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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ३९४ ] मुरगीके अण्डेके छिलके । सब चीज़ोंका अत्यन्त महीन चूर्ण लेकर एकत्र खरल करके रक्खें । भारत - भैषज्य इसे आंख में लगानेसे जन्मका फूला भी नष्ट हो जाता है । (२५४२) तुत्थाद्यञ्जनम् (वं. से. । नेत्ररोगा . ) ताम्रे च मस्तुनोद्धृष्टं तुत्थकं श्यामतां गतम् । सर्वाभिष्यन्दशुक्रार्म शिराशूल जिदञ्जनात् ॥ पात्रमें मस्तु के साथ इतना - रत्नाकरः । [ तकारादि तुलसी और बेल पत्तों का रस १ - १ भाग और स्त्रीका दूध २ भाग लेकर तीनों को कांसीके पात्र में डालकर नागरबेल के पानसे अच्छी तरह रगड़ें और फिर तांबेकी मूसलीसे घोटकर कजलके समान बना लें | Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir इसे आंख में आंजने से नेत्रपाक सम्बन्धी पीड़ा अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती है। (२५४५) त्रिकवा बञ्जनम् ( वृं. मा. र. र. ग. नि. । नेत्र. ) त्रीणि कनि करञ्जफलानि तूतियाको घोटें कि वह काला हो जाय । इसे आंख में आंजने से सर्व प्रकार के नेत्राभिष्यन्द शुक्र, अर्म, शिराएं और शूल नष्ट होते हैं । (२७४३) तुरङ्गलालाद्यञ्जनम् ( वृ. नि. र. । सन्निपात ) तुरङ्गलाला लवणोत्तमेन्दु मनःशिलामागधिकामधूनि । नियोजितान्यक्षिणि निश्चितं द्राक् तन्द्रासनिद्रां विनिवारयन्ति || सेंधा नमक, कपूर, मनसिल और पीपलके महीन चूर्णको घोड़ेकी लार ( थूक ) और शहदमं घोटकर आंख में आंजनेसे सन्निपात चरकी तन्द्रा और निद्रा नष्ट होती है । (२५४४) तुलस्याद्यञ्जनम् (यो. र. । नेत्र. ) तुलस्या बिल्वपत्रस्य रसो ग्राह्यः समांशकः । ताभ्यां तुल्यं पयो नार्यास्त्रितयं कांस्यपात्र के || गजवल्या दृढं मात्रेण प्रहरं पुनः । कज्जलत्वं समुत्पाद्य तेनाजितविलोचनः || सद्यो नेत्ररुजं हन्ति सशूलां पाकसम्भवाम् || १ - दही में दो गुना पानी मिलाकर बनाए हुवे तकको ' मस्तु' कहते हैं । d. रजनी सह सैन्धवकेन । विल्वतरोर्वरुणस्य च मूलं वारिधरं दशमं च वदन्ति ॥ हन्ति तमस्तिमिरं च पटलं च पिचिशुक्रमथार्जुनकञ्च । अञ्जनकं जनरञ्जनकञ्च दृक् च न नश्यति वर्षशतञ्च ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, करञ्जफल, हल्दी, दारुहल्दी, सेंधानमक, बेलकी जड़की छाल, बरनेकी जड़की छाल और नागरमोथा । यह दशों चीजें समान भाग लेकर अच्छी तरह खरल करके अञ्जन बना लीजिए | इसे आंखमें आंजनेसे अन्धता, तिमिर, पटल, पिचिट, शुक्र और अर्जुनका नाश होता है तथा सौ वर्ष तक भी दृष्टि नष्ट नहीं होती । (२५४६) त्रिफलादिरसक्रिया ( यो० र । नेत्ररो० ) । त्रिफलामृतकासीससैन्धवैः सरसाञ्जनैः । रसक्रियां कृमिग्रन्थौ भि ने स्वात्मतिसारणम् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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