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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra [ ३९० ] www.kobatirth.org भारत-भैषज्य रत्नाकरः अथ तकारादिधूपप्रकरणम् (२५२४) तण्डुलकण्डन धूपः ( वै. म. र. । पट. १८ ) तण्डुलकण्डनलुलितैर्लशुनव॒रासर्षपैः कृतो धूपः । कन्दर्पराजधान्यास्तोदं द्रागेव जयति रमणीनाम् ।। चावल, ल्हसन, त्रिफला और सरसों को एकत्र मिलाकर धूप देनेसे योनिका तोद ( सुइ चुभनेके समान दर्द ) नष्ट होता है । इसे पानीके साथ पत्थर पर घिसकर आंख में लगाने से तन्द्रा नष्ट होती है । (२५२७) तमालपत्रादिवत्ती ( वा. भ. । उत्त. अ. १९; ग. नि. । नेत्र. ) तमालपत्रं गोदन्तं शङ्ख फेनोऽस्थिगार्दभम् । ताम्रञ्च वस्तमूत्रेण वर्त्तिः शुक्रविनाशिनी ॥ तेजपात, गायका दांत, शङ्ख, समुद्रफेन, गधेकी हड्डी और ताम्र । सब चीजें समान भाग Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ तकारादि (२५२५) तालनिम्बादियोगः (वं. से. । विष.) तालनिम्बदलं केशा जीर्णाश्च लवणं घृतम् । धूपो दृश्चिकविद्धस्य शिखिपत्रं घृतेन वा ।। हरताल, नीमके पत्ते, बाल और सेंधा नमकको अथवा केवल चिरचिटेके पत्तोंको घीमें मिलाकर धूप देनेसे विच्छूका विष उतर जाता है ! इति तकारादिधूपप्रकरणम् ॥ अथ तकाराद्यञ्जनप्रकरणम् (२५२६) तन्द्राहरीवर्तिः (हा.सं./स्था. ३ अ. २) | लेकर बकरे के मूत्रमें पीसकर बत्तियां बना लीजिए । त्रिकटु च करञ्जवीजं त्रिफला सुरदारु सैन्धवं सुरसा । वर्त्तिनयनाञ्जनकं तन्द्रा इसे पानी के साथ पत्थर पर घिसकर आंखमें आज से समस्त प्रकारके फूले नष्ट होते हैं । (२५२८) ताप्याद्यञ्जनचतुष्टयम् ( वृं. मा. नेत्र) ताप्यं मधुकसारो वा वीजं चाक्षस्य सैन्धवम् । मधुनाऽञ्जनयोगाःस्युश्चत्वारः शुक्रशान्तये । नाशं करोति नयनानाम् ॥ त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), करञ्जबीज, हर्र, बहेड़ा, आमला, देवदारु, सेंधा नमक और तुलसी । समान भाग लेकर पानीके साथ अत्यन्त महीन पीसकर बत्तियां बना लीजिए । सोनामक्खी, महुवेका सार, बहेड़े की मांगी ( बीज ) और सैन्धवमेंसे किसी एकको शहद में घिसकर आंखमें आंजनेसे फूला नष्ट होता है । (२५२९) ताम्बूलादियोगः (ग.नि. | नेत्र. ) ताम्बूलशिग्रुकरवीरशिरीपदन्ती श्यामादधित्थसुरसा सुमनार्जकानाम् । प्रत्येकशो मधुयुतः स्वरसोऽञ्जनेन कोपं नवं नयनयोः सहसैव हन्ति ॥ For Private And Personal पान, सहजना, कनेर, सिरस, दन्ती, श्यामालता, कैथ, तुलसी, चमेली और छोटी तुलसीमेंसे किसी एक के रस में शहद मिलाकर आंख में आंजनेसे
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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