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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चूर्णप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२३] (१२४०-४२) गन्धक प्रयोगाः शुद्ध गन्धक सेवन कालमें क्षार, अम्ल, तैल, (र. र. स. । पू. ख. अ. ३) सुरा, विदाही पदार्थ [ मरिचादि ] और सब प्रकाघृताक्ते लोहपात्रे तु विद्रुतं शुद्धगन्धकम्।। रकी दालेसे परहेज़ करना चाहिए। घृताक्तदर्विकाक्षिप्तं द्विनिष्कपमितं भजेत् ॥ (१२४३) गन्धद्रव्याणि (च. द. । वातव्या.) हन्तिक्षयमुखान् रोगान्कुष्ठरोग विशेषतः। गन्धकस्तुल्यमरिचः षड्गुणत्रिफलान्वितः ॥ | एलाचन्दनकुङ्कुमागुरु मुराककोलमांसीशटी श्रीवासच्छदग्रन्थिपर्णशशभृत्क्षौणीध्वजोशीरकम् । घृष्टः शम्पाकमूलेन पीतश्चाखिलकुष्ठहा। तन्मूलं सलिले पिष्ट लेपयेत्प्रत्यहं तनौ ॥ कस्तूरीनखपूतिगन्धजलमुङ्मेथी लवङ्गादिकम् गन्धद्रव्यमिदं प्रदेयमखिलं श्रीविष्णुतैलादिषु ।। दृष्टप्रत्यययोगोऽयं सर्वत्राप्रतिवीर्यवान् ।। श्रीमतासोमदेवेन सम्यगत्र प्रकीर्तितः ॥ इलायनी, सफेद चन्दन, केसर, मुरामांसी, क्षाराम्लतैलसौवीरविदाहिद्विदलं तथा । मुरमुकी ] कंकोल, जटामांसी [ बालछड़ ], कचूर, शुद्धगन्धकसेवायां त्याज्यं योगयुतेन हि ॥ चीड़के पत्ते, ग्रन्थिपर्णी, कपूर, भूरिछरीला, ताल शुद्ध गन्धकको घृताक्त (घृतसे चिकने) । (ताड़ ] खस, कस्तूरी, नख, खट्टाशी [जुन्द बेदस्तर], लोहपात्र में पिधलाकर घृतसे चिकनी कीहई नागरमोथा, मेथी और लवङ्गादि गन्धद्रव्य कहलाते करछलीमें निकाल लें। हैं। यह सब द्रव्य विष्णुतैलादिमें प्रयुक्त इसे २ निष्क (८ माशे )की मात्रानुसार करने चाहिएं। सेवन करनेसे क्षय इत्यादि और विशेषतः कुष्ठ (१२४४ )गन्धद्रव्याणि (भै. र. वा. व्या.) रोगोंका नाश होता है। कुष्ठश्च नलिका पूतिरुशीरं श्वेतचन्दनम् । शुद्ध गन्धक १ भाग, स्याह मिर्च १ भाग | जटामांसी तेजपत्रं नखी मृगमदः फलम् ।। और त्रिफला ६ भाग लेकर चूर्ण करके अमलता- ककोलं कुडकुम चोचं लताकस्तूरिका वचा । सकी जड़के रसमें धोटकर रख लीजिए। मूक्ष्मैलागुरुमुस्तश्च कपरं ग्रन्थिपर्णिकम् ॥ इसे ( ३ माशेकी मात्रानुसार दूधके साथ) श्रीवासःकुन्दुरुर्देवकुसुमं गन्धमात्रिका । सेवन करने और साथ ही अमलतासकी जड़को | सिहको मिषिका मेथी भद्रमुस्तं तथा शटी। पीसकर लेप करनेसे समस्त प्रकारके कुष्ट नष्ट | जातिकोषं शैलजश्च देवदारु सजीरकम् । होते हैं। एतानि गन्धद्रव्याणि तैलपाकेषु युक्तितः ॥ ___ श्रीमान् सोमदेव महाशय द्वारा प्रकट, यह कूठ, नाली, जुन्दबेदस्तर, खस, सफेद चन्दन, प्रयोग अनुभूत और अन्य समस्त प्रयोगोंकी अपेक्षा | जटामांसी, तेजपात, नखी कस्तूरी, जायफल, अत्यन्त प्रभावशाली है। | कंकोल, केशर, दालचीनी, लताकस्तूरी, वच, छोटी For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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