________________
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
[३८४]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
(२४९५) तालमूलादियोगः (वै.म.र.पट ११) (नीला थोथा ) समान भाग लेकर प्रथम पार तुषाम्भसा तालशिकां सशुण्ठी
गन्धककी कजली बना लीजिए और फिर उसमें नाभौ कवोष्णं प्रदिहेत् कृमिनाम् । मोमके अतिरिक्त अन्य समस्त ओषधियों का महीन ___ ताल वृक्षकी जड़ और सोंठके समान भाग चूर्ण मिला लीजिए, फिर सबसे दो गुना घी चूर्ण को काजीमें पीसकर ज़रा गर्म करके नाभिपर लेकर पहिले उसमें मोमको पिघलाकर मिलाइये लेप करनेसे पेटके कृमि नष्ट होते हैं। और फिर उपरोक्त सब चीजें मिलाकर तांबेके (२४९६) तालमूलादिलेपः (वै. म. । पट.६) पात्रमें तबिकी मूसलीसे १ पहर तक अच्छी तरह तण्डुलोदकपिष्टेन तालमूलेन लेपनम् । धोटिये। नाभौ प्रकल्पितं सद्यो जयत्येव विचिकाम् ॥ इसका लेप करनेसे पीप और कृमियुक्त धाव,
ताल वृक्षकी जड़को चावलोंके पानीके साथ पिडिका (फुसियां), सर्व प्रकारके आतशकके धाव, पोसकर नाभिपर लेप करनेसे विचिका (हैज़ा) नासूर, कुष्टके धाव, भगन्दर और अन्य समस्त अवश्य ही नष्ट हो जाती है।
प्रकारके धाव नष्ट हो जाते हैं। (२४९७) तालादिलेपनम् (वृ.यो.त.।त.१२०) (२४९८) तिक्तापटोलीपत्रप्रयोगः तालं मूतवली शिला च तुवरी सिक्थं वचा वृ. नि. र.; वं. से. । क्षुद.; शा. सं.। खं. ३
धूम्रकम् । अ. ११; भा. प्र. । खं. २ इ द्रलु०) मुडदारं सुरशङ्खजीररसकं गैरीकसिन्दरकम् ॥ तिक्तापटोलीपत्रस्वरसं घष्ट्वा शमं याति । पूर्गमाहिषशृङ्गक द्विरजनी निम्ब वरा माक्षिकम्। चिरकालजापि रुह्या नियतं दिनत्रयादेव ।। भष्टं तुत्थमिदं समांशमखिलं चूर्णाद्विभागं कडवे पटोलपत्रके स्वरसको शिर पर मलने
वृतम् ।। । से पराना इन्द्रलप्त (गंज) रोग भी ३ दिनमें ही पात्रे ताम्रमये निधाय सकलं ताम्रण संघर्षयेत्। अवश्य नष्ट हो जाता है। यामैकं हरिताललेपनमिदं सर्वान्त्रणान् नाशयेत्।।।
(२४९९) तिलपर्णीवीजलेपः (यो.समु.अ.८) पूयं स्रावयुतं कृमींश्च पिटकां सर्वोपदंशत्रणा
वीजानि पिष्ट्वा तिलपणिहाया माडीकुष्ठभगन्दरान्मुनिदिनात्सर्वान्गदा
नाशयेत् ।।
___ जलेन लेपो विहितो ललाटे । हरताल, पारा, गन्धक, मनसिल, फटकी,
शीर्षव्यथां संशमयत्यवश्य मोम, बच, घरका धुंवा, सुरदा सिंध (मुर्दारशंख) ! र्शतं यथा वहिरतिपदम् ।। जीरा, खपरिया, गेरु, सिन्दूर, पुरानी सुपारी, ___ बन तुलसी के बीजों (तुमरीहां) को पानीमें भैसका सींग, हल्दी, दारुहन्दी, नीमकी छाल, पीसकर मस्तक पर लेप करनेसे शिरपोड़ा अवश्य त्रिफला, स्वर्णमाक्षिक भस्म, और भुना हुवा तुत्थ | शान्त हो जाती है ।
For Private And Personal