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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ ३८३ ] इसे पैरोंके तलवोंमें लगानेसे विपादिका सूखे हुवे नागरबेलके पान, कूठ और हर्रका (विवाई) नष्ट होती हैं। चूर्ण समान भाग लेकर पानी में पीसकर लेप करने (२४८९) तमालपत्रादियोगः | से शरीरकी दुर्गन्धि नष्ट होती है। (च. सं. । चि. अ. ७ कु.) (२३९२) तालकादिप्रयोगः तमालपत्रं मरिचं समनःशिलां सकाशीशम। (शा, ध. सं. । ख. ३ अ. ११) तैलेन युक्तमुचितं सप्ताहं भाजने ताने ॥ ___ तालकं शाणयुग्मं स्थात् षट्शाणं शंखचूर्णकम् । तेनालिप्तं सिध्मं सप्ताहाद्वयेति तिष्ठतो घर्मे । द्विशाणिकं पलाशस्य क्षारं दत्वा प्रमर्दयेत् ॥ मासान्नरं किलासं स्नानं मुक्त्वा विशुद्धतनोः॥ कदलीदण्डतोयेन रविपत्रिरसेन वा । अस्थापि सप्तभिलेपैलॊन्नां शातनमुत्तमम् ॥ तेजपात, काली मिर्च, मनसिल और कसीस ___हरताल २ शाण, शंखका चूर्ण ६ शाण समान भाग लेकर तैलमें घोटकर ताम्रपात्रमें भर और ढाकका क्षार २ शाण लेकर सबको केलेके कर रख दीजिए । सात दिन पश्चात् इसका लेप खम्भेके रसमें या हुलहुलके रसमें घोटकर सात करके थोड़ी देर तक नित्य प्रति धूपमें बैठनेसे बार लेप करनेसे बाल गिर जाते हैं। सात दिनमें सिध्म और १ मासमें किलास कुष्ट (२४९३) तालकादिलेपः (वृ. नि. र. त्वग्दो.) नष्ट हो जाता है। इस प्रयोगके दिनों में स्नान | तालकाद्विगुणं गन्धं बाकुचीगोजलमर्दितम् । नहीं करना चाहिये। सिध्मंप्रलेपनादाशु हन्ति मासप्रयोगतः ॥ (२४९०) तर्कारिकादिलेपः (ग. नि. ।वृद्धच.) १ भाग हरताल और २ भाग गन्धक तथा तर्कारिकासैन्धवदेवदारु २ भाग बाबचीके चूर्णको एकत्र मिलाकर गोमूत्र कुष्टानि शुण्ठी सह चित्रकेण । में पीसकर नित्य प्रति १ मास तक लेप करनेसे रास्नाऽऽटरूषोऽथ तथा शताहा सिध्म (सीप-जिसमें शरीरसे भूसीसी उतरकर प्रलेपनं स्यादृषणप्रवृद्धौ ॥ सफेद रंग निकल आता है और जो प्रायः छाती अरनी, सेंधालवण, देवद्वार, कूठ, सोंठ, पर होता है. वह ) कुष्ठ नष्ट हो जाता है । चीता, रास्ना, बासा और सोया समान भाग लेकर (२४९४) तालकादिलेपः पानीमें पीसकर लेप करनेसे अण्डवृद्धि नष्ट होती (बृ. नि. र. । त्वग्दोष. शा. ध. । खं. ३ अ. ११) है । (लेप तनिक गर्म करके करना चाहिये।) तालकःशाणमात्र स्थाच्चतुःशाणा च बाकुची। (२४९१) ताम्बूलचूर्णादिलेपः गोमूत्रयुक्तं तनूर्ण लेपनाच्छित्रनाशनम् ॥ ( शा. ध. सं. । खं. ३. अ. ११) हरताल ( पीली वर्की हरताल ) १ शाण, ताम्बूलपत्रचूर्ण तु चूर्ण कुष्ठशिवाभवम् । बाब ची ४ शाण । दोनों के चूर्णको गोमूत्रमें पीसवारिणा लेपनं कुर्याद्गात्रदोर्गन्ध्यनाशनम् ॥ कर लेप करनेसे श्वित्र (सफेद कोढ़) नष्ट होता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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