SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२४] भारत-भैषज्य रत्नाकरः। . [गकारादि - इलायची, अगर, नागरमोथा, कपूर, ग्रन्थिपर्णी, | इन्द्रायन, बेल, काकोली, तिलकी जड़ और श्रीवास [धूपसरल], कुन्दुरु, लौंग, गन्ध मात्रिका, खांडके चूर्णको शहद और घीमें मिलाकर पीनेसे शिलारस, सोया, मेथी, मोथा, कचूर, जावत्री, भूरी मूषक ( चूहेका ) विष नष्ट हो जाता है । छरीला, देवदारु और जीरा । यह गन्धद्रव्य हैं। (१२४८) गवाक्ष्यादि चूर्णम् इन्हे तैलपाकमें प्रयुक्त करना चाहिए । (च. सं. । उदर. चि.) (१२४५) गर्भस्तम्भनः प्रयोगः गवाक्षी शशिनी दन्ती तिल्वकस्थ त्वचं वचाम् । (र. मं. । अ. ९) | पिबेद्राक्षाम्बुगोमूत्रकोलकर्कन्धुशीधुभिः॥ समभागं सितायुक्तं शालितण्डुल चूर्णकम् । इन्द्रायन, शङ्खा होली (शंखपुष्पी ), दन्तीउदुम्बरशिफाकाथे पीतं गर्भ सुरक्षति ॥ मूल, लोध, और बचके चूर्णको अंगूरके रस, समान भाग चावल और मिश्रीके चूर्णको । गोमूत्र, कोल, कर्कन्धु (बेर ) से निर्मित सीधुके गूलरकी जड़की छालके काथके साथ सेवन करनेसे साथ सेवन करनेसे उदर रोग नष्ट होते हैं । गर्भ सुरक्षित रहता है। (१२४९) गाढीकरणयोगः [मात्रा-६ मासे १ तोले तक । (यो. स. ५ समुद्देशः) गिलरकीछाल २ तोले लेकर 5॥ पानीमें पकावें ।] वेतसस्य च मूलानिकाथयेन्मृदुवदिना । (१२४६ )गर्भस्तंभनःप्रयोगः [र. मं. अ. ९] भगप्रक्षालनात्तेन गाढत्वमुपगच्छति ॥ पतन्तं स्तंभयेगम कुलालकरमृत्तिका। ___ मन्दाग्नि पर बनाए हुवे वेतकी जड़के काथसे मधुच्छागीपयःपीत्वा किं वाश्वेताद्रिकर्णिका॥ धोनेसे स्त्रीके गुह्य अङ्गकी शिथिलता नष्ट होती है। ललना शर्करा पाठा कन्दश्च मधुनान्वितः । (१२५० ) गाढीकरणयोगः भक्षितो वारयत्येव पततं गर्भमंजसा ॥ (. यो. स. । ५ समुद्देशः) ___ कुम्हारके यहांकी ( कमाई हुई, तैयार ) मिट्टी, बचा नीलोत्पलं कुष्ठं मरीचानि तथैव च। शहद में मिलाकर बकरीके दूधके साथ पीनेसे, अश्वगन्धा हरिद्रा च गाढीकरणमुत्तमम् ।। अथवा- सफेद कनेर, राल ( या चिरौंजी ) खांड, बच, नीलोफर, कूठ, काली मिर्च, असगन्ध पाठा ( जलजमनी) और विदारीकन्द के चूर्णको और हल्दी काथसे प्रक्षालन करनेसे स्त्रीके गुह्य शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे गिरता हुवा गर्भ अङ्गकी शिथिलता दूर होती है । रुक जाता है। (१२४७ ) गवाक्षी चूर्णम् ( बं. से. । विष.) (१२५१) गुडक्षारयोगः (ग. नि. म. कृ. २७) गवाक्षीबिल्वकाकोलीतिलमूलाः सशर्कराः। गुडेन मिश्रितं क्षारं कदृष्णं कामतःपिबेत् । मध्वाज्यसंयुताः पीताः मूषिकाविषनाशनाः॥ । मुत्रकृच्छ्रेषु सर्वेषु शर्करावातरोगजित् ॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy