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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः ।
[गकारादि
आम्रबीजमतिविषा लज्जाचेति सुचूर्णितम् । शुद्ध आमलासार गन्धक और त्रिफले (हैड़, क्षौद्रतण्डुलतोयाभ्यां जयेत्पीखा प्रवाहिकाम् ॥ बहेड़े, आमले )का चूर्ण समान भाग लेकर उसमें सर्वातिसारशमनं सर्वशूलनिषूदनम्। सबके बराबर मिश्री मिलाकर खरल करें । संग्रहग्रहणीं हन्ति मूतिकातङ्कमेव च ॥ | इसे प्रतिदिन प्रातःकाल ३ माशेकी मात्रा___नागरमोथा, सेंधा, सोंठ, धायके फूल, लोध, | नुसार शहदमें मिलाकर सेवन करनेसे ३ सप्ताहमें कुडेकी छाल, बेलगिरी, मोचरस, पाठा [जलजमनी],
उपदंश अवश्य नष्ट हो जाता है । इन्द्रजौ, नेत्रबाला, आमकी गुठलीका गर्भ (गूदामज्जा), अतीस और लज्जालु । समान भाग लेकर
(१२३८) गन्धक योगः (वृ. यो. त.।त. ७३) चूर्ण बना लीजिए।
गन्धकं गुडसंयुक्तं कर्ष भुक्त्वा पयःपिबेत् । ___ इसे शहद और चावलोंके पानीके साथ
| विंशतिस्तेन नश्यन्ति प्रमेहपिडिका अपि ॥ सेवन करनेसे प्रवाहिका, सब प्रकारके अतिसार, । (शुद्ध आमलासार) गन्धकके चूर्णको समान शूल, संग्रहणी और सूतिका रोगोंका नाश होता है। | भाग गुडमें मिलाकर १ कर्ष (१। तोले ) की ___(मात्रा १॥ से ३ माशे तक। चावलोंका | मात्रानुसार दूधके साथ सेवन करनेसे बोसों प्रकापानी बनानेकी विधि प्रथम भागके परिशिष्टमें |
रको प्रमेह पिडिकाएं नष्ट हो जाती हैं । देखिए ।)
(व्यवहा० मात्रा-१ माशा) (१२३६) गन्धकचूर्णम्
(१२३९) गन्धक योगः (र. र. । र. ख.) (यो. र. । कुष्ट, वृ, नि. र. । त्वग्दोष) गन्धपाषाणचूर्णन्तु कटुतैलेन योजयेत् ।।
| गन्धकं कटुतैलेन धर्म भाव्यं दिनावधि। लेपनादथ पानाद्वा कच्छूपामाविनाशनम् ॥
| तत्पलाधै सदाखादेदिव्यकायकरं नृणाम् । (शुद्ध) गन्धकके चूर्णको ( 3 माशेकी मात्रा- ! जायते स्वर्णवदेहो वत्सरात्वलिवर्जितः॥ नुसार ) कड़वे तैलमें मिलाकर पीने अथवा लेप गन्धकके चूर्णको कड़वे तैलमें मिलाकर दिन करनेसे कच्छू और पाभा (खुजली) का नाश भर धूपमें रखिये । इसे अर्धपल मात्रानुसार सेवन होता है।
करनेसे शरीर कान्तिवान् (त्वग्रोग रहित) हो (१२३७) गन्धकयोगः (र. चं. । उप. चि.) जाता है । यदि एक वर्ष पर्यन्त निरन्तर सेवन शुद्धं बलिं च त्रिफला समभागानि चूर्णयेत। किया जाय तो मनुष्यकी देह काञ्चनसदृश सुन्दर तत्समं शर्करा ग्राह्या सर्वमेकत्रमर्दयेत्॥ और वलि (झुर्रा ) रहित हो जाती है। तचूर्ण च त्रिभाषश्च प्रातमधुयुतं लिहेत् । (प्र० वि० तैल इतना डालना चाहिए कि सप्तकत्रयसेवान्ते उपदंशं विनाशयेत् ॥ गन्धकसे एक अंगुल ऊपर रहे । व्यवहारिक सत्यं सत्यं पुनःसत्यं योगोऽयं मुनिभाषितः॥ मात्रा-१ माशा तक । अनुपान-गोदुग्ध । )
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