्गु गुडेन युक्तम् । जलेन पिटं विहितं च नस्य
अथ तकारादिनस्यप्रकरणम्
शङ्खदोषांश्च कृमीन्निहन्ति ॥ बायबिडङ्ग, सेंधानमक, हींग, और गुड़ समान भाग लेकर सबको महीन पीसकर नागर
|
[ ३९५ ]
इन्हें आंख में लगानेसे क्लेद ( चिपचिपाहट ), खुजली, और कफका नाश होता है । (२१४८) ज्यूषणाद्यञ्जनवतिः
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
( ग. नि.; वृं. मा.; भा. प्र. खं. २ | उन्माद ) त्र्यूषणं हिङ्ग लशुनं वचा कटुकरोहिणी । शिरीषनक्तमालानां वीजं श्वेताश्च सर्षपाः ॥ गोमूत्रपिष्टान्येतानि वर्त्तिनेत्राञ्जने हिता । चातुर्थकमपस्मारमुन्मादं चापकर्षति ॥
सोंठ, मिर्च, पीपल, हींग, लहसन (रसोन ), बच, कुटकी, सिरस और करञ्जके बीज तथा सफेद सरसोंका समान भाग चूर्ण लेकर सबको गोमूत्रमें घोटकर बत्तियां बना लीजिए ।
इसे पानी में घिसकर आंख में आंजनेसे, चातुर्थिक ज्वर, अपस्मार ( " मिरगी ) और उन्माद का नाश होता है ।
इति तकाराद्यञ्जनप्रकरणम्
वेल पानके रस में अच्छी तरह घोटकर सुखा लीजिए ।
इसे पानी में घोलकर नाक में टपकाने से भौं, और कनपटीकी पीड़ा तथा नाक और शिरके कृमि नष्ट होते हैं ।
(२५५०) तालकादिनस्यम् (र. रा. सुं । क्षया.) तालकं गन्धकं तुत्थं वाकुची च मनःशिला । अर्कदुग्धेन सम्पिष्ट्वा वदर्यानौ च जारयेत् ॥ नस्यं सप्तदिनं चैव कफक्षयविनाशनम् ॥
१ लवणमिति पाठान्तरम्
For Private And Personal