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मुरगीके अण्डेके छिलके । सब चीज़ोंका अत्यन्त महीन चूर्ण लेकर एकत्र खरल करके रक्खें ।
भारत - भैषज्य
इसे आंख में लगानेसे जन्मका फूला भी नष्ट हो जाता है ।
(२५४२) तुत्थाद्यञ्जनम् (वं. से. । नेत्ररोगा . ) ताम्रे च मस्तुनोद्धृष्टं तुत्थकं श्यामतां गतम् । सर्वाभिष्यन्दशुक्रार्म शिराशूल जिदञ्जनात् ॥ पात्रमें मस्तु के साथ इतना
- रत्नाकरः ।
[ तकारादि
तुलसी और बेल पत्तों का रस १ - १ भाग और स्त्रीका दूध २ भाग लेकर तीनों को कांसीके पात्र में डालकर नागरबेल के पानसे अच्छी तरह रगड़ें और फिर तांबेकी मूसलीसे घोटकर कजलके समान बना लें |
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इसे आंख में आंजने से नेत्रपाक सम्बन्धी पीड़ा अत्यन्त शीघ्र नष्ट हो जाती है। (२५४५) त्रिकवा बञ्जनम्
( वृं. मा. र. र. ग. नि. । नेत्र. ) त्रीणि कनि करञ्जफलानि
तूतियाको घोटें कि वह काला हो जाय ।
इसे आंख में आंजने से सर्व प्रकार के नेत्राभिष्यन्द शुक्र, अर्म, शिराएं और शूल नष्ट होते हैं । (२७४३) तुरङ्गलालाद्यञ्जनम्
( वृ. नि. र. । सन्निपात ) तुरङ्गलाला लवणोत्तमेन्दु
मनःशिलामागधिकामधूनि । नियोजितान्यक्षिणि निश्चितं द्राक् तन्द्रासनिद्रां विनिवारयन्ति ||
सेंधा नमक, कपूर, मनसिल और पीपलके महीन चूर्णको घोड़ेकी लार ( थूक ) और शहदमं घोटकर आंख में आंजनेसे सन्निपात चरकी तन्द्रा और निद्रा नष्ट होती है । (२५४४) तुलस्याद्यञ्जनम् (यो. र. । नेत्र. ) तुलस्या बिल्वपत्रस्य रसो ग्राह्यः समांशकः । ताभ्यां तुल्यं पयो नार्यास्त्रितयं कांस्यपात्र के || गजवल्या दृढं मात्रेण प्रहरं पुनः । कज्जलत्वं समुत्पाद्य तेनाजितविलोचनः || सद्यो नेत्ररुजं हन्ति सशूलां पाकसम्भवाम् ||
१ - दही में दो गुना पानी मिलाकर बनाए हुवे तकको ' मस्तु' कहते हैं ।
d. रजनी सह सैन्धवकेन । विल्वतरोर्वरुणस्य च मूलं
वारिधरं दशमं च वदन्ति ॥ हन्ति तमस्तिमिरं च पटलं च पिचिशुक्रमथार्जुनकञ्च । अञ्जनकं जनरञ्जनकञ्च
दृक् च न नश्यति वर्षशतञ्च ॥ सोंठ, मिर्च, पीपल, करञ्जफल, हल्दी, दारुहल्दी, सेंधानमक, बेलकी जड़की छाल, बरनेकी जड़की छाल और नागरमोथा । यह दशों चीजें समान भाग लेकर अच्छी तरह खरल करके अञ्जन बना लीजिए |
इसे आंखमें आंजनेसे अन्धता, तिमिर, पटल, पिचिट, शुक्र और अर्जुनका नाश होता है तथा सौ वर्ष तक भी दृष्टि नष्ट नहीं होती । (२५४६) त्रिफलादिरसक्रिया
( यो० र । नेत्ररो० ) । त्रिफलामृतकासीससैन्धवैः सरसाञ्जनैः । रसक्रियां कृमिग्रन्थौ भि ने स्वात्मतिसारणम् ॥
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