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कषायप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[२५].
(१२५१) गुडक्षारयोगः (ग. नि. । मू. कृ. २७) बेल गिरीके चूर्णको गुड़में मिलाकर सेवन गुडेन मिश्रितं क्षारं कदुष्णं कामतःपिबेत् । करनेसे रक्तातिसार, आम, शूल, मलावरोध और मूत्रकृच्छेषु सर्वषु शर्करावातरोगजित् ॥ उदरविकारोंका नाश होता है ।
यवक्षारको, गुड़में मिलाकर ( उष्ण जलके (१२५६) गुडशुण्ठ्यादि योगः साथ ) पीनेसे सर्व प्रकारके मूत्र कृच्छू और शर्करा (ग. नि., भा. प्र. । अति.) (पेशाबकी रेंग ) तथा वातज रोग नष्ट होते हैं।
गुडेन शुण्ठीमथवोपकुल्यां (१२५२) गुडचतुष्टयः (शा. सं.)।
पथ्यां तृतीयामथ दाडिमं वा । आमेषु सगुडां शुण्ठीमजीर्णे गुडपिप्पलीम् । आमेष्वजीर्णेषु गुदामयेषु, कृच्छ्रे जीरगुडं दद्यादर्शःसु सगुडाभयाम् ॥
वर्चाविबन्धेषु च नित्यमयात् ।। ___आममें गुड़ और सोंठ, अजीर्णमें गुड़ और ___ आम, अजीर्ण, गुदरोग (बवासीर इत्यादि) पीपल, मूत्रकृच्छ्रमें जीरा और गुड़ तथा अर्शमें। और कब्जमें, नित्य प्रति सोंठ, दन्तीमूल, हर्र और गुड़ और हर्र मिलाकर खिलाना चाहिये। दाडिममेंसे एक एकका चूर्ण गुड़में मिलाकर (१२५३) गुडजीरकयोगः (वृ.नि. र. । ज्वर.) सेवन करना चाहिए। जीरकं गुडसंयुक्तं विषमज्वरनाशनम् ।। (मात्रा-३ माशे। अनुपान उष्णजल )। अग्निमांद्यं जयेच्छीतं वातरोगहरं परम् ॥ (१२५७ ) गुडहरीतकीयोगः ___ जीके चूर्णको गुड़में मिलाकर सेवन करनेसे (ग. नि.; बं. से. । अर्श.) विषमज्वर, अग्निमांद्य, शीत और वातरोग नष्ट पित्तश्लेष्मप्रशमनी कच्छकण्डूरुजापहा। होते हैं। (प्र. वि. प्रत्येक वस्तु ३से ६ माशेतक
गुदजान्नाशयत्याशु योजिता सगुडाऽभया । लेकर दिनमें ३-४ बार उष्ण जलसे सेवन करें।)
हर्रके चूर्णको गुड़के साथ सेवन करनेसे (१२५४) गुडदीप्यकयोगः(.मा. । शो.पि.)
पित्त, कफ, कच्छू , कण्डू (खुजली) और अर्श सगुडं दीप्यकं यस्तु खादेत्पथ्यानभुड्नरः ।
| (बवासीर )का नाश होता है। तस्य नश्यति सप्ताहादुदर्दः सर्वदेहजः ॥
(१२५८)गुडादि चूर्णम् (वृ.नि. र. । बा. रो.) __ अजवायनके चूर्णको गुड़में मिलाकर पथ्यपालन पूर्वक सेवन करनेसे १ सप्ताहमें सर्वाङ्गगत
सगुडं नागरं बिलं यः खादति हिताशनः । उदर्द रोग (रक्त विकारज रोग विशेष) नष्ट हो
त्रिदोषग्रहणीरोगान्मुच्यते नात्र संशयः ॥ जाता है।
सोंठ और बेलगिरीके चूर्णको गुड़में मिलाकर (१२५५) गुडबिल्वम् (आ.वे. वि.। अ.२१, पथ्यपालन पूर्वक सेवन करनेसे त्रिदोषज संग्रहणी भा. प्र, भै. र.। अति; हा. सं.। स्थान ३ अवश्य नष्ट हो जाती है । । । अ. ३, धन्व. । अति.)
(प्र. वि. सोंठ और बेलगिरी १॥-१॥ माशा गुडेन खादितं बिल्वं रक्तातीसारनाशनम् । तथा गुड़ ३ माशे मिलाकर दिनमें ३-४ बार आमशूलविबन्धघ्नं कुक्षिरोगविनाशनम् ॥ उष्ण जलसे सेवन करें)
भा०४
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